मंगलवार, 16 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२८७ : #भूखा_न_पड़े_किसी_को_सोना #उपाय_ऐसा_हम_सबको_पड़ेगा_ढूँढना




यूं तो एक मनुष्य के जीने के लिये न्यूनतम आवश्यकता रोटी, कपड़ा और मकान है जिसमें प्राथमिकता का स्तर भी वही होता जिस क्रम में उसे बोला या लिखा जाता क्योंकि, बाकी दो चीजों के बिना न केवल रहा जा सकता है, बल्कि जिया भी जा सकता है और अधिकांश हमारे यहां इस तरह से संघर्ष करते हुये ज़िंदगी की लड़ाई लड़ रहे है पर, भोजन एक ऐसी जरूरत जिसके बिना सब कुछ होते हुए भी जीवित रहना मुमकिन नहीं भले, उसका स्वरूप कुछ भी हो मगर, उसे लिये बिना सांस लेना भी असंभव होता है ।

'इंटरनेशनल फ़ूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट' ने वैश्विक स्तर पर सभी देशों में भोजन की कमी को नापने या उस देश के निवासियों में कुपोषण का पता लगाने 'ग्लोबल हंगर इंडेक्स' की शुरुआत की तथा 'वेल्ट हंगरलाइफ़' नामक एक जर्मन स्वयंसेवी संस्थान ने सबसे पहले वर्ष 2006 में इस सूचकांक को जारी किया । जिसके द्वारा ये ज्ञात हुआ कि, अलग-अलग देशों में रहने वालों को भोजन के रूप में किस तरह के पदार्थ व उनकी कितनी मात्रा उप्लब्ध होती हैं जिससे कि कमी को एक नम्बर के माध्यम से दर्शाया जा सके तो 'ग्लोबल हंगर इंडेक्स' का सूचकांक हर साल ताज़ा आंकड़ों के साथ अपने विश्लेषण को इस सूचकांक के ज़रिए सबके सामने लाता है ।

इसका पता लगाने या इसे नापने के लिये चार मुख्य पैमाने होते हैं –

१. कुपोषण
२. शिशुओं में भयंकर कुपोषण
३. बच्चों के विकास में रुकावट और
४. बाल मृत्यु दर

जारी की गई रिपोर्ट में जिस देश के 'ग्लोबल इंडेक्स' का 'स्कोर' ज़्यादा होता है उसका मतलब कि, उस देश में भूख की समस्या सबसे अधिक है इसी तरह से जब किसी देश का स्कोर कम होता है तो इसका मतलब है कि वहाँ स्थिति बेहतर है। इसके अलावा इससे हमको ये जानकारी भी मिल जाती है कि, वैश्विक स्तर पर भूख के ख़िलाफ़ चलाये जा रहे अभियान की उपलब्धि या नाकामियां को क्या है ?

इस वर्ष याने कि 2018 की प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार 119 देशों में किये गये सर्वेक्षण के आधार पर वैश्विक भूख सूचकांक (global hunger index 2018) में अपना देश 'भारत' 103वें पायदान पर है जबकि, पिछले साल उसका स्थान 100वें नंबर पर था याने कि 3 स्थान बढ़कर ये 103 हो चुका है । इसी तरह हम देखें तो पाते है कि साल 2014 में जहां हम 55वें पायदान पर थे वहीं 2015 में 80वें और 2016 में 97वें पायदान पर उतर आये और पिछले साल 100 तो अब 103 पोजिशन पर विराजमान है जो बताता कि साल दर साल हमारे यहां भुखमरी बढ़ रही है ।

ऐसे में आये दिन की पार्टीज, समारोह या शादी के आयोजनों में खाना बर्बाद करना या घरों, होटल्स में अतिरिक्त भोजन को फेंकना क्या जायज है ?

हम अकेले अधिक नहीं कर सकते पर, सब मिलकर कम से कह एक भूखे का तो पेट भर सकते है उसके रोज के भोजन की व्यवस्था कर सकते है जिसका एक सुंदर उदाहरण ‘पंडित दीनदयाल रसोई योजना’ भी है इसी तरह से हम भी जो भी जितना भी संभव हो उतना अपना सहयोग करें तो इस अंक को कम कर सकते है यही 16 अक्टूबर को मनाये जाने वाले 'विश्व खाद्य दिवस' का सार्थक उद्देश्य कि कोई भूखा न रहे, कोई भूख से न मरे सबको भरपेट न सही जीने लायक जरूरी खाना तो अवश्य मिले अभी तो नवरात्र के पर्व भी चल रहे जिसमें भंडारे का आयोजन एक या दो दिन ही होगा पर, हम यदि ऐसी किसी व्यवस्था से जुड़कर अपना सहयोग दे तो साल के 365 दिन जरूरतमंदों को थाली भर भोजन दे सकते है

जो ज्यादा तो नहीं बल्कि, उससे कम जितना हम फेंक या बर्बाद कर देते है तो अब से भोज या समारोह में या किसी भी आयोजन में भोजन बर्बाद न हो ये ध्यान दे और इस बहाने किसी के चेहरे पर मुस्कान दे... इससे बड़ी सौगात दूसरी क्या होगी भला...☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१६ अक्टूबर २०१८

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