सोमवार, 15 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८२८६ : #हिन्दी_साहित्याकाश_का_उजाला #महाकवि_सूर्यकांत_त्रिपाठी_निराला




दुख ही जीवन की कथा रही
क्या कहूँ आज, जो नहीं कही

अपने नाम के अनुरूप वे सूर्य ही थे जिनके व्यक्तित्व व कृतित्व की रौशनी ने उनके आस-पास ऐसा आभामंडल रच दिया कि आज तलक वे हिन्दी साहित्य के आकाश पर एक विराट सूरज के समान दीप्तिमान दिखाई देते है उनका जन्म परतंत्र भारत में हुआ तो उस कालखंड की विषमताओं को भी उन्होंने जिया और अपनी कलम को क्रांति का जरिया बनाया जिसके शब्दों ने उस समय प्रचलित कुरीतियों पर प्रहार किया तो साथ ही देश राग भी छेड़ा जो भारतमाता के लालों की रगों में बहते लहू में जोश भरे

भारति, जय, विजय करे
कनक-शस्य-कमल धरे
लंका पदतल-शतदल
गर्जितोर्मि सागर-जल
धोता शुचि चरण-युगल
स्तव कर बहु अर्थ भरे

विजय की कामना से ऐसे गीत रचे जो प्रेरणा का स्त्रोत बनकर जोश का संचार करते रहे और जिन माँ सरस्वती ने उनकी कलम में ये शक्ति दी कि वे सतत रचना करते रहे और सदैक सार्थक रचनाकर्म करे इसलिये उन्होंने अपना जन्मदिन भी माँ शारदा की जयंती को समर्पित करते हुये ‘बंसत पंचमी’ घोषित कर दिया जिससे कि जब भी भक्तगण विद्या-बुद्धि व कला की देवी माँ सरस्वती की पूजा-अर्चना करें उनका जयंती समारोह मनाये तो उनके इस पुत्र का भी स्वतः ही स्मरण कर ले इसलिये उनके प्रति भी उन्होंने अपने मन के भावों को पन्नों पर इस तरह उकेरा कि आज भी सरस्वती वन्दना की बात हो तो सबके लबों पर अपने आप ये शब्द उभर आते है...

वर दे, वीणावादिनि वर दे
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे !

उन्होंने अपनी कलम से साहित्य को नवीन विधा का उपहार भी दिया जिसकी वजह से आज हम उन्हें भी कविता का सृजन करते हुये द्केहते जिन्हें छंदों का ज्ञान नहीं है क्योंकि, छंदबद्ध रचना का निर्माण सबके लिये संभव नहीं होता उसकी विशेष शैली व् नियम-विधान को ध्यान में रखते हुये बंधन में बंधकर वर्णों को लिखना ये सबके वश की बात नहीं लेकिन, उन्हें मुक्त रूप से जिस तरह वे जेहन में आते उसी तरह से पन्नों पर लिख देना सहज व सरल तो इस तरह से उन्होंने ‘नई कविता’ की आधारशिला रखी अपनी कविताओं के माध्यम से जिनमें उन्होंने अपने भाव को कागज पर उन्मुक्त रूप से प्रवाहित होने दिया तो इस तरह से जो निर्मित हुआ उसने उन्हें एक नवीन शैली का निर्माता बना दिया...

विजन-वन वल्लरी पर
सोती थी सुहाग भरी स्नेह स्वप्न मग्न
अमल कोमल तन तरुणी जूही की कली
दृग बंद किये, शिथिल पत्रांक में
वासन्ती निशा थी

उन्होंने केवल कविता ही नहीं गीत, बाल गीत, छंदमुक्त, कहानी, व्यंग्य, अनुवाद आदि की भी रचना की और अपने अद्भुत लेखन से उन्होंने ‘छायावाद’ को नूतन आयाम दिये उनकी रचनाओं का प्रभाव कालातीत है और हम सब आज भी उसका रसास्वादन करते है उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें क्या शब्दांजलि दे उनके ही शब्दों से आज उनको अपने मनोभाव अर्पित करें...

जैसे हम हैं वैसे ही रहें,
लिये हाथ एक दूसरे का
अतिशय सुख के सागर में बहें।

मुदें पलक, केवल देखें उर में,-
सुनें सब कथा परिमल-सुर में,
जो चाहें, कहें वे, कहें।

वहाँ एक दृष्टि से अशेष प्रणय
देख रहा है जग को निर्भय,
दोनों उसकी दृढ़ लहरें सहें।

शत-शत नमन महाकवि शब्द साधक को...!!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१५ अक्टूबर २०१८

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