मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२७३ : #एक_देश_एक_सोच #उसके_दो_अलग_अलग_छोर #एक_गाँधी_एक_शास्त्री




‘गांधीजी’ और ‘शास्त्री जी’ का जीवन एक खुली किताब की तरह है जिसमें लिखे हर एक शब्द व अध्याय को हम न केवल पढ़ सकते है बल्कि, आंखों के सामने उसे हूबहू देख भी सकते है क्योंकि, उन्होंने कभी भी किसी से कुछ नहीं छिपाया जो भी कहा वही किया इसलिये उनकी कथनी और करनी में कोई भेद नहीं रहा ।

उन्होंने अपने जीवन काल में अनेक पुस्तकों का अध्ययन किया और केवल उनको पढा ही नहीं उन पर चिंतन-मनन भी किया उसके बाद जो कुछ उन्हें अपनाने लायक लगा उसे व्यवहार में उतार लिया और जो अनावश्यक या अव्यवहारिक लगा उसका विरोध किया ।

उन्होंने केवल साहित्य या राजनैतिक ही नहीं सभी धर्मों की धार्मिक किताबों को भी बड़े मनोयोग से पढ़ा उसके पश्चात ही ये निष्कर्ष निकाला कि सभी धर्म एक ही शिक्षा देते सब में ही हिंसा को गलत बताया गया है तभी वे दोनों दावे के साथ ‘अहिंसा परमो धर्म’ और ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दे सके जो महज़ एक नारा नहीं बल्कि उनका जीवन दर्शन है जो बताता है कि जीव हत्या या हिंसा ही सबसे घातक है

क्योंकि, ये सिर्फ मनुष्यों या प्राणियों की नहीं सदाचार, विवेक, परोपकार, सदाचार, एकता, इंसानियत जैसी कोमल भावनाओं की भी जान ले लेती है जिससे इंसान दानव में परिणित हो जाता जिसे फिर सही-गलत का कोई बोध नहीं होता उसे तो बस, जो सही लगता उसे ही मानता है चाहे वो अन्याय हो या अत्याचार या फिर मानव हत्या उसके दृष्टिकोण में ये सब उसे सही प्रतीत होता तभी तो आतंकी अपने अमानवीय कृत्यों को ‘जेहाद’ या ‘धर्मयुद्ध’ का नाम देते है ।

इस तरह की हिंसक प्रवृतियों को रोकने आतंकवाद पर नियंत्रण करने का उन्होंने बहुत-ही सहज-सरल उपाय बताया ‘सर्व-धर्म प्रार्थना’ व ‘धार्मिक समन्वय’ जिसमें सभी धर्मों की अच्छी बातों को मिलाकर एक धर्म का प्रचार-प्रसार किया जाय जिसका नाम हो इंसानियत' जो इंसान को इंसान से प्रेम करना सिखाये न कि उनके बीच नफरत की ऐसे ऊंची मजबूत दीवारें खड़ी करें कि जिन्हें सदियों तक न तोड़ा जा सके ।

अपने आश्रम में गाँधी जी ने प्रतिदिन 'सर्व धर्म प्रार्थना' आयोजित करने का निर्णय लिया जिसके अंतर्गत वे समस्त धर्मों की एकता पर बल देते थे और कहते थे... 'ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान' उनका मत था कि सन्मति से सब एक-दूसरे के प्रति मन मे भरे हुए भेदभाव के बीज को मिटाकर आपस में गले मिल सकते है जिससे नफरत का पौधा पनपने ही नहीं पायेगा ।

अब जबकि, अपने देश में एक देश, एक टैक्स... एक देश, एक चुनाव... एक देश, एक शिक्षा जैसे अभियान चलाए जा रहे वही आज 'एक देश, एक धर्म' जैसे बदलाव की तीव्र आवश्यकता है क्योंकि वर्तमान परिस्थितियों में धर्म के नाम पर खून-खराबा, मोब लीचिंग बढ़ती जा रही रोज अखबार के पन्ने ऐसी ही किसी खबर से रंगे होते है

यदि हम सब मिलकर मानवियत के मज़हब को अपनाने का आंदोलन चलाये सभी धर्मों का सम्मान करें सबको एक समझे तो यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी... जय हिंद, जय भारत, वंदे मातरम... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०२ अक्टूबर २०१८

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