शनिवार, 20 अक्तूबर 2018

सुर-२०१८-३०१ : #रेहाना_फ़ातिमा_सबरीमाला_मंदिर_क्यों_जाना_चाहती_है #क्या_नौशाद_अहमद_खान_को_वाकई_महिलाओ_की_चिंता_है #क्या_सबरीमाला_मन्दिर_में_सचमुच_महिलाओं_का_प्रवेश_वर्जित_है



(केवल सच्चे हिन्दू ही इसे पढ़े और हो सके तो शेयर भी करें)
 
#रेहाना_फ़ातिमा_सबरीमाला_मंदिर_क्यों_जाना_चाहती_है?

मैं जानती हूं कि, मेरे इस सवाल पर बड़ी बिंदी गैंग वाली और सो कॉल्ड फेमिनाज कूद-कूद कर आयेंगी और कहेंगी कि इसमें गलत क्या है एक तो वो दूसरे मजहब की अपने धर्म की मस्जिदों-दरगाहों को ठुकराकर गैर धर्म के मंदिर में आना चाहती और एक हम है दुष्ट जो उसके श्रद्धा-भक्ति पर सवाल उठा रहे ये तो बहुत नाइंसाफी है ।

भारत में जब से फेमिनिज्मआया इसके वास्तविक मायने को न समझ खुद को प्रोग्रेसिव, अल्ट्रा मॉडर्न और अति बौद्धिकवादी समझने वाली महिलाओं ने झट इसे लपक लिया क्योंकि, यही वो उनका ब्रम्हास्त्र जिसकी आड़ में वो अपने बड़े से बड़े घृणित कारनामों और अपनी दमित इच्छाओं को नारीवाद का नाम देकर न केवल पूर्ण कर सकती बल्कि, दूसरों को गरिया कर मनमाने तरीके से कुतर्कों का सहारा लेकर खुद को अपने हिसाब से अबला या सबला साबित कर सकती ।

इसलिये कोई भी मुद्दा हो ये बहनजी उसे सीधे ले जाकर फेमिनिज्म से जोड़ देती और अपने ऊपर हुये अत्याचारों के रोना रोकर अपनी बात मनवाना चाहती यदि उससे काम न चले तो संविधानका अचूक अस्त्र तो है ही जिसके आगे कानून, न्यायालय भी धराशायी तो फिर उसका सहारा लेती याने की येन केन प्रकरेण अपने आपको सिद्ध करने का कोई मौका न छोड़ती फिर भी जो सामने वाले उनकी बात न माने तो अब मी टूकी धमकी भी उनकी जेब में जिसका बेअसर होना नामुमकिन क्योंकि, इसमें तो न गवाह, न सुबूत केवल जुबान चलाना सॉरी कीबोर्ड पर टाइप करना ही काफी है ।

इतने सारे अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित फेमिनाजी की नीयत तब समझ आ जाती जब वो नंगेपन पर उतर आती और धर्म जैसे संवेदनशील विषय को अपने नापाक इरादों ही नहीं अपनी गन्दी मानसिकता से भी गन्दा कर देना चाहती जिसका जीता-जागता नमूना ये रेहाना फातिमाहै । जिसे न तो सबरीमाला मन्दिरके प्रति कोई आस्था है और न ही महिलाओं से ही कोई सहानुभूति इन्हें तो केवल अपनी एजेंसी द्वारा दिये गये एजेंडे के अनुसार हिन्दू धर्म की जड़ो में मठा डालना है ताकि जिनके इशारों पर ये काम कर रही वे खुश होकर इनको इनाम दे दे और ये अगले किसी मामले को उखाड़ना शुरू कर दे ।

