गुरुवार, 25 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२८६ : #फेक_फेमिनिज्म_ने_सिद्ध_किया #नारी_ही_नारी_की_दुश्मन_यही_अटल_सत्य




छद्म नारिवादिता का एक और घिनौना रूप दिखा एक और मुखोटा उतरा वही जो अब से कुछ दिन पहले तक ये साबित करने में लगी थी कि औरत ही औरत की दुश्मन नहीं होती और नारी को भी नारी के रूप-रंग लुभाते है, मोहते है और उनके बीच कोई इर्ष्य या दुश्मनी या छल-कपट या फिर अहंकार जैसी कोई भावना नहीं होती बल्कि, वे तो एक-दुसरे की सच्ची हितैषी व शुभचिंतक होती है

वे तो एक-दुसरे की बात बिना कहे भी बेहद अच्छे से समझती ये तो पितृसत्ता की साजिश जो वो औरतें के बारे में ऐसा बोल उनके बीच दूरियां बढाते उनके मन में ये भ्रम भरते कि वे कभी भी आपस में अच्छी दोस्त नहीं हो सकती जबकि, उनकी दोस्ती तो जग-ज़ाहिर की किस तरह से बे बचपन की सहेलियों को सहेजती एवं हर जगह नई-नई सहेली और रिश्ते बनाती जिन्हें यथसंभव लम्बे समय तक निभाती यदि वे मिलकर न रहे तो इतने बड़े परिवार को संभालना उसे लेकर चलना संभव नहीं होता

इसलिए अब जबकि, ये फेमिनाएं पुरुषों की इस चाल को समझ चुकी है तो वे उनके जाल में नहीं फंसने वाली वे अब पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़े होकर आत्मनिर्भर ही नहीं आर्थिक रूप से भी स्वतंत्रता पाकर इतनी अधिक सक्षम व सशक्त हो चुकी है कि उनका हर भांडा फोड़ देंगी उनके सभी राजों का पर्दाफाश कर देगी जिसके दम पर वे औरतों को आपस में एक-दुसरे का दुश्मन बताकर उन पर राज करते उन्हें अपनी दासी बनाकर रखते है

ऐसी ही न जाने कितनी बातों से उन्होंने ये साबित करने का प्रयास किया कि जिसे अब तक प्रसारित-प्रचरित किया गया वो झूठ है और स्त्रियाँ एक-दूसरे की दुश्मन नहीं दोस्त हैं उनके इस तरह बार-बार लगातार लिखने से ये लगने लगा कि वाकई औरतों की सोच में बदलाव आ गया है वे अब एक-दूजे को नीचा नहीं दिखाती उनको सपोर्ट करती उनकी सहायक बनती जहाँ जरूरत होती आगे बढकर मदद करती इस तरह से सोशल मीडिया में उन्होंने आपस में मदद कर अनेक अभियानों को सफल बन इस छवि को तोड़ने का हर संभव प्रयास किया जैसे कि, यदि किसी महिला को ट्रोल किया गया तो उसका सफलतापूर्वक बचाव किया जिसने धीरे-धीरे मानसिकता में परिवर्तन कर इस नये मन्त्र को अभी स्थापित करना ही शुरू किया था कि कल इस मिथ्या भ्रम का गुब्बारा फूट गया

केंद्रीय मंत्री ‘स्मृति ईरानी’ ने एक बयान क्या दे दिया कि, ‘‘मैं उच्चतम न्यायालय के आदेश के खिलाफ बोलने वाली कोई नहीं हूं, क्योंकि मैं एक कैबिनेट मंत्री हूं लेकिन, यह साधारण-सी बात है क्या आप माहवारी के खून से सना नैपकिन लेकर चलेंगे और किसी दोस्त के घर में जाएंगे आप ऐसा नहीं करेंगे क्या आपको लगता है कि भगवान के घर ऐसे जाना सम्मानजनक है?  मुझे पूजा करने का अधिकार है लेकिन, अपवित्र करने का अधिकार नहीं है यही फर्क है कि हमें इसे पहचानने तथा सम्मान करने की जरूरत है''

उनके इस बयान के पीछे का पूरा सच न जानकर सब इस तरह उनके उपर पिल पड़ी कि उनको गलत साबित करने में खुद बेनकाब और पुनः एक बार भेड़ साबित हुई जो आगे वाली को देखकर उसके पीछे चलने लगती किसी ने भी जानने की कोशिश नहीं की कि उनके कहने का तात्पर्य क्या है चूँकि, एक तो वो मंत्री दूजे वो उस दल का प्रतिनिधित्व करती जिसे देश की अधिकांश जनता नापसंद करती तो बस, आधे-अधूरे स्टेटमेंट को लपक लिया फिर अपने तरीके से उनकी ऐसी फजीहत की कि जो बात प्राचीन काल से सुनते आ रहे थे वही कानों में फिर से गूंजने लगी

ये फेक फेमिनाओं की ट्रेनिंग क्या किसी विशेष स्थान पर होती हैं जो इनकी भाषा, शैली व तर्क सब एक जैसे होते जिसमें न कोई सर, न पैर और न ही कोई धड़ होता सब गोलमाल टाइप मामला लगता कुछ समझ न आता कल जितनी भी पोस्ट्स पढ़ी उसमें सब लगभग एक सुर में यही सिद्ध करती दिखाई दी कि पीरियड बड़ी पवित्र चीज़ और वे इन दिनों पैड लगाकर ही हर जगह जाती चाहे स्कूल हो या कॉलेज या दोस्त का घर वर्क प्लस या फिर मन्दिर जबकि, एक मूर्ख भी ये समझ सकता कि माहवारी में बिना पैड लगाये घर से निकलना संभव नहीं और जहाँ भी महिला जायेगी उसके साथ ही जायेगी तो फिर ऐसा लिखने की क्या जरूरत जो सार्वभौमिक सत्य है केवल इसलिए कि उन्हें ये लगा कि ‘स्मृति’ ने उन्हें ही टारगेट कर के कहा है तो फिर वे चुप किस तरह रह सकती हैं        

ये तो एक महिला होने के नाते ‘स्मृति’ को भी पता होगा कि इन दिनों पैड लिये बिना जाना असंभव तो फिर वो कोई अनपढ़ या गंवार तो नहीं जो ऐसी कहेंगी उनके कहने का सीधा तात्पर्य कि वो उस सो काल्ड सोशल एक्टिविस्ट ‘रेहाना फातिमा’ पर प्रश्नचिन्ह लगा रही थी  जिसके बारे में मीडिया में खबर आई थी कि वो अपना इस्तेमाल किया हुआ सेनटरी नेपकिन ‘अयप्पा स्वामी’ के उपर चढाने ले जा रही थी वैसे तो मैंने अनेक बुद्धिजीवी, पत्रकार, बिकी हुई कलम/बौद्धिकता को ‘रेहाना फातिमा’ का पुरजोर तरीके से पक्ष लेते भी देखा वो भी पूरे तर्कों के साथ क्योंकि, ये जो फेक फेमिनाएं है इनका न तो कोई धर्म, न कोई उद्देश्य और न ही इन्हें देश-समाज से कोई लेना-देना केवल अपने आपको खुदमुख्तार व बुद्धिGB साबित करना है

इसलिये इनका तो बस एक ही काम कि जहाँ इन्हें ये लगे कि इनकी इतनी मेहनत से कमाई हुई स्वछंदता खतरे में ये सब मिलकर चिल्लाने लगती इस मामले में ये सब एक है क्यों न हो आखिर इनकी ट्रेनिंग जो एक ही संस्थान में एक साथ हुई है तो वहां सिखाये हुये इस सबसे महत्वपूर्ण नियम को किस तरह से भूल सकती हैं कि हर सही-गलत में सबको सबका साथ निभाना है तो इस मामले में आप इन्हें एक जैसा ही लिखते पायेंगे मसला चाहे जो हो इनको इस तरह की हर गतिविधि के लिये विशेष तरह से प्रशिक्षित किया जाता है

जिसमें हथियार के तौर पर इन्हें ऐसे कुतर्क प्रदान किये जाते जिससे सामने वाला तिलमिला जाये या उसकी दुखती रग को इतना जोर से दबा दिया जाये कि वो उनकी पोस्ट से भाग जाये ये भी न हुआ तो ब्लॉक, गालियाँ, बदतमीजी जैसे अनेक अस्त्र-शस्त्र भी इनके तरकश में पाए जाते हैं ऐसे में जो शालीन या सभ्य या इनके जैसे कुटिल/शातिर नहीं या तो इनको जवाब देने का रिस्क नहीं लेते या फिर चुपचाप इनकी पोस्ट से खिसक जाते तो उसे अपनी विजय समझकर आगे भी यही दांव अपनाती हुई अपने झूठे विजयरथ की लगाम थामे आगे बढ़ जाती है

यदि ये वाकई स्त्री जाति की चिंतक होती तो उनके बयान का सटीक विश्लेषण करती फिर अपनी बात रखती न कि किसी एक बात को पकड़ ये साबित करने में नहीं जुट जाती कि माहवारी जैसा पवित्रतम दुनिया में कुछ नहीं जबकि, उन्होंने ये नहीं कहा कि वो अपवित्र प्रक्रिया और न ये कि माहवारी में पैड लिए बिना ही जाना चाहिये उनका मन्तव्य तो केवल ये कहना था कि जो इस तरह की हरकत कर रही ज़ाहिर है कि वो ‘रेहाना’ की तरफ ही इशारा कर रही है पर, जिन्हें अपने हिसाब से मतलब निकालना वे निकालकर ट्रोल करना चालू हो जाते तो ये भी हो गई

जिसके तहत एक नई मुहीम या जिसे भविष्य में #Testing_Period_Blood या कोई अन्य  नाम दिया जा सकता के होने की सम्भावना दिखाई क्योंकि, जो अब तक सिर्फ पैड लेकर मन्दिर जाने की जिद कर रही थी इसके बाद आगे खुद को प्रबुद्ध जताने में अपने पीरियड के ब्लड को टेस्ट करने में भी पीछे न हटेगी याने कि बौद्धिकता का परीक्षण अब इस तरह से होगा आगे जाने क्या-क्या टेस्ट करे आखिर, फेक फेमिनिज्म कोई हवाई चीज़ थोड़े, न ही मर्दों की बनाई कोई परिपाटी जिसका परिपालन करना अनिवार्य हो ये तो उनका अपना चुनाव है जिसमें नियम भी उनके और तौर-तरीके भी उनके अपने है अतः इसमें दखल देने वाले को गाली ही पड़ेगी चाहे फिर वो कोई स्त्री ही क्यों न हो जैसा कि इस मामले में हुआ ‘स्मृति ईरानी’ की कल पूरी तबियत से इज्जत आफजाई की गयी फेक फेमिना ब्रिगेड के द्वारा जय हो फेमिना देवी की जो सदैव अविजित रहती है           

कल भी यही सब सोशल मीडिया पर सारा दिन व रात देखने को मिला जिसके बाद यही निष्कर्ष निकला कि, “नारी ही नारी की दुश्मन होती है” इसे झुठलाना ‘डॉन’ को पकड़ने की तरह ही नामुमकिन है

इति सिद्धम...☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२५ अक्टूबर २०१८

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