रविवार, 14 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२८५ : #एक_रविवार #मुझे_भी_दरकार




सुबह से लेकर
रात तक हो जिस पर
बस, हक मेरा
जिसमें कर सकूं मैं
अपने मनचाहे सारे काम
वो भी बे-रोकटोक   
चाहे फिर मिले मुझको वो
महीने में एक बार
पर, ऐसा एक रविवार 
मुझे भी दरकार
जिसके हर पल पर हो
मेरा इख्तियार...
.....
जान ही न पाती
कब शुरू होकर
कब हो जाता खत्म
हर आने वाला नया हफ्ता
रोजमर्रा के कामों में रफ्ता-रफ्ता
कब आता सोमवार तो
कब आ जाती शनिचर की रात
सब लगते एक समान
कि मेरे हिस्से में तो आते है
सिर्फ, काम ही काम  
ऐसे में दिल चाहता कि मिले
मुझे मेरा इतवार...
.....
अक्सर,
ऐसा ख्याल आता
मन तड़फकर रह जाता
कुछ कर पाने की चाह भी
अंतर में रह जाती
वो शौक जो अधूरे रह गये
उन्हें पूरा कर पाना
ना-मुमिकन सा लगने लगता
मगर, जब देखती
चेहरे पर सबके मुस्कान
संतुष्टि का अहसास
करते अपने मिलकर पूरे
वो अधूरे ख्वाब तो,
शेष न रहता कोई मलाल
घर बैठे-बैठे ही मिल जाता मुझे
मेरा खोया संसार...  
.....
कभी-कभी
गृह कार्यों के बीच
फिर सताता जब यही ख्याल
तो रोज-रोज बचाकर
थोड़ा-थोड़ा सा वक़्त का हिस्सा
समेटकर अपनी सारी ऊर्जा  
छोटे-छोटे कामों से जो मिलती
बना लेती अपना किस्सा
आखिर, मैं ही तो हूँ
वो धूरी, वो एकमात्र केंद्रबिंदु
वो सुदृढ़ बुनियाद
जिस पर टिका समस्त परिवार

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१४ अक्टूबर २०१८

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