बुधवार, 31 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२९१ : #लौह_पुरुष_एवं_लौह_महिला_के_प्रतीक #सरदार_वल्लभ_भाई_पटेल_और_इंदिरा_गांधी




ये देश अगर बोल सकता तो बताता कि किस तरह के मंजर उसने देखे, कैसे हालातों से वो गुजरा, कितने राजा-महाराजा आये और चले गये, कितने शत्रुओं ने हमले किये और कितनों ने शासन कितनी बार किया, कितनी तरह से हर हुक्मरान ने उसका नक्शा बिगाड़ा उसकी वास्तविक पहचान बदल दी तो कितने उसके टुकड़े कर अलग-अलग हिस्से या देश बना लिये उसकी संतानों के साथ किस तरह दुर्व्यवहार किया गया, कितने जुल्मों-सितम सहने पड़े, कितना उसके साथ खिलवाड़ किया गया और कितने ज़ालिमों ने कितनी बार, कितने तरीकों से उसे समूल मिटाने का प्रयास किया

चूंकि, वो बोल नहीं सकता तो जो हम सबने इतिहास में पढा और जाना उसके आधार पर ये निष्कर्ष निकालते कि आज जो इसका स्वरूप है वो एक दिन में नहीं बना इसे बनाने-संवारने में भी कई लोगों का योगदान है जिसमें सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण सहयोग ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल जी’ का है जिन्होंने बड़ी कठिन लड़ाई से हासिल हुई आज़ादी के बाद इस देश के टुकड़ों को जोड़कर इसे एक आकार देने में सबसे कठिन पर, सबसे प्रभावी भूमिका निभाई । इसके अतिरिक्त इसे बचाने सजाने-संवारने में भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री ‘प्रियदर्शिनी इंदिरा गाँधी’ की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता जिनके कुछ अति-महत्वपूर्ण निर्णयों ने ‘सरदार पटेल’ के इस भारत के स्वरुप को यथावत रखने का प्रयास किया

स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद सबको लग रहा था कि देश की अखंडता को अक्षुण्ण रखना मुश्किल ही नहीं असंभव काम भी है क्योंकि हर रियासत के प्रतिनिधि को ये समझाना कि उसका राज-पाट अब समाप्त हो गया और स्वतंत्रता पश्चात उसे एक सामान्य व्यक्ति या भारतीय नागरिक के रूप में ही अपना जीवन गुजारना होगा कहने में जितना सरल लग रहा उतना ही दुष्कर उसे आत्मसात करना होगा तो इस नामुमकिन काज के लिये लौह पुरुष कहलाने वाले असाधारण व्यक्तित्व के धनी ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल’ को चुना गया

उन्होंने भी एड़ी-चोटी का जोर लगाकर जहां जिस तरह से संभव हुआ उस तरह से उन हुक्मरानों को अपना साम्राज्य छोड़कर एक देश, एक शासन के लिये तैयार किया और वो कर दिखाया जिसने उनका कद इतना बड़ा बना दिया कि उनके द्वारा किये गये उस चमत्कार को सम्मान दिलाने विश्व में उनकी इतनी ऊंची प्रतिमा बनवाई गई जो ये दर्शा सके कि इस व्यक्ति के योगदान की ऊंचाई इतनी अधिक है जिसके समकक्ष कोई खड़ा नहीं हो सकता क्योंकि, यदि वे नहीं होते तो चाहे जो होता पर, देश का जो स्वरूप हम सब आज देख रहे वो कतई नहीं होता ।

इसी तरह ‘इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी’ का बाहरी व्यक्तित्व भी आम महिला से न केवल भिन्न बल्कि, आंतरिक रूप से इतना मजबूत व सक्षम था कि उन्होंने बाल्यकाल से ही अपनी उस नैसर्गिक क्षमता का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया भले ही वो अपने साथियों के साथ बनाई गई 'वानर सेना' हो या स्वतंत्रता संग्राम के लिये चलाये जाने वाले अभियानों में भागेदारी उन्होंने अपनी सूझ-बूझ व बुद्धि से अपनी उम्र ही नहीं अपनी बिरादरी से आगे बढ़कर काम किया जिसने उनके अंदर हौंसलों का ऐसा इस्पात भर दिया कि वे महिला होते हुए भी आयरन लेडी कहलाई गयी

जिसकी वजह उनके विपरीत परिस्थितियों में लिये गये सटीक निर्णयों को जाता है जिन परिस्थितियों में पुरुष बुद्धि भी सोचना-समझना छोड़ देती या उसे आगे राह दिखाई नहीं देती वहां वे अपनी प्रखर बुद्धि व गंभीर विवेक से ऐसा आंकलन कर लेती जो उनके फैसलों को प्रभावशाली बना देता तो उनकी तेजस्विता को भी बढ़ा देता जिसके आगे टिक पाना सबके वश की बात नहीं क्योंकि, भीतर का तेज बाहर चेहरे ही नहीं वाणी में भी ऐसा ओज भर देता जिसे सहन कर पाना सबके बूते की बात नहीं होती

ऐसे में सामने वाले के पास हथियार डालने के सिवा कोई विकल्प नहीं होता तो जब वे भारत देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनी तो उनके कार्यकाल में उनको कुछ ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ा जहां कोई भी चूक या छोटी-सी भी गलती एक तरफ जहां देश की अस्मिता को नुकसान पहुंचा सकती थी तो वहीं दूसरी तरफ देशवासियों की एकता-अखंडता को भी खंडित कर सकती थी पर, उनके पास ऐसी कोई दिव्य शक्ति या ईश्वरीय आशीर्वाद था कि वे उनसे न केवल बाहर निकली बल्कि, इतिहास में अपने उस साहसिक कदम हेतु अपना अलग स्थान बनाया व नया कीर्तिमान भी स्थापित किया जिससे आगे निकलना अभी किसी के बूते की बात नहीं ।

आज जहां लौह पुरुष की जयंती 'एकता दिवस' तो लौह महिला की पुण्यतिथि भी साथ-साथ मनाई जा रही है । भले ही दोनों ही सदेह उपस्थित नहीं पर उनकी अदृश्य काया हमारे आस-पास मौजूद है उनके इस महत्वपूर्ण दिवस पर उनको शत-शत नमन... !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३१ अक्टूबर २०१८

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