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मित्रों...,
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सोचते हैं
हम यही कि
दूसरे ग्रह में रहते
सिर्फ़ वही ‘एलियन’ हैं ।
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जबकि,
हर एक ग्रह
उसमें रहने वाले
बाकी को यही समझते
तो फिर क्यूँ न मान ले कि ‘हम सब एलियन हैं’ !!!
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सिर्फ़ वही प्रश्न कठिन
नहीं होते जिसके हमें जवाब नहीं मिलते बल्कि वे आसान से सवाल भी उलझकर हमारे लिये
परेशानी का सबब बन जाते कि जिनके समाधानों को हम सामने होने पर भी देख नहीं पाते ।
ऐसा ही एक बड़ा ही सरल-सा प्रश्न हैं कि--- ‘आखिर एलियन कैसे और कहाँ होते हैं???” यदि हम इस पर गौर फरमाये और थोड़ा-सा विचार करें तो हमें
इतना ज्यादा परेशान होने और उनकी तलाश करने की जरूरत नहीं हैं बल्कि खुद को ही
आईने में देख ले तो न केवल उनकी शख्सियत बल्कि उनकी दुनिया का भी अंदाज़ा ले सकते
हैं क्योंकि जैसे हम हैं वैसे ही तो दूसरी दुनिया के लोग भी होते होंगे । ये जरुर
हैं कि व् हुबहू हमारी तरह के तो नहीं होंगे लेकिन उन्हें बनाने वाला ईश्वर तो एक
ही होगा या हम ये समझते हैं कि वो भी कोई और होगा क्योंकि अंतरिक्ष तो एक ही हैं
भले ही उसमें विचरण करने वाले गढ़-उपग्रह अनेक हैं । फिर हमें ऐसा क्यों लगता हैं
कि उनके सर पर सिंग होंगे या वो जानवर की आकृति के होंगे या उनकी दुम होती होगी या
वो अनेक शक्तियों से युक्त होंगे आर हमारी इस कल्पनाशक्ति को बढ़ाने में हमारे
फिल्मकारों का भी बहुत बड़ा योगदान हैं जो नित इसमें इज़ाफा कर हमें सकारात्मक की
जगह नकारात्मक तस्वीर ही दिखाते हैं कि उस दुनिया के लोग हमारे दुश्मन ही हैं और
हमें खत्म करना चाहते हैं । कभी-कभी वो ‘जादू’ की तरह
का कोई किरदार गढ़कर उसे हमारा सहयोगी या मित्र बता देते हैं लेकिन उसके बावजूद भी
उसका व्यक्तित्व, उसके
लिबास अजीबों-गरीब बना देते हैं आर अभी
हाल ही में आई ‘पीके’ में तो खैर, परिधान को अलग कर उसकी रचना की गई फिर भले ही उसे यहाँ
तरह-तरह की भेषभूषा में दर्शा दिया गया हो ।
जिस तरह हम उनकी खोज में
लगे रहते हैं हो सकता हैं इसी तरह वो भी हमें तलाशते हो और हमारी कुछ ऐसी ही छवि
बनाते हो जैसी की हम उनकी बनाते हैं तो ऐसे में ये सोचना भी लाज़िमी हैं कि इस
ब्रम्हांड के समस्त जन-जीव वास्तव में ‘एलियन’ हैं ।
किसी के लिए हम तो कोई हमारे लिये इस परिकल्पना का केंद्र होता हैं लेकिन इसका
मतलब ये नहीं कि हम उनको तलाश न करें बल्कि कहने का तात्पर्य ये हैं कि खुद को ही ‘एलियन’ की तरह
महसूस करें अपनी कहानी खुद लिखे और खुद को एक शक्तिशाली मानव समझ उसकी तरह व्यवहार
करें न कि इंतजार करें कि कोई ‘जादू’ उडनतस्तरी से उड़कर आयेगा और आपनी सारी समस्याओं को हल कर
आपको जादुई ताकत देकर जायेगा । जब आप अपने आपको एक विशेष व्यक्ति समझेंगे तो अपने
आप ही आपको अपने भीतर कुछ अनोखेपन का अहसास होगा जिसके बलबूते पर आप दूसरों की
पीड़ा को समझ पायेंगे और उसी तरह उनकी तकलीफों को भी दूर कर सकेंगे । हमारे यहाँ
जितने भी महापुरुष या अवतार हुये वे सभी अन्य ग्रह से आये ‘विशिष्ट व्यक्तित्व’ थे और उनके पास जो अपना आभामंडल था वो वास्तव में उनकी
स्वार्जित शक्तियाँ थी जिसके दम पर उन्होंने जनमानस के दुःख-दर्द को समझा उसे दूर
किया और हमने उन्हें अवतारों के सिंहासन पर बैठकर अपनी सोच को विराम दे दिया कि वे
तो ईश्वर संतान थे और इसी कार्य के लिये धरा पर आये थे जबकि यदि चाहे तो हम भी ऐसा
कर सकते हैं पर जब न करना आसान हो तो कोई करने की जहमत क्योंकर उठाये ???
खैर, असलियत तो वो उपरवाला जाने लेकिन ये भी सच हैं कि कोई किसी
भी ग्रह में जन्मा हो या कहीं भी रहता हो लेकिन अंत में सबका एक ही ठिकाना हैं और
एक दिन सबको वही पर जाना हैं पता नहीं आप लोग ऐसा मानते हो या नहीं लेकिन हमें तो
यही लगता हैं कि सबका ईश्वर एक ही हैं आर सबको उसी ने बनाया हैं और आखिर में हम सब
उसी अन्तरिक्ष में सूक्ष्म कणों की तरह विलीन हो जायेंगे जहाँ से हम आये थे तो फिर
जब तक इस ‘ग्रह’ पर हैं दूसरों को ढूँढने से अच्छा हैं कि ‘स्व’ को ही
तलाश कर ले इससे बड़ी उपलब्धि और कुछ भी नहीं... आप बतायें आप क्या सोचते हैं... :)
:) :) ???
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२५ जनवरी २०१५
© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
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