गुरुवार, 22 जनवरी 2015

सुर-२२ : "अंतहीन प्रतीक्षा" !!!

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मित्रों...,

सबकी किस्मत
अहिल्यासी नहीं होती ।
.....
अनगिनत बेकुसूर अभिशप्त
आजीवन रामकी बात जोहती ।।

________एक दुखियारी.... 'नारी'_______

भले ही बात त्रेतायुगकी हैं लेकिन कलयुगमें भी अधिकांश स्त्रियों की दशा में उतना सुधार नहीं हुआ अब भी न जाने कितनी-ही नारियां न जाने कब से एक अनजाना श्राप ढो रही हैं जिसकी न तो मियाद ही खत्म होती हैं न ही कोई तारणहार ही उन्हें उस अभिशाप से मुक्त करने के लिये आता हैं । राह निहारते आँखें पथरा गई उनकी खुद की देह भी शिला बन गई और उसी तरह वो शापमुक्त होने की प्रतीक्षा करते-करते सांसमुक्त होकर इस धरा से चली गई लेकिन उनकी आत्मा भटकती ही रही कि कभी तो मिले वो परमात्मा जो उन्हें इस आवागमन के त्रास से सदा के लिये रिहा कर दे जिससे कि वो जन्मों-जन्म तक जिस्म के पिंजरे में छटपटाती न रहें क्योंकि ये दुनिया ये महफ़िल हर किसी को तो रास नहीं आती । कुछ होती हैं अहिल्याकी तरह शापित तो कोई मीराकी तरह कृष्ण की दीवानी और कोई सबरीकी जैसी अपने आराध्य के दर्शनों की अभिलाषी पर, सबकी तपस्या तो फलित नहीं होती जबकि न तो उनकी श्रद्धा या फिर उनकी भक्ति में ही कोई कमी होती हैं ।

जब कभी इस बात पर विचार करें तो लगता भगवान तो केवल भावना के भूखे हैं फिर वो क्यों नहीं अपने चाहने वाले की उस पवित्र इच्छा को समझ पाते जिसमें केवल चाहना के सिवा और कोई मिलावट नहीं होती भले ही हम अपनी साधना में खोट निकाल कर खुद को बहला ले लेकिन फिर भी जेहन के किसी कोने में ये ख्याल तो आता हैं कि पूरे मन से किसी को चाहने के बाद पूर्ण शिद्दत से किसी का इंतजार करने के बाद भी वो आया क्यों नहीं ??? न तो हर एक का प्रेम ही पूर्णता को पाता हैं न ही हर किसी को अपने इंतजार का वो फल ही मिलता जिसके लिए उसने दिन / रात या किसी भी हालात की परवाह नहीं की न ही समाज़ के बंधनों को माना फिर क्यों उसके साथ ही ऐसा हुआ ???

इस बात का जवाब खोजते-खोजते वो ग्रह-नक्षत्र, हाथ की लकीर, भविष्य, तकदीर, खुदा का दर, नजूमी, पंडित, बगुला भगत और न जाने किस किस के सामने अपना मत्था टेक देता जिस पर कभी विश्वास नहीं किया वो सब भी आज़मा लेता गंडे-ताबीज़, मन्नत के धागे, व्रत-उपवास हर एक तरीका अपना लेता लेकिन फिर भी हासिल वही सिफ़रयाने कि वापिस वही पहुँच जाता जहाँ से उसने सफर शुरू किया था । आज के पीढ़ी तो प्रेम के इस पावन अनुभव से सिर्फ़ किस्सों-कहानियों के मार्फ़त से ही वाकिफ़ हैं लेकिन जो इस हक़ीकत के महासागर से तैरकर गुज़रे हैं केवल वही जानते हैं कि ये कोई अफ़साना नहीं न ही कोई कल्पना या ख्वाब हैं बल्कि किसी की अपनी आपबीती हैं । अब तो सुबह से रात तक ही मन के अहसास बदल जाते हैं और कभी ये भी आलम था कि जन्मों-जन्म तक नाते नहीं टूटते... भले ही जमाने बदल जाये लोगों की सोच भी वक़्त के साथ चलने लगे लेकिन कुछ मानसिक अनुभूतियाँ और भीतरी रसायन तो सदा वही रहेगा... और जिसे वो पारसमणि छू लेगी उसे कुंदन बनने से कोई रोक सकता हैं भला... नहीं न... :) :) :) !!!
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२२ जनवरी  २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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