शुक्रवार, 30 जनवरी 2015

सुर-३० : "एक आंधी... महात्मा गाँधी...!!!"


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मित्रों...,

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ओ बापू...

पाकर आज़ादी
ये संतान तुम्हारी
बन गई कृतध्न
करती निंदा तुम्हारी

त्याग-बलिदान-समर्पण 
सत्य-अहिंसा जानती नहीं
कर्तव्य अपने निभाती नहीं
फिर समझे कैसे कुर्बानी तुम्हारी ।।
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भारतीय इतिहास में ‘मोहनदास करमचंद गांधी’ जिन्हें कि हम ‘राष्ट्रपिता’ / ‘महात्मा’ या ‘बापू’ कहते हैं का कद उस समय के सभी क्रांतिकारी, शहीदों, बलिदानियों में सबसे ऊंचा हैं और इसी कारण हमने उन्हें प्यार से इन सारे नामों से संबोधित कर उनके प्रति अपनी श्रद्धा और स्नेह का परिचय दिया क्योंकि उन्होंने धर्म, सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह को अपना हथियार बना आज़ादी की लड़ाई का आगाज़ किया और फिर किसी भी परिस्थिति या हालात के साथ समझौता किये बिना एक कर्मयोगी की तरह अपने बनाये गये मार्ग पर अनवरत अडिग चलते रहे अपने जीवन सिद्धांत से उन्होंने सिर्फ अपनी भारतभूमि ही नहीं बल्कि विदेशी जमीनी पर भी लोगों को प्रेरित किया और यही कारण हैं कि आज देश के लोग भले ही उनके प्रति शंका की निगाहों से देखते हो लेकिन उस भूमि पर उन्हें एक आसाधारण मानव की तरह पूजा जाता हैं ‘अल्बर्ट आइंस्टीन’ ने उनके बारे में तो ये तक कह दिया कि--- “आने वाली सदी शायद ही इस बात पर विश्वास करें कि कभी इस धरती पर ऐसा हाड़-मांस का बना कोई इंसान भी कभी हुआ हैं”

लेकिन हमारे देश के युवाओं को न जाने क्या हो गया हैं जो खुद तो किसी भी मापदंड से उनके चरणों के समीप तक नहीं पहुँच सकते लेकिन उन्हें बुरा कहने का फैशन-सा बना लिया हैं और एक सुर में उस बात को दोहराते हैं जो उन्होंने निराधार खुद ही मनगढ़ंत तथ्यों के आधार पर पैदा कर ली हैं ये कुछ ऐसा ही हैं कि दुसरे की लकीर काटकर खुद को बड़ा साबित करना । हम कुछ भी कर ले फिर भी उनके पासंग में भी नहीं आ सकते न ही हम उस कालखंड और उस समय के हालातों का अनुमान लगा सकते हैं कि किस तरह के कष्ट-अन्याय का सामना उनको और अन्य सभी क्रांतिकारियों का करना पड़ा केवल सबका मार्ग अलग-अलग था लेकिन लक्ष्य सबका एक ही था---‘आज़ादी’ और इसके लिये कोई भी कुछ भी करने के लिये तैयार था । युवाओं में जोश अधिक था तो उन्होंने ‘गरमदल’ बना हिंसा का सहारा लिया जबकि गांधीजी ने शुरू से ही अहिंसा को ही अपना एकमात्र शस्त्र बना लिया था तो अंत तक उसके ही बल पर धर्मयुद्ध लड़ते रहे और आज भी हम उनको अहिंसा का पर्याय मानते हैं ।

‘महात्मा गाँधी’ को समझने के लिये हमें उस काल को समझना होगा और ये भी जानना होगा कि एक परतंत्र देश में कोई व्यक्ति इतने कठिन शासन के बीच किस तरह से अपनी शर्तों पर न सिर्फ जीता रहा बल्कि किसी भी अन्याय के आगे कभी भी न झुका तो उसने किस तरह से ये सब कुछ मुमकिन किया होगा जबकि आज हम स्वतंत्र रहकर अपनों के बीच ही अपनी बात कहने में असमर्थ हैं । हमें तो अपने देश के इस महानतम व्यक्तित्व पर गर्व और कृतज्ञता के सिवाय और कोई भाव नहीं होना चाहिये क्योंकि हमारे सभी शहीदों ने उस समय जो भी उन्हें सही लगा वो किया उनके पास सब्र था तो उन्होंने शांति से काम लिया और देर से ही सही वो विश्व को ये समझा पाये कि जब किसी युद्द को बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के भी लड़ा जा सकता हैं तो फिर लोग क्यों किसी का खून बहाते हैं उन्होंने अपना सारा जीवन एक तपस्वी की भांति बिता दिया जिसने न जाने कितने लोगों को प्रेरणा दी और उन्होंने उनके दिये मन्त्रों का उपयोग कर अपना जीवन सफल बना लिया ।

उनका जीवन तो एक खुली किताब की तरह हैं जिसके हर पन्ने पर उनके त्याग-बलिदान का वर्णन लिखा हुआ हैं... हम उनसे बहुत कुछ सीखकर अपने आपको बदल सकते हैं तभी तो जिसने भी उनकी पारसमणि समान जीवनी को पढ़ा वो कुंदन बन गया तो फिर हम भी क्यों न खुद का भविष्य संवार ले... आओ आज उनकी पुण्यतिथि पर उनको नमन करें... रघुपति राघव राजाराम का गान करें... हे राम का उच्चारण करें... जय हिंद... :) :) :) !!!   
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३० जनवरी  २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री

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