भारत को यूं ही
परम पावन पवित्र भूमि नहीं कहा जाता देवों, ऋषि, मुनियों की तपस्थली है जहाँ उनके
द्वारा अर्जित ऊर्जा व परोपकारी कर्म की गूंज समस्त वायुमंडल में विद्यमान है जो
यहाँ रहें वालों को सदैव सत्कर्मों की तरफ प्रवृत करती तभी तो देवता भी यहां जन्म
लेने को तरसते है । यहां के कण-कण में जिस तरह अलग-अलग रंग, स्वाद, भाषा,
वेशभूषा के होते हुये भी जो एकरूपता दिखाई देती
वही तो इसे अनेकता में एकता का प्रतिबिंब बनाती है जिसकी वजह से समस्त मानचित्र
में यही एक देश अलग दिखाई देता और अपनी इन्हीं विशेषताओं की वजह से इसने खुद को
‘विश्वगुरु’ बना लिया ।
यूं तो इस धरा
पर आना ही अपने आप मे पुण्य का उदय समझा जाता क्योंकि, कुछ महान विभूतियों ने देह धारण कर अपने जीवन को
होम कर कुछ ऐसा कर दिखाया स्वदेश की खातिर जिसने इन्हें अपने वतन की पहचान के रूप
में स्थापित कर दिया और कहीं भी इन नामों का लिया जाना मतलब निश्चित ही वहां भारत
का गुणगान हो रहा है । इन्होने इश्वरप्रदत्त प्रतिभा का भरपूर उपयोग
करते हुये सदैव ऐसे समाजोपयोगी, देशहित कार्य किये जिसने देश का नाम विश्व पटल पर
उजागर किया उसकी छवि को उज्ज्वल किया इन्होने अपना सर्वस्व देश को न्यौछावर कर
दिया इस तरह अपनी जन्मभूमि के प्रतिनिधि बन माटी का ऋण चुकाया ।
हर व्यक्ति का
रुझान व कार्यक्षेत्र अलहदा होता जहाँ वो अपनी विशिष्टता की वजह से कुछ ऐसा अद्भुत
कारनामा कर जाता कि उसका पर्याय बन जाता ऐसा ही उल्लेखनीय सर्वजन हिताय काम किया
स्वामी दयानंद सरस्वती, वी. शांताराम, डॉ होमी जहाँगीर भाभा एवं बेगम अख्तर ने अपने-अपने
कार्यक्षेत्र में जहाँ इन्होने अपनी ऐसी छाप छोड़ी कि आज भी यदि कोई धर्म, विज्ञान,
फिल्म एवं संगीत का नाम ले तो स्वतः ही ये नाम जेहन में आते जो अपने समय में अपनी
कर्मभूमि में शीर्ष पर विराजमान रहे और जब यहाँ से गये तो अपनी अमूल्य धरोहर, अपनी
विरासत अपनी आने वाले संतति के लिये निशानी स्वरुप छोड़ गये जिससे वे सीखकर उसे न
केवल आगे बढ़ा सके बल्कि, उसे समयानुसार परिवर्तन कर उसे अपडेट भी कर सके जिससे कि
वो परिमार्जित होकर पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित होता रहे ।
_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु
सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर
(म.प्र.)
३० अक्टूबर २०१८
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें