रविवार, 18 जनवरी 2015

सुर-१८ : 'दर्द भरी गज़ल... के.एल. सहगल' !!!

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मित्रों...,

‘कुंदन’ तुम
संगीत सम्राट
करता जग नाज़
रोता हार एक साज़
चली गई वो मीठी आवाज़
जिसने दी सिनेमा को परवाज़ ।।

‘कुंदनलाल सहगल’ हिंदी सिने जगत का एक मील का पत्थर, एक बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न नाम जिसे उसकी अदाकारी से ज्यादा गायिकी के लिये याद किया जाता हैं यदि हम कहे कि हिंदी सिनेमा को संगीत और सुर इस शख्स ने ही दिये तो बिल्कुल भी अतिशयोक्ति न होगी क्योंकि एक वो भी दौर था जब रुपहले पर्दा बेआवाज़ था फिर धीरे-धीरे इसने बोलना शुरू किया तो हम भारतीयों ने जिनके जीवन में हर एक काम और बात में सुर-ताल घुले हुये हैं ने इसमें भी उस रस का समवेश किया और उस वक़्त जो भी कलाकार फिल्मों में काम करता था उसके लिए गीत गाना एक अनिवार्य-सी शर्त होती थी इसलिए शुरूआती दौर में हर एक अदाकार ने स्वयं के लिये गाने भी गाये हैं उसी समय में ‘के. एल. सहगल’ ने जब अपने स्वर से रजत पर्दे पर गीत गाया तो लोगों ने झूम उठे और इस तरह उनकी आवाज़ के दीवाने हुये कि उस वक़्त के लगभग सभी गायकों ने अपने आरम्भिक दौर में उनकी ही तरह गाने गाये हैं जिसकी वजह से अक्सर उनके बीच अंतर कर पाना मुश्किल होता था इस बात से जाहिर होता हैं कि उन्होंने जो मापदंड स्थापित किया और जिस तरह की शैली में गाया उसने लोगों को एक लम्बे समय तक अपने जादू में बांधकर रखा तभी तो आज भी हम उनकी उस विशिष्ट आवाज़ को भूल नहीं पाये अब तक भी रेडिओ सीलोन प्रतिदिन प्रातःकाल अपने गुज़रे ज़माने के गीतों के कार्यक्रम का अंत उनके ही गाये किसी गाने से कर उनके प्रति अपनी आदरांजली व्यक्त करता हैं जो स्वतः ही ये साबित करता हैं कि हमारे लिये उन्हें विस्मरण करना सम्भव नहीं

आज उनकी पुण्यतिथि के इस दुखद अवसर पर जब उनके बारे में सोच रही और लिख रही तो जेहन के किसी कोने में लगातार उनकी वो सुरीली तान और वो मधुर गीत गूंज रहे हैं जो हमने अब तक सुने हुये हैं हम सब उन महान शख्सियतों के तहे दिल से शुक्रगुज़ार हैं जिन्होंने बिना किसी सुविधा और बिना किसी मदद के उस विशाल उद्योग की आधारशिला रखी जिसे ‘बॉलीवुड’ नाम से जाना जाता हैं और जिस पर आज अक्खा मुंबई ही नहीं बल्कि ये पूरा देश गर्व करता हैं और अब तो विदेश भी हमारी उस नाच-गाने वाली बेसिर-पैर वाली फिल्मों का दीवाना हैं । आज अत्याधुनिक तकनीक के इस दौर में जबकि कुछ भी नामुमकिन नहीं न ही असुंदर को सुंदर दिखाना, न ही बेसुरी आवाज़ को  सुर में लाना, न ही उम्र को छिपाना, न ही असम्भव को आसान दिखाना लेकिन एक वो भी वक़्त था जब सब कुछ बहुत ही मुश्किल था लेकिन लोग भी उतने ही मेहनती और लगन वाले कि जो ठान लिया सो उसे साकार कर के ही आराम किया । यही वजह रही कि एक-एक दृश्य के फिल्मांकन के लिये कभी भोर होने का इंतजार किया तो कभी सालों-साल किसी विशेष माहौल या अदाकार के लिये अपना काम अधुरा ही छोड़ दिया जबकि आज तो जैसा भी माहौल या परिदृश्य चाहिये वो सब कुछ चंद पलों में ही बन जाता किसी भी कल्पना को हकीकत बनाना नमुमकिन नहीं ।

‘के.एल. सहगल’ ने जब अपनी खनकदार आवाज़ में गायन शुरू किया तो उनका गाया हर एक नगमा न सिर्फ़ अमर हो गया बल्कि लोगों ने उसे इतना सुना कि वे अपने गीतों के लिए रायल्टी लेने वाले सबसे पहले फ़नकार बन गये । उनकी अदाकारी की ‘देवदास’ के बाद तो  उनके संवाद बोलने की शैली और अभिनय सभी कुछ जो एकदम अलहदा और नवीनतम था लोगों को अपनी बहुमुखी प्रतिभा का मुरीद बना गया और उस ज़माने के किसी भी व्यक्ति के लिये उस तिलिस्म से बाहर आना संभव नहीं था । आज के समय के चंद लोगों उस तरीके का मजाक बनाते हैं लेकिन ये भूल जाते हैं कि ये तो नींव के पत्थर हैं जो यदि नहीं होते तो जो कुछ भी हम देख रहे हैं या जो भी हमने हासिल किया हैं वो इतना आसान नहीं होता क्योंकि इन लोगों ने तो हम आगे आने वाले लोगों को राह दिखाई । भूल नहीं सकता ये हिंदुस्तान वो मखमली आवाज़ जिसने सिनेमा को अपने गायन से सुरीला बनाया... आज भी उसका वो अनमोल खज़ाना  बनाता सबको अपना दीवाना... तो आज उनको हमसे जुदा करने वाली इस घड़ी में करते उन्हें सलाम... उनके हर एक नगमे को करते दिल से याद---

एक बंगला बने न्यारा...
___सुनकर इसे हर आँख ने सपना देखा अपने घर का

इस दिल के टुकड़े हज़ार हुये...
___गाकर ये गान हर दिल ने खुद को टुकड़े-टुकड़े पाया

जब दिल ही टूट गया हम जीकर क्या करेंगे...
___जब कानों में आई ये आवाज़ तो सबने माना जीना हैं दुश्वार

गम दिये मुश्तकिल
कितना नाज़ुक हैं दिल ये न जाना
हाय-हाय ये ज़ालिम ज़माना...
___आज भी जब ग़मों से पाला पड़ता मुंह से यही स्वर निकलता

बाबुल मोरा नैहर छुटो ही जाये...
शायद ही कोई आत्मा हो जिसने न ये दुहराया हो  

 
ऐ कातिब-ए-तकदीर मुझे इतना बता दे
क्यों मुझसे खफ़ा हैं तू क्या मैंने किया हैं ???
­­___हर किसी ने खुदा से की यही शिकायत जब सुनी ये फ़रियाद

चाह बर्बाद करेगी हमें मालुम न था...
­­___जब कानों में पड़ी ये तान तो जाना मिटाती भी हैं चाह

दिया जलाओ जगमग... जगमग...
­­­____सुनते-सुनते जल उठे न जाने कितने चिराग

आज हर संगीत प्रेमी उनका स्मरण कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हैं... भले ही तुम चले गये गीत मधुर कई दे गये... जिसमें सुर बनकर तुम बस गये... नमन तुम्हें... :) !!!   
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१८ जनवरी  २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री

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