बुधवार, 24 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२८५ : #शरद_पूर्णिमा_का_चांद_खिला #वाल्मीकि_जयंती_से_हर्ष_दुगुना_हुआ




बरषा बिगत सरद ऋतु आई। लछिमन देखहु परम सुहाई॥
फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥

श्रीरामचरित मानस में शरद ऋतू के आगमन का वर्णन इस प्रकार है जब भगवान श्रीराम अपने अनुज से कहते है... “हे लक्ष्मण! देखो वर्षा बीत गई और परम सुंदर शरद ऋतु आ गई। फूले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई। मानो वर्षा ऋतु ने कास रूपी सफेद बालों के रूप में अपना वृद्धकाल प्रकट किया है”।

बारिश के जाते ही मौसम परिवर्तन के साथ ही वातावरण ही नहीं अपने भीतर भी कई तरह के बदलाव महसूस होते है जिनके साथ सामंजस्य बिठाने हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने बड़े सुनियोजित तरीके से ऐसे विधि-विधान बनाये जिन्हें अपनाकर हम अपने शरीर को स्वास्थ्य रखते हुये हर तरह के मौसम के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चल सकते हैं

आज शरद पूर्णिमा एक ऐसी ही रात जिसका आध्यात्मिक, सामजिक, मानवीय, वैज्ञानिक व स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बहुत महत्व है इस दिन चन्द्रमा पृथ्वी के इतना निकट आ जाता कि बहुत बड़ा दिखाई देता और सोलह कला पूर्ण होने के कारण उसकी चांदनी में घुली अमृत बूंदें हमारे तन-मन पर बरसकर उन्हें पुनर्जीवन देकर नूतन ऊर्जा से भर देती है

आज की रात खुले आसमान में घर की छत या बाहर आंगन में खीर बनाकर रख दी जाती जिससे कि वो औषधि में बदलकर हमारे अंतर के रोग व विषाद को दूर कर सके जो लोग वेद-पुराणों के इस धार्मिक तर्क को नहीं मानते क्योंकि, ऐसा करने से उनकी आधुनिकता पर प्रश्नचिन्ह लगता और जो ऋषि-संत-मुनि के साथ-साथ धार्मिक शब्द पढ़कर ही बिदक जाते

उनके लिये इसका वैज्ञानिक पक्ष यह हैं कि, “दूध में लैक्टिक एसिड और अमृत तत्व होता है जो चन्द्र किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है तथा चावल में स्टार्च होता है जो इस प्रक्रिया को आसान बनाता है” इस रहस्य को हमारे संत-मुनियों ने किसी सुसज्जित प्रयोगशाला में उपकरणों की मदद से नहीं बल्कि, अपने तपोबल व व्यवहारिक ज्ञान से जाना अतः यह अधिक महत्वपूर्ण है

वैज्ञानिकों ने अपने अलग-अलग शोध से ये भी जान लिया कि दूध से बने उत्पाद का यदि चांदी के पात्र में सेवन किया जाये तो अति-उत्तम होता क्योंकि, चांदी में रोग-प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है इसलिये आज की रात आसमान के नीचे रखी खीर को खाने से बहुत-से चर्म रोग, अस्थमा, दिल की बीमारियां, फेफड़ों की बीमारियां और आंखों की रोशनी से जुड़ी परेशानियों में भी कई गुना लाभ होता है

आश्विन माह की पूर्णिमा का केवल इतना ही महत्व नहीं है इस दिन आदिकवि वाल्मीकि की जयंती का होना भी इसे दुगुना उत्साहवर्धक बना देता जिन्होंने रत्नाकर डाकू से प्रायश्चित्त स्वरुप तपस्यारत होकर जब ‘ऋषि’ का स्वरुप पाया तो सिर्फ मन का कलुष ही नहीं उनका सम्पूर्ण चिन्तन ही बदल गया और क्रोंच पक्षी के शिकार ने उनके भीतर छिपे कवि को जागृत कर दिया जिसके बाद उन्होंने अपनी लेखन क्षमता से अविश्वसनीय काव्य रचा

वाल्मीकि कृत रामायण ने ही सर्वप्रथम हमें महानायक श्रीराम से परिचित करवाया और उनके जीवन-चरित्र से हमने मानव के चरित्रिक गुणों की श्रेष्ठता को जाना कि जब वो चरम पर पहुँचती तो साधारण इन्सान भगवान् बन जाता है और उसकी कृपा का प्रथम अनुभव उन्हें तप के दौरान हुआ तो उन्होंने इसे लिखने का निश्चय किया जिससे कि आम जन भी जान सके कि एक आदर्श परिवार, निश्चल भात्र प्रेम, उच्च वैवाहिक सम्बन्ध, दुष्ट विनाश, राम राज्य किस तरह से स्थापित होता तो उन्होंने इसे शब्दों में ढाला

आज सोशल मीडिया पर अनगिनत लोगों को भक्तों से ज्यादा राम नाम का जाप करते देखती तो अनायास ही उनकी जयंती का मनाये जाना प्रासंगिक लगता कि जिस तरह वाल्मीकि उल्टा नाम लेकर भी तर गये उसी तरह ये दुष्ट प्रवृति के भटके लोग भी एक दिन जरुर सद्गति पायेंगे वैसे भी राम कथा में वर्णित है कि, रावण भी ज्यादातर समय राम-राम नाम ही कहता था जिसने उसको स्वर्ग में स्थान दिया तो ऐसे में इनके द्वारा किसी भी प्रयोजन से ‘राम’ लिखना अच्छा ही है आखिर, कलयुग नाम अधारा ही तो है
      
सभी को इस परम पावन दिवस की शुभकामनायें... जिसमें दो शुभ तिथियों का संगम है... मतलब दुगुना लाभ... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२४ अक्टूबर २०१८

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