इस मकसद से काम करने वाली इस महिला को मंदिर न जाने देना न केवल सही निर्णय है बल्कि इसके जैसे चेहरों को बेनकाब भी करना निहायत जरूरी है क्योंकि ,वे लोग जो पूरा मामला नहीं जानते वे यही समझते कि सबरीमाला मन्दिरमें महिलाओं का प्रवेश निषेध है जबकि हक़ीक़त उलट वहां महिलाएं भी जा सकती है केवल 10 से लेकर 50 साल तक की लड़कियां या औरतें जो कि रजस्वला होती उनका प्रवेश वर्जित है । हम लोगों ने भी जब इस मन्दिर विवाद के बारे में सुना तो यही लगा कि इस मंदिर में महिलाओं को जाने नहीं दिया जाता पर जब उसे समझा तो पता चला कि ऐसा नहीं है इसे जान बूझकर गलत तरीके से पेश किया गया जो कि सुनियोजित षड्यंत्र था ।

ताकि हमारे देश की तथाकथित फेमिनाओं का भी सपोर्ट मिल जाये जो भरपूर हासिल हुआ सब कलम लेकर दौड़ पड़ी वे तो वैसे भी मसले की तलाश में खाली बैठी रहती कोई मिला नही और बिना आगा-पीछा सोचे चालू हो गई पितृसत्ताया मनुवादको गरियाने जो उन जैसे लोगों का लक्ष्य होता । इनको पता भी न चलता कि ये सब तो मुफ्त में ही उनकी स्वयंसेवक बनकर उनका काम आसान करती तो यही हुआ इस मामले में भी हमारे यहां की बुद्धिGB पत्रकारों ने जमकर लिखा और उनको बिना पैसा खर्च किये प्रचार-प्रसार मिला जिससे उनका काम आसान हुआ । जिसका नतीजा की सबरीमाला मंदिरमें हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी हटी और सबको स्वीकृति मिली उस सुप्रीम कोर्ट द्वारा जिसे इस पर फैसला देने से पहले ये जानने से कोई सरोकार नहीं कि ये याचिका लगाने वाले कौन है या किस धर्म के है उन्हें तो बस संविधान की धारा के विरुद्ध लगा और लिख दिया एक गलत निर्णय जिसका खामियाजा हमेशा की तरह निर्दोष भुगत रहे ।

रेहाना फ़ातिमाकी विकृत मानसिकता को उनके द्वारा चलाये गये इवेंट्स से समझा सकता है जिनका कोई सामजिक सरोकार नहीं सिर्फ दुनिया को धोखा देने उपर से सोशल एक्टिविस्ट का चोला ओढ़ा जाता भीतर मगर, वही गंदगी भरी होती । ये वे अभियान होते जो केवल भारतीय संस्कृति को भ्रष्ट करने के लिये विदेश फंड्स से प्रायोजित किये जाते चाहे फिर वो #KissOfLove, #NoPantyDay जैसे हो जिनके नाम पर कपड़े उतारना या सड़क पर खुलेआम किस या सेक्स करना या मन्दिरों में कमोड बाँटने वाली मशीन लगाने का अभियान चलाना इन्हें कोई गुरेज नहीं क्योंकि, ये तो बेशर्मी की सारी हदों को पार कर के ही यहाँ तक आती तो फिर किस बात की परवाह इसलिये दूसरों को भी अपनी तरह बेइज्जत करना चाहती बड़ी लाइन को छोटा करने का यही शोर्टकट ये जानती है ।

इनकी यही ख्वाहिश थी कि ये अयप्पा स्वामीके मंदिर में जाकर भी वही सब करें यही नहीं अपना इस्तेमाल किया सेनटरी पैड भी वो उनकी मूर्ति पर फेंकना चाहती थी यही वजह कि वहां के बोर्ड ने ये बयान दिया कि ये कोई पिकनिक स्पॉट या मनोरंजन का स्थल नहीं । जिस पर इन तथाकथित फेमिनाओं ने काफी हो-हल्ला मचाया पर इसके पीछे की वजह जानने की कोशिश नहीं की केवल हिन्दुओ को ही दोषी ठहरा अपना फर्ज अदा कर दिया इन्हें नहीं पता कि ये कितने कुत्सित इरादों से भरी हुई है ।

एक बात और समझ नहीं आती कि ये सारी फेमिनाज जो कि सभी तीज-त्यौहारों, रीति-रिवाजों, व्रत-पर्व, ईश्वर का मजाक उड़ाती और जो स्वयं मूर्तिपूजा विरोधक, नास्तिक फिर ये मन्दिर जाने के पीछे क्यों पड़ी ?

