गुरुवार, 15 जनवरी 2015

सुर-१५ : 'बेजुबानों के संवाद' !!!

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मित्रों...,

प्रकृति
की
संतान
कर रही पुकार
अब तो सुन ले मेरे य़ार...!!!

हम तो इस सारी कुदरत को सिर्फ़ अपनी ही संपति समझ इसका अपने हिसाब से दोहन और शोधन करते रहते हैं लेकिन ये भूल जाते हैं कि इस पर हमसे ज्यादा उन मूक पशु-पक्षियों को हक़ हैं जो हमारी तरह चालाक-चतुर और दिमाग वाले नहीं होते बल्कि जैसा उन्हें ईश्वर ने रच दिया वैसे ही अबोध रहते हैं हम तो समय के साथ इतने स्वार्थी और मतलबपरस्त हो चुके हैं कि अपनी जरूरत के लिये इन असहाय जानवरों को भी अपना निशाना बना लेते हैं इसलिये आज हमारी ही लापरवाही से प्राकृतिक संतुलन भी खराब होता जा रहा हैं और उसका पलड़ा धीरे-धीरे इतना झुक रहा हैं कि एक दिन एक तरफ सिर्फ हम ही शेष रह जायेंगे और फिर खुद को ही शिकार करना शुरू कर देंगे

वैसे भी कहा जाता हैं कि इंसान से ज्यादा खतरनाक जानवर भी नहीं होता क्योंकि वो तो सिर्फ़ अनजाने में या अपनी फ़ितरत के चलते मनुष्य पर वार करता हैं जबकि हम तो जान-बुझकर अपना काम बनाने के लिये किसी की भी पीठ पर धोखे का छुरा चलाने से बाज नहीं आते  हमारी इस मानसिकता के चलते हमने धरती-आकाश किसी को भी नहीं छोड़ा जंगल हो या श्मशान हर जगह हमारे आश्रय बनाते जा रहे हैं और हम बड़े मजे से खुद का सर छुपाने के लिये उन निरीह जन्तुओं के पांव रखने की जमीन भी छीनते जा रहे हैं ऐसे में जब वो हमारे यहाँ आ जाते हैं तो हम उसे ही दोषी ठहराते हैं और ये भूल जाते हैं कि गलती उनकी नहीं जो वो निर्जन स्थान से हमारी बस्तियों में आ गये बल्कि हम ही ने तो उनको बख्शी गई भूमि पर अपने घर बना लिये

अभी कुछ दिनों पहले हमारे यहाँ एक जंगली जानवर ‘तेंदुए’ के आने की खबर ने सबको ही परेशान कर दिया और सब यही कहते पाये गये कि उसे यहाँ नहीं आना चाहिये कोई भी ये नहीं सोच पा रहा था कि वो नहीं हम उसके यहाँ आ गये वो बेचारा तो अपने उस ठिकाने को ही ढूंढता यहाँ चला आया हैं... इसलिये अब एक मुहिम इन अबोले पशु-पक्षियों की तरफ़ से हम सबको चलाना चाहिये जिसमें उनके शब्दों को आवाज़ देना चाहिये कि वो बेचारे क्या सोचते होंगे आपस में क्या बातें करते होंगे हमारे रवैये को देखकर... ऐसा ही इक ख्याल पेश-ए-नज़र हैं... :) :) :) !!!    
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१५ जनवरी  २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री

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