रविवार, 7 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२७८ : #खुले_रहने_दो #संभावनाओ_के_द्वार




खुले रहने दो
संभावनाओं के द्वार
कभी न कभी
कोशिशें पहुंचकर रहेंगी
असंभव के पार
आसमान में टांक देंगी
अंतहीन और अधूरी
नन्ही-नन्ही इच्छाओं के सितार
दिल से निकली दुआयें
तोड़ देंगी इक दिन
ना-मुमकिनों की सख्त दीवार
देखना फिर जमकर
होगी आशीषों की बरसात
रुकी थी जो कहीं
थमी थी जो कहीं
उन पलों में...  
पूरी होगी मन की कसक
वो दिली ख्वाहिश
वो ख़ामोश मुराद
जिसका था मुद्दत-से इंतज़ार
अक्सर,
लग जाती बड़ी देर
पूरा होने में उस तमन्ना को
जिसके बिन जीवन
पथरा कर बन जाता अहिल्या
तब जाकर तरसते-तड़फते
सदियों-सदियों तलक
शिला बनकर बाट जोहते
तपस्वी हृदय को मिल पाते
उसके अपने ‘राम’

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०७ अक्टूबर २०१८

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