इसी से इनके घटिया इरादों को समझा जा सकता जो स्वतः स्पष्ट कि इनका एकमात्र मकसद सिर्फ और सिर्फ हिन्दुओं की आस्था को खंडित करना है । अभी तक तो यही सुनते आये कि यदि कोई मुस्लिम औरत किसी हिंदू देवता के दर्शन करेगी तो उस पर कुफ्र यानि अल्लाह के अतिरिक्त अन्य देवता को पूजने का आरोप लगता और शायद  देह दंड या न्यूनतम स्तर पर समाज से बहिष्कार का सामना उसे करना पडता । पर, इसके लिये अब तक ऐसा कोई फतवा जारी नहीं हुआ और न ही इस तरह की कोई चर्चा हो रही है क्योंकि हर मुस्लिम व्यक्ति जानता है कि रेहाना फातिमामूर्तिपूजा का माखौल उडा कर अप्रत्यक्ष रूप से इस्लाम की सेवा ही कर रही है।

जबकि, हमारे धर्म में ही ऐसे अनगिनत हिंदुओं को रोज फेसबुक पर पढ़ती जो इसके मंदिर प्रवेश को जायज ठहराने तरह-तरह के कुतर्क करते नजर आते जो ईश्वर को एक, और सर्वव्यापक मानकर अल्लाह और अय्यप्पा को एक बताते और भेदभाव को बढावा देने के लिए कट्टरपंथी हिंदुओं की भर्त्सना करते । उनकी ये बौद्धिकता देखकर मुझे अपने अनपढ़, गंवार पूर्वज अधिक ज्ञानी, विवेकशील और बुद्धिमान दिखाई देते जिनके हर विधि-विधान बेहद तर्कसम्मत व वैज्ञानिक जिन्हें समझने में देर लगती । हमारी ये पढ़ी-लिखी फेमिनाजी तभी कोई बात उचित मानती जब वो फोरेन रिटर्न होती तो जिस दिन कोई वैज्ञानिक बतायेगा कि माहवारी के दिनों में मन्दिर जाना गलत तब ये मान जायेगी पर, अपने बुजुर्गों की कतई नहीं सुनेगी वो पितृसत्ता के पोषक जो ठहरे इसी सोच ने तो भारत को इण्डिया बना दिया है ।

वैसे, ये रेहाना फ़ातिमा जी बहुत बड़ी वाली सोशल एक्टिविस्ट तो इनको एक नया काम बताये देती हूँ कि हमारे यहां दिल्ली में हज़रत निज़ामुद्दीन की दरगाह में भी महिलाओं का प्रवेश निषेध है और पूरी दुनिया के मस्जिदों में भी तो जरा उसके लिये भी एक अभियान हो जाये । भगवान् अयप्पा के मन्दिर में जाने की इजाजत किसी भी सच्ची भक्त या श्रद्धालु महिला ने नहीं मांगी क्योंकि वे अपने यहाँ के रीति-रिवाजों को न केवल जानती हैं बल्कि उनका पूरा सम्मान भी करती है इसलिये उनका तो यही कहना कि वे इंतजार कर सकती है । इसकी ये हरकत हमारी हिन्दू आस्था को सीधे सीधे चुनौती है और इस पर जो भी चुप हैं वो हिन्दू तो कदापि नहीं है ।

#क्या_नौशाद_अहमद_खान_को_वाकई_महिलाओ_की_चिंता_है??

