रविवार, 4 जनवरी 2015

सुर-०३ : 'मौसम' का 'कॉम्बो पैक' !!!

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मित्रों...,


जैसे आजकल बदलते युग और तकनीक के साथ एक से अधिक चीजों को साथ बेचने के लिये ‘कॉम्बो पैक’ का आकर्षक ऑफर दिया जाता हैं जिससे कि उत्पादक न बिकने वाला सामान भी ग्राहकों को चाहे-अनचाहे भी टिका देता हैं और खरीदने के बाद समझ में आता हैं कि ये वैसा नहीं जैसे हमने समझा था क्योंकि लुभावने विज्ञापन तो केवल बेचने तक सीमित रहते हैं और खरीदने के बाद पता चलता कि हम ठगे गये या खुद ही उसकी खुबसूरत पैकिंग के कारण लालच में आ गये थे

आजकल वैसा ही कुछ उपरवाले के विभागों में भी देखने आ रहा हैं जब एक के साथ बिना मांगे, बिना चाहे दूसरा मौसम भी चिपककर चला आ रहा हैं शायद, वो भी अब लोगों के इस बदलते मिजाज़ को भांप गये हैं इसलिये हम समझते कुछ और हैं और हमें मिलता कुछ और हैं खैर, उस पर तो हमारा जोर भी नहीं न हमारी पसंदगी से उन्हें कोई मतलब हमें तो केवल जो भी उसके द्वारा दे दिया जाये उसे ही सर झुकाकर कुबूल करना हैं क्योंकि सिर्फ ‘प्रकृति’ तो हैं जिस पर इंसान का कोई जोर नहीं जो भी पूर्वानुमान लगाना हो लगा लीजिये लेकिन वहां से मिलेगा वही जो उसे देना हैं

जब इस पर गंभीरता से विचार करें तो समझ में आता हैं कि दोषी कहीं हम लोग ही हैं जिन्होंने इस अनमोल बेहिसाब कुदरत के खज़ाने का भरपूर दोहन किया और जब उसने बदले में हमें अपना रोद्र रूप या गुस्सा दिखाया तो हम कहने लगते कि अरे, ये इसे क्या हो गया, ये अचानक क्यों बदल गया ??? 

यार, मौसम का तो काम ही हैं बदलना पर ऐसा वो कभी भी न था कि एक की तयशुदा अवधि में कोई और घुसा चला आये लेकिन अब तो हर मौसम के साथ सारे ‘फ्लेवर’ एक साथ मिल रहे हैं यहाँ के राजनीतिज्ञों का अपने मतलब के लिये आये दिन गठबंधन करना या हाथ मिलाना देखकर उसने भी ये हथकंडे सीख लिए हैं और हम पर ही आज़मा रहा हैं अभी भले ही हमें रोना आ रहा हैं लेकिन कुसूरवार तो हम ही हैं इसलिए इसका उपाय भी हमें ही करना होगा और जितना जल्द हो ये समझना होगा कि हम कुदरत के साथ छेड़खानी करेंगे तो इसका खामियाज़ा भी हमें ही भुगतना होगा... और, हम भुगत भी तो रहे हैं... हैं न... :( :’( !!!   
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०३ जनवरी  २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री

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