सोमवार, 19 जनवरी 2015

सुर-१९ : "दीप आशा का जलाये रखो...!!!"


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मित्रों...,

कितनी भी
अँधेरी हो रात
जरुर होती
रोशनी भरी प्रभात ।।

कभी-कभी मायूसियाँ इस कदर जेहन पर सवार हो जाती हैं कि इंसान किसी भी तरह ये समझने को तैयार नहीं होता कि उसे इन परेशानियों के पिंजरे से निज़ात हासिल हो सकती हैं क्योंकि दिन पर दिन हालात कुछ इतने बद से बदतर हो जाते हैं कि फिर हल्की-सी ख़ुशी भी उसकी हालत पर सुधार के कोई चिन्ह नज़र नहीं ला पाती लगातार मिलती जा रही असफ़लता उसकी विचारशिला पर अपने इतने गहरे चिन्ह छोड़ जाती हैं कि किसी की भी सकारात्मक बातें उनको धुंधला नहीं कर पाती और नकारात्मकता के बादल उसकी मानसिकता के आसमान पर मंडरा-मंडराकर उस पर नाउम्मीदी की इतनी बारिश करते हैं कि गर, उसने दिल के किसी कोने में आशा का कोई दीपक जलाकर भी रखा हो तो वो उस अंधड़ को झेल नहीं पाता और एक दिन बुरे वक़्त के इन थपेड़ों की मार से बुझ ही जाता हैं

कहने वाले तो जरुर कहते हैं कि हर किसी का समय आता हैं लेकिन किसी के लिए घड़ी की सुइयां ठहर जाती हैं और समय का पहिया भी घूमना बंद कर देता हैं भले ही किसी को ये अजीब लगे मगर, ऐसे अनगिनत लोग इसी दुनिया में रहते हैं जिनके लिये इन बड़े-बड़े अल्फाजों के कोई मायने नहीं होते न ही किसी भी समाजकल्याण या परोपकारी संस्था के लोग भी उन तक पहुँच पाते हैं यहाँ तक कि उनके आसुओं को देखने या पोंछने वाला भी कोई नहीं होता फिर भी यदि वो जीवित रहते हैं तो बिला शक कि कुछ तो जरुर हैं जो उनके आँखों के जलते चिराग़ को बुझने नहीं देता उनको उन वीरानीयों में भी कोई तो रौशनी देता हैं तो जिससे उनकी साँसें चलती रहती हैं । यही होती हैं शायद, उम्मीद की वो छोटी-सी किरण जो अंतर के किसी महफूज़ खाने में चुपचाप रोशन रहती हैं और जब भी नाउम्मीदी हद से ज्यादा गुज़र जाती हैं या व्यक्ति घबराकर इस दुनिया को छोड़ने तक की भी ठान लेता हैं तब यही उसे उन प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जिलाये रखती हैं ।

इसलिये तो जब एक बार किसी ने ‘स्वामी विवेकानंद’ जी पूछा कि---सब कुछ खो जाने से भी बुरा क्या है तो स्वामी जी ने कहा – ‘वो उम्मीद खोना, जिसके भरोसे पर सब कुछ पाया जा सकता है’ । धर्मग्रन्थों में भी यही लिखा हैं कि किसी से उसकी आशा मत छीनो, हो सकता है यही उसकी एकमात्र पून्जी हो और न ही किसी के सपनों तोड़ों क्योंकि भले ही ही ये आभास या कल्पना हैं लेकिन किसी की जीवन डोर इसी से बंधी होती हैं और यही उसका एकमात्र संबल होती हैं । हम सिर्फ़ तब ही नहीं मरते जब मौत आती हैं बल्कि जिस दिन हमारे पास जीने की कोई वजह कोई अरमान शेष नहीं रहता उसके बाद भले ही हम जीवित रहें लेकिन एक बेजान लाश की तरह ही होते हैं इसलिये एक न एक शमां अँधेरे में जलाये रखिये... सुबह होने को हैं माहौल बनाये रखिये... :) :) :) !!!   
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१९ जनवरी  २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री

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