अब बात करते है दूसरे सामजिक कार्यकर्ता इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन के नौशाद अहमद खानकी इनको जब पता चला कि सबरीमाला मन्दिरमें १० से लेकर ५० साल की उम्र तक की महिलायें नहीं जा सकती तो इनके पेट में इतनी मरोड़ उठी कि इन्होने अपने मजहब की श्रद्धालु महिलाएं जो बेचारी दरगाह या मस्जिदों में नहीं जा सकती उनको यहाँ भेजने याचिका दायरा कर दी । जिस पर न्यायालय ने बिना विचार किये कि वो मन्दिर कोई आम मन्दिर नहीं साधना का स्थल है निर्णय दे दिया उसे तो लगता सिर्फ, हिन्दू धर्म के खिलाफ निर्णय सुनाने ही नियुक्त किया गया है अन्यथा इतने मामले लम्बित उन पर कोई कार्यवाही नहीं करती । वैसे एक बात समझ में नहीं आती कि इन याचिकाकर्ताओं को तब क्या हो जाता है जब औरतों को ईसाई पादरी तथा मौलवी नहीं बनाये जाने की बात आती है हिम्मत है तो करे याचिका दाखिल सुप्रीम कोर्ट क्या फैसला देती है, या मामला सुनती भी है कि नहीं, देखने काबिल होगा  तब हम मानेंगे कि ये रियल सोशल एक्टिविस्ट है नहीं तो हम विदेशी एजेंट ही समझेंगे ।

#क्या_सबरीमाला_मन्दिर_में_सचमुच_महिलाओं_का_प्रवेश_वर्जित_है???

ये भी एक अर्ध सत्य है कि सबरीमाला मन्दिरमें महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी है जिसकी वजह से इस मामले को इतना तूल मिला और इसे संविधान का उल्लंघन माना गया क्योंकि, इसे बड़े शातिर तरीके से विधर्मियो के द्वारा पेश किया गया जबकि, ऐसा नहीं है न तो यहाँ महिलाओं और न ही किसी भी अन्य धर्म के व्यक्ति के आने पर बंदिश है । ऐसे में ये सवाल ही गलत जो साबित करता है कि स्त्रियों को इस मामले में पुरुषों के बराबर अधिकार है तो इस आधार पर ये नारी अधिकार से जुड़ा हुआ मामला कतई नहीं जैसा कि हम सबको दिखाया गया था । वैसे तो भगवान अयप्पा जी के बहुत मंदिर हैं जो सब के लिए 12 महीने खुले रहते हैं और स्त्री पुरुष सब दर्शन के लिए जाते हैं कोई उम्र की सीमा नहीं पर, ‘सबरीमाला मंदिरका का हिसाब थोड़ा अलग है ।

यहाँ नियम-कायदे कठिन क्योंकि, इस स्थान में पूजा का मतलब सिर्फ़ धूप, दीया, बाती नहीं बल्कि, यहाँ पूजा मतलब तन-मन का शुद्धीकरण होता है । आज से नहीं बल्कि, पिछले 800 साल या उस से भी पहले से ये सनातन परम्परा चली आ रही है जिसके अंतर्गत 40 दिन का व्रत करना होता है, सात्विक भोजन लेना पड़ता है, कठोर ब्रम्हचर्य का पालन करना पड़ता है, गले में तुलसी की माला धारण करनी होती है और पुरुष दाड़ी-बाल नहीं काटते बहुत ही निष्ठा के साथ ये 40 दिन की पूजा पद्धति निभाई जाती है । जिसकी वजह से माहवारी वाली स्त्रियों मतलब १४ साल से बड़ी और ५० साल से कम वालियों को आना मना है क्योंकि, वे ४० दिनों का ये नियम पूर्ण नहीं कर सकती जिसका अपवित्रता से नहीं नियम पालन से कड़ा सम्बन्ध है ।

बाकी आप खुद निर्णय करें क्या सही है, क्या गलत ।

#SaveSabarimala
 
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२० अक्टूबर २०१८

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