मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२८४ : #लघुकथा_जेंडर_इक्वलिटी




एक्सक्युज मी, क्या आप मेरे लिये दिल्ली तक का एक टिकट खरीद देंगे लाइन बड़ी लम्बी है और महिलायें तो हेल्प करने से रही तो प्लीज... आप अपने साथ-साथ मेरी भी एक खरीद ले उसने अपने हुस्न का भरपूर जादू चलाये हुये अर्थपूर्ण नजरों से उस लडके को देखा फिर कातिलाना मुस्कुराहट के साथ उस लड़के से कहा    

उसने मुडकर उसे देखा उसे लगा कि वो इस चेहरे को पहचानता है पर, उसे कहाँ देखा याद नहीं आ रहा था तो असमंजस की स्थिति में उसने उसके द्वारा थमाये रूपये अपने हाथ में ले लिये पर, दिमाग बेतरह उस सोच में उलझ गया था कि इसे कही तो देखा है पर कहाँ सुई अटक गयी थी ?

लाइन से आकर उसने उसे टिकट थमाई थी कि ट्रेन आ गयी उसका बैग बड़ा व भारी था तो उसने लडके से हेल्प करने कहा और इस तरह दोनों एक साथ एक ही कोच में चढ़ गये पर, भीड़ अधिक होने से उन्हें बैठने की जगह नहीं मिली तो खड़ा होना पड़ा वो उससे पुछना चाह रहा था कि वो क्या कभी पहले मिले है कि तभी उसने देखा वो सामने बर्थ पर बैठे आदमी पर भी अपनी अदाओं का जलवा बिखेरते हुए थोड़ी-सी जगह बैठने को मांग रही है और, ये क्या देखते-देखते वो कामयाब भी हो गयी जिसके बाद वो उस व्यक्ति से बातों में मशगूल हो गयी तो उसे भूल गई तब उसने खड़े-खड़े टाइमपास करने के इरादे से जेब से मोबाइल निकाला और चलाने लगा तभी उसके दिमाग की बत्ती जली और उसे याद आ गया कि उसने उसे कहाँ देखा है

जैसे ही स्टेशन आया वो उसके पास आई और अपने चेहरे को उसके करीब लाते हुये बोली प्लीज बैग नीचे रखवाने में मेरी मदद कर दीजिये बहुत भारी है तब उसने उसका बैग उतारकर नीचे रखा और व्यंग्यपूर्ण तरीके से उसको देखते हुये कहा, आप तो वही ‘फेमिनाजी’ है न जो फेसबुक पर जेंडर इक्वलिटी के लिये कई कैम्पेन चलाती है और उसे उसी तरह शॉकिंग अवस्था में छोड़ बिना मुड़े चला गया
  
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२३ अक्टूबर २०१८

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