शनिवार, 24 जनवरी 2015

सुर-३४ : "बसंत आया... मन हर्षाया...!!!"


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मित्रों...,

आता बसंत
मन उपवन में
एक ही बार
खिला देता
अंतर के प्रसून
यही हैं दुआ
न हो इसका अंत ।।

जब ‘बसंत’ का आगमन होता तो प्रकृति भी हो जाती प्रसन्न कि बस अब हुआ खिज़ा का अंत क्योंकि ये ऋतू साथ अपने बहार लेकर आती जिससे धरा से लेकर गगन तक फिज़ा महक जाती और हर एक पीली पत्ती भी हरिया जाती चारों तरफ सुंदरता छा जाती मौसम का ये परिवर्तन बड़ा सुखद होता सबके लिये जिससे आलस्य भी भाग जाता तन-मन नूतन उमंग से झूम जाता तभी तो इसके आगमन का बड़े हर्ष से स्वागत किया जाता इसके साथ ही पांचवे दिन जब माँ सरस्वती की जयंती ‘बसंत-पंचमी’ का सुअवसर आता तो सम्पूर्ण ब्रम्हांड उनका स्तुतिगान कर उनसे ज्ञानदान का वरदान मांगता क्योंकि किसी भी व्यक्ति के पास अपार धन-दौलत स्वस्थ तन हो लेकिन यदि उसके भीतर सद्बुद्धि का प्रवेश न हो तो सब कुछ होकर भी निरर्थक हो जाता विवेक के बिना कोई भी इंसान किसी भी वस्तु का सदुपयोग नहीं कर सकता इसलिये सभी के लिये सर्वप्रथम इसकी आवश्यकता होती हैं जिसके लिये हम सब बुद्धिदायिनी ‘सरस्वती देवी’ की उपासना करते और बचपन से ही हमे प्रातःकाल उठते ही करदर्शन कर उनकी कृपा प्राप्त करने की शिक्षा हमारे पालकों द्वारा दी जाती हैं क्योंकि इससे प्राप्त आत्मबल की ताकत हमें वो क्षमता देती जिसकी बदौलत जीवन की कठिन परिस्थितियों में सही निर्णय क्षमता एवं सतत क्रियाशीलता से विपरीत हालातों पर विजय प्राप्त की जा सकती हैं

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती ।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम ॥

यदि हम थोड़ा-सा विचार करें तो ज्ञात होता हैं कि शारदे माता के सभी प्रतीक चिन्ह किसी विशेष अर्थ को सूचित करते है उनके हाथ की ‘वीणा’ ये दर्शाती हैं कि यदि हम अपने अंतर्मन के सभी तारों को इसी तरह कसकर साध ले तो आजीवन उससे मधुर संगीत गूंजेगा । उनका आसन ‘कमल’ ये बताता हैं कि इस संसार सागर में रहना हैं तो गंदगी के बीच भी कमल की तरह अपना अस्तित्व स्वच्छ सुंदर बनाये रखो और उसके पत्ते की तरह जगत की मोहमाया से निर्लिप्त रहो जैसे कि वो जल के भीतर रहकर भी उससे पृथक रहता हैं । इसी तरह उनका वाहन ‘हंस’ तो सबसे कहता हैं कि जिस तरह वो अपनी पैनी बुद्धि से नीर-क्षीर को अलग-अलग कर देता हैं उसी तरह हम भी अपनी सूक्ष्म मानसिक योग्यता से सही-गलत को पहचान कर उनमें भेद कर सकें । जब उनके सानिध्य में रहने वाली ये सभी वस्तुयें इतने गहरे अर्थ बताती हैं तो उनकी भक्ति करने वाले की बौद्धिकता को जब उनका पारस स्पर्श छू देता तो वो भी कुंदन  की तरह मूल्यवान बनकर अपनी आभा से दूसरों की जिंदगियों को भी रोशन करने का हूनर पा जाता हैं ।

इसलिए सिर्फ एक विशेष दिन ही नहीं जीवन के हर पल हर क्षण हम उस विद्यादायिनी से केवल यही एक वर मांगे कि हे शारदे माँ हमें ऐसी निर्मल पवित्र बुद्धि दे कि हम गलती से भी किसी भी तरह का कोई गलत कदम न उठा सके क्योंकि सिर्फ एक गलत कदम न सिर्फ हमें अपने ध्येय से भटका देता बल्कि हमें पतन के गहरे गर्त में गिरा हमारे जीवन को अंधकार की किसी गहरी सुरंग में तब्दील कर देता हैं... इसलिये सभी पर उनकी अनुकंपा बनी रहे ताकि सब अपनी शुद्ध बुद्धि से जीवन समर में अपनी लड़ाई कुशलता से लड़कर जीत हासिल कर सकें इसी मंगलकामना के साथ आप सभी को बसंतोत्सव की हार्दिक शुभ-कामनायें... :) :) :) !!!   
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२४ जनवरी  २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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