हम कृतध्न बड़े
पाकर आज़ादी भूल
रहे
पाने इसे कभी
लड़े
न जाने कितने
लोग यहाँ
आज नहीं शेष
सबके
नामो-निशान मगर,
दिन जब ख़ास आते
उन सबकी ही याद
दिलाते
जिसने अपने
प्राण दिये
गुलामी से हमको
छुड़ा लिये
देकर गये
स्वतंत्रता का खुला आसमान
न रहे जिसमें
कोई अ-समान
उड़ने को जब पंख
हम सबको मिले
हम इतने ऊँचे
उड़े
कि जड़ों को
तोड़कर अपनी
अधर में झूल
रहे
फिर भी नहीं
अहसास हमें
महज़ सत्तर
सालों के भीतर ही
पहचान अपनी
त्याग
इतने आगे बढ़
गये कि,
इतिहास अपना
भूलने लगे
गौरवशाली
परम्पराओं को अपनी
खुद कमतर बता
रहे
वैभवशाली
सभ्यता-संस्कृति पर
प्रश्नचिन्ह
लगा रहे
देखते होंगे जब
वो हमको
उपर से कभी यूँ
ही
सोचते होंगे
यही हमने क्या सोचा था
क्या ये लोग बन
गये
सूरत ही नहीं
सीरत से भी बदल गये
भारत को कहते
ये ‘इण्डिया’
फिरंगी से लग
रहे
देशवासी मेरे अजनबी
हो गये
बनाई आज़ाद
हिन्द सरकार जिनके लिये
गंवाई जान और
सर्वस्व अपना
कृतध्न वही बन
गये ।
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© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
२१ अक्टूबर २०१८
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