सोमवार, 1 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२७२ : #बुढ़ापा_एक_दिन_में_नहीं_आता #अनुभवों_की_धुप_में_पककर_ही_तो #सफेद_रंग_है_चढ़ता




जिस देश की सभ्यता-संस्कृति कभी विश्वपटल पर उसकी पहचान थी अब वही अपनी नवीनतम पहचान के लिये पश्चिम की तरफ देख रहा है और जो कभी दुनिया का गुरु कहलाता था आज वही उन देशों से सीख रहा है जिन्होंने कभी जीने की कला उससे सीखी थी ये सब एक स्तर तक ठीक जब तक कि अपनी वैयक्तिक पहचान कायम रहती और हम उन पुरातन रीति-रिवाजों का खोल उतारकर नूतन आधुनिकता का लिबास पहन लेते जिनकी वजह से हम विकसित देशों की सूची में निचले पायदान पर है

लेकिन, हमारा लक्ष्य तो  अपने देश का विकास नहीं बल्कि, खुद की तरक्की है तो हम उन मॉडर्न लोगों के साथ बराबरी से खड़े होने की जल्दी में उनकी उन गलत बातों का भी अनुकरण करने लगे जिनकी वजह से हमारी शक्ल-सूरत ही बिगड़ गयी और जहाँ कभी बुजुर्गों का सम्मान होता था आज वहीँ वृद्धाश्रम की संख्या में लगातार इजाफ़ा हो रहा जो हमारे नैतिक पतन को दर्शाता है

बाहरी तौर पर भले हम आधुनिक नजर आये आंतरिक रूप से खोखले होते जा रहे कि कोई भी देश हो वो अपनी जड़ों को कभी नहीं काटता न अपनी ही बुनियाद हिलाता जिस पर उसका वजूद खड़ा हुआ मगर, हम ऐसे नहीं हैं नकल करते समय खुद को भूल जाते पूरा का पूरा दूसरों के रंग में रंग जाते जिसका नतीजा कि न तो पूर्व, न ही पश्चिम का ही अवतार नजर आते बल्कि, आधे शेर तो आधी लोमड़ी की तरह दिखाई देते

क्योंकि, हम पूरी तरह से कुछ भी न बन पाते और आज इसी संक्रमण काल से देश गुजर रहा जब देशी धून पर विदेशी राग गाया जा रहा जिससे न तो व्यक्ति सुर और न ही संगीत का ही आनंद ले पा रहा कि कर्कश ध्वनी से उसका ही कान फटा जा रहा फिर भी दौड़ ऐसी कि रुकना नहीं चाहता इसी वजह से थमकर चिंतन, मनन नहीं हो रहा तो अंधानुकरण किया जा रहा फिर भला क्यों न भेड़ें गड्डे में गिरे जबकि, अपने सच्चे स्वरुप को कायम रखते हुये उस पर नये जमाने का पोलिश करना मुश्किल नहीं पर, बुत को तोड़कर नया बनाने में जो मेहनत मशक्कत उससे इंसान घबरा जाता तो केवल उपर से मुलम्मा चढ़ाये जाता सच्चाई को छिपाये जाता ऐसा ही बुजुर्गों के प्रति उपेक्षा का बाव रखा जा रहा जो सरासर गलत है
        
जीवन के अनेक पड़ावों से गुजरकर बरसों की खाक सर में मले बुजुर्गों के पास अनुभवों का खजाना होता है और यौवन के जोश से भरे युवाओं के पास उन अनुभवों से सबक लेकर कार्य करने की शक्ति व जोश तो यदि मिल जाये ये दोनों हो जाये अगर, तजुर्बे और अनुभवहीनता का संगम और साथ हो बुढ़ापे और जवानी तो जीवन के रास्ते में आने वाली कठिनाइयों को हंसकर पार कर सकते है ।

सयुंक्त परिवार के जमाने में जबकि, सब मिलकर साथ रहते थे तब अक्सर ही ऐसे अवसरों पर जबकि, युवा मन भटकने लगता या उसे कोई राह सुझाई न देती घर के वृद्धजन डगमगाते कदमों को थाम लेते थे और कानों में फूंक देते थे कोई प्रेरक मंत्र जिसे सुनकर कमजोर होती जवानी खुद पर काबू पा कठिनाई या कमजोरी के उन लम्हों को पार कर लेती थी जिसका प्रभाव उनके माता-पिता पर न पड़ता घर की उच्च पीढ़ी इसे बेहतर तरीके से संभाल लेती थी इसलिए पोता-पोतियों का अपने दादा-दादियो से गहरा जुड़ाव होता था जो सब नदारद क्योंकि बरगद सी ये छांव भी तो अब घरों से गायब हो चुकी है ।

_____________________________________________________
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
०१ अक्टूबर २०१८

कोई टिप्पणी नहीं: