गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-२८९ : #महिषासुर_मर्दिनी #माँ_दुर्गा_जगत_जननी




‘दुर्गा सप्तशती के द्वितीय अध्याय में मां जगदम्बा के प्रादुर्भाव का विस्तृत वर्णन है कि, किस तरह देवताओं के तेज से माँ दुर्गा का सम्पूर्ण अस्तित्व निर्मित हुआ और फिर किस तरह सभी देवताओं ने उन्हें अपने अस्त्र-शस्त्रों में से भिन्न आयुध देकर उनको शक्तिशाली बनाया ताकि, वे रणभूमि में महाशक्तिशाली ‘महिषासुर’ का अंत कर ब्रम्हांड को उसके अत्याचारों से मुक्त कर सके

वो ‘महिषासुर’ जो अपने अविजित यौद्धा व परम वीर होने के कारण झूठे भ्रम में अहंकारी ही नहीं कामी, लोभी, दम्भी, लुटेरा व अत्याचारी भी बन चुका था और उसके राज में कोई भी सुखी नहीं था ऐसे में पृथ्वी को उसके आतंक से मुक्त कराने करुण स्वर में सभी देवताओं ने त्रिदेवों से प्रार्थना तथा माता की वंदना की तो वे उन्हीं देवताओं के अंतर में से एक विराट तेजपुंज के रूप में प्रकट हुई ।

‘महिषासुर’ उसी तरह का आतंकवादी या मानवता का दुश्मन कहा जायेगा जिस तरह से आज के समय में सद्दाम हुसैन, ओसामा बिन लादेन, अफजल गुरु, कसाब या अन्य आतंकी है जो केवल अपनी स्वार्थपूर्ति के लिये निर्दोष, मासूम व निरीह लोगों पर आक्रमण करते दूसरों को अधिकार छीनते ताकि उनका साम्राज्य स्थापित हो सके

वही वो दुष्ट संहारक भी कर रहा था जिसका अंत करने पालक जगतजननी ने मारक ‘दुर्गा’ का अवतार लिया पर, आज कुछ लोग अपने निज लाभ के लिये गलत प्रचार-प्रसार कर सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों से ये झूठ निर्मित करने का संगठित प्रयास कर रहे कि वो एक अच्छा इंसान था जिसे मां दुर्गा ने धोखे से मार दिया और वे उनकी पूजा करते अतः उनको महिषासुर मर्दिनी स्वरूप में दर्शाना या उस राक्षस को मारते दिखाना गलत है

ऐसे में उन ‘जयचन्दों’ की मानसिकता समझ में आती जिन्होंने इस देश के एक वर्ग विशेष को दिग्भ्रमित कर देश को इस अवस्था में पहुंचा दिया कि आज रावण, महिषासुर, कंस जैसे असुरों को मारना या उनका दहन करना गलत व अमानवीय प्रचारित किया जा रहा और जिनको न तो धर्म का ज्ञान न ही इन चरित्रों की जानकारी वे भी उनके सुर में सुर मिलाकर असुर गान करने में जोर-शोर से जुटे है

पर, भूल जाते कि, सौ गीदड़ मिलकर भले अकेले शेर का शिकार कर ले पर, उसके वंश का नामोनिशान नहीं मिटा सकते वो भले अल्प या कम या विलुप्ति की कगार पर हो पर फिर भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है और किसी ‘रंगे सियार’ को अपनी गद्दी पर नहीं बैठने देगा चाहे वो कितना ही जोर लगा ले या खुद को तिलकधारी या फिर देवी-देवताओं का सबसे बड़ा उपासक ही क्यों न साबित कर दे पर, जिनके रक्त में ही मिलावट उनसे ईमानदारी की उम्मीद करना मूर्खता है ।

