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मित्रों...,
जिसने मुझे
जन्म, नाम, पहचान
और बोलने की ताकत दी
मेरा वो रचयिता, जनमदाता
छोड़कर मुझे अकेला चला गया
:’( ।
मगर...,
जो कुछ भी
उसने मुझे सिखाया
जो भी उसकी अपेक्षायें हैं
मैं न कभी भी उनको भूलूंगा
न ही कभी मैं चुप
रहूँगा... वादा... :) !!!
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"द कॉमन मैन" ____________
अपनी कलम से ‘आम आदमी’ को गढ़ने वाली वो उँगलियाँ अब कभी भी कागज़ पर न चलेगी न ही
किसी भी समसामयिक मुद्दे पर अपनी राय रखेगी न ही वो शख्सियत ही नज़र आयेगी जिसने कि अपनी अद्भुत सोच से इस किरदार को पैदा
किया क्योंकि कल ही तो वो असाधारण आत्मा
इस भूमंडल पर अपना काम समाप्त कर सदा-सदा के लिये इस दुनिया से चली गई लेकिन अपने
पीछे ख़ुद को ‘आम आदमी’ से ‘ख़ास
आदमी’ में बदलने की यादगार दास्ताँ छोड़ गई जिसके कारण उसे भूलाया
जाना आसां नहीं होगा अपने इस अभूतपूर्व योगदान के लिये आज ये संपूर्ण राष्ट्र
अश्रुपूरित नयनों से उनको नमन करता हैं ।
कल जैसे ही ये खबर आई तब
से ही देख रही हूँ कि ‘आभासी’ हो या ‘वास्तविक
दुनिया’ सभी ने इस हस्ती को अपनी-अपनी तरह से श्रद्धांजलि अर्पित की
जो ये बताने के लिये काफ़ी हैं कि जब व्यक्ति धैर्य, लगन और
सतत क्रियाशीलता से अपना कर्म करता हैं तो फिर किन्ही भी परिस्थितियों या जगह में
जनम ले एक दिन अपनी प्रतिभा से दुनिया को चमत्कृत कर देता हैं । यही तो हुआ ‘रासीपुरम
कृष्णस्वामी लक्ष्मण’ जिन्हें हम ‘आर. के. लक्ष्मण’ के नाम से जानते हैं के साथ जिसने २३ अक्टूबर १९२१, को एक विद्यालय चलाने वाले साधारण आदमी के घर उनके ६ बेटों
के बीच सबसे छोटे पुत्र के रूप में जन्म लिया । बालपन से ही चित्रकला में रूचि के
कारण उन्होंने इसी क्षेत्र में अपना कैरियर बनाने को अपने जीवन का ध्येय बना लिया
और उनके इस जुझारूपन ने उन्हें हर तरह के हालातों से लड़ने का हौंसला दिया जिसका
परिणाम ये हुआ कि उन्होंने तीस साल की आयु में सर्वप्रथम 1951 में अपनी कूची से ‘द कॉमन मेन’ नाम का ये किरदार बनाया और पूरे छे दशक तक हर तरह के सामजिक, राजनितिक, धार्मिक और विवादित विषयों
पर उसके माध्यम से जनता के मन की बात को सबके सामने रखा । देश के प्रतिष्ठित अख़बार
‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ में
इसके लगातार प्रकाशन से वे इसका पर्याय बना गये और देश ही नहीं विदेश में भी अपनी
कला के प्रशंसक बना लिये इसलिये तो ‘सिम्बायोसिस अंतराष्ट्रीय
विश्वविद्यालय’ में ‘आर. के. लक्ष्मण’ के नाम पर एक कुर्सी भी है । उन्होंने अपनी तूलिका से ‘कार्टून’ जैसी विधा को ऐसा उच्चतम दर्जा दिया कि कई लोगों ने उनसे
प्रेरणा ली उन्होंने सिर्फ ‘कार्टून्स’ ही नहीं बनाये बल्कि कई किताबें भी लिखी और अपनी बेमिसाल
बहुमुखी क्षमता से देश के बड़े-बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्मविभूषण’, ‘पद्मश्री’ और साथ ही ‘रमन
मैग्सेसे पुरस्कार’ को भी हासिल किया ।
फ़िल्मी दुनिया ने भी उनके
इस अनुपम हस्त कौशल का उपयोग किया महान फिल्म निर्देशक ‘गुरुदत्त’ ने जब अपने चलचित्र ‘मि. एंड मिसेज 55’ में ‘कार्टूनिस्ट’ का चरित्र निभाया तो उसके लिये कलम इन्होने ही थामी भले ही
रजतपर्दे पर चेहरा उनका था लेकिन सफे पर चित्र बनाते हाथ इनके ही थे । अब तो वे
चले गये बस, यादें ही शेष रह गई तो आज शाम उन्ही को दोहराने का मन कर
रहा था तो इन शब्दों के द्वारा उनको अपनी शब्दांजली अर्पित करती हूँ... :( :( :(
!!!
।। ॐ शांति ॐ ।।
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२७ जनवरी २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह “इन्दुश्री’
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