‘देवी’ ने अपने संकल्प बल से अपने आपको अनेकों रूपों में विभक्त कर ‘महिषासुर’ की विशाल सेना के साथ-साथ उसका ही नहीं धूम्रलोचन, रक्तबीज, चण्ड-मुण्ड, शुम्भ-निशुम्भ आदि का भी वध कर दिया और ये वचन दिया कि जब भी उनकी आवश्यकता होगी वे पुकारने पर आ जायेंगी और इसी तरह से पुनः धर्म की स्थापना करेंगी तो हर आस्थावान धार्मिक व्यक्ति इस पर पूर्णतया विश्वास कर के उनकी आराधना करता और उनकी सूक्ष्म उपस्थिति को नौ दिनों में अपने आस-पास महसूस करता इसलिये निडर होकर जीता कि अधर्म कितना भी बढे, पाप कितने भी हो फिर भी वे कभी भी धर्म को विस्थापित न कर पायेंगे उसके पहले ही या तो भगवान कोई न कोई अवतार धरकर उसका सर्वनाश कर देंगे या फिर उसे ही इतना साहस, बल देंगे कि वो शिवाजी महाराज की तरह ये बीड़ा उठा सके ।

उसे ये भी पता कि, धर्मपथ पर जो चलता उसकी परीक्षा भले हो पर अंततः वही जीतता तो यही विश्वास उसे पथभ्रष्ट नहीं होने देता और जहां उसे कुछ गलत दिखाई देता वो विरोध अवश्य करता और जब लगता कि ये उसके अकेले के वश की बात नहीं तो वो मां को उनके वचन का स्मरण कराता और हर साल माँ से आसुरी शक्तियों से निपटने का वरदान मांगता आज नवम दिवस ‘माँ सिद्धिदात्री’ से सबकी यही मनोकामना कि वे इसी प्रकार साल दर साल सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर लोगों को भटकने से बचाये सही-गलत का भेद बताये कि, ‘महिषासुर’ इसलिये पूजनीय या क्षम्य नहीं कि वो एक दुष्ट राक्षस था जिसने लोगों पर उसी तरह से प्रहार किये जिस तरह जनरल डायर ने निर्दोषों बेकुसूरों को मारा था भले, वो ब्रिटिश सरकार का नायक हो पर, हमारा नहीं हो सकता और जो उसकी पूजा करेगा या उसे भगवान मानेगा कोई ‘उधम सिंह’ उसे उसके घर में जाकर मारेगा क्योंकि, कोई भी आतंकवादी भले उसमें हजारों गुण भरे हो हमारा आदर्श नहीं हो सकता कतई नहीं रावण, महिषासुर का यही अंत था यही होगा सदैव उसका महिमामंडन करना अमानवीय और असंवैधानिक है

शयद, यही वजह कि अज्ञानता से ज्यादा खतरनाक या घातक कु-ज्ञान या कुमति दुर्जनों को कहा गया जो अपने ज्ञान का दुरपयोग कर भोले-भाले लोगों को गुमराह ही नहीं धर्मभ्रष्ट भी करते ऐसे बुद्धिजीवियों व बिकी कलम वालों से दूर रहे जो अपनी बौद्धिकता का सौदा कर भारत देश की नींव को कमजोर करने में लगे... अपनी पूर्ण श्रद्धा भक्ति से अपने धर्म का पालन करें तीज-त्योहारों का आनंद ले क्योंकि, स्वधर्म में मरना भी हितकर है जबकि, दूसरों के धर्म को अपनाना या उसका होकर जीना घृणित है

शारदीय नवरात्र के नवे दिन माँ जगदम्बा से यही प्रार्थना कि फिर से जो आसुरी शक्तियाँ सर उठा रही उनको सद्बुद्धि दे नहीं तो हमको ऐसी सुमति दे कि हम उनका दमन कर सके... या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः... इसी मनोकामना के साथ सबको दुर्गा नवमी की शुभकामनायें... ☺ ☺ ☺ !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१८ अक्टूबर २०१८

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