मंगलवार, 20 जनवरी 2015

सुर-२० : "बच्चे न रहे... बच्चे...!!!"


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मित्रों...,

भले ही मैं
एक छोटा-सा बच्चा हूँ
लेकिन, अक्ल का न कच्चा हूँ
हौंसलों का एकदम पक्का हूँ
क्योंकि दिल का बिल्कुल सच्चा हूँ ।।

अब तो लगता हैं कि इस ‘कंप्यूटर’ और ‘स्मार्ट युग’ के बच्चे भी आधुनिकतम तकनीक से युक्त मानव जाती के नवीनतम ‘वर्शन’ हैं जिन्हें बाईसवी सदी के नन्हे-मुन्ने ‘रोबोट’ भी कहे तो कम नहीं क्योंकि ये तो ‘अभिमन्यु’ की तरह गर्भ से ही सारा ज्ञान अर्जित कर आये हैं, वो तो फिर भी ‘चक्रव्यूह’ से निकलने का तरीका सीख नहीं पाया था लेकिन ये तो वो गूढ़ विद्या भी सीखकर आये हैं जिनसे उनके माता-पिता भी अभी पूरी तरह से पारंगत नहीं और दादा-दादी बेचारे तो इस नई शब्दावली से परिचित ही हो जाये इतना ही बहुत हैं इनके लिए कुछ भी समझना या जानना या कर गुज़रना मुश्किल नहीं और तो और कुछ भी सीखना या समझना भी चुटकियों का काम हैं क्योंकि इनकी ऊर्जा का स्तर भी इस कदर बढ़ा हुआ हैं कि यदि इन्हें किसी काम में व्यस्त न रखा जाये तो ये आपकी नाक में दम कर सकते हैं

अब बचपन भी उतना मासूम और निश्छल नहीं रहा क्योंकि इन सभी यंत्रों और टी.वी. ने उसके मानसिक स्तर को भी प्रभावित किया हैं जिसकी वजह से अब वो बहुत-सी बड़ी-बड़ी बातें और उनके मायने भी बिना समझाये समझ जाता हैं बल्कि उसके पास तो अपनी खुद की परिभाषाएं भी मौज़ूद हैं और अब आप उसे किस साधारण बात से न तो बहला सकते हैं न ही किसी भी बात का गोलमाल जवाब दे सकते हैं इनके पास हर सवाल के अपने जवाब हैं जो उसने खुद की जिज्ञासा से खुद ही खोजे हैं अब वो किसी भी प्रश्न के उत्तर के लिये अपने बड़ों पर उतना निर्भर नहीं हैं क्योंकि उसे पता हैं कि वो इसे कहाँ से और किस तरह से खोज सकता हैं इसलिये अब यदि आप इनको जरा गौर से देखें तो पायेंगे कि इनका आत्मविश्वास बहुत बढ़ा हुआ हैं और इन्हें अपने आप को प्रस्तुत करना आता हैं अतः किसी भी जगह ये बेहिचक अपनी बात रख देते हैं अब तो ये छोटी-सी उमर में ही स्टेज पर जाकर भी बिना आवाज़ कंपकंपाये, बिना पांव लडखडाये अपने हुनर को भरी सभा में अनगिनत लोगों के सामने इतने बिंदास तरीके से पेश करते हैं कि लोग दांतों तले ऊँगली दबा लेते हैं

हमारे आस-पास जो ‘न्यू जनरेशन’ नज़र आ रही हैं ये हर एक क्षेत्र में खुद को साबित करने में पीछे नहीं हैं किसी भी मामले में ये कमज़ोर नज़र नहीं आते हैं ऐसे में अब हम सबको भी अपने आप में बदलाव करने की जरूरत हैं ताकि संभावनाओं से भरे इन भावी कर्णधारों की नींव को मजबूत करने के लिये हमारे पास अनुभव और ज्ञान का वो ईट-गारा हो कि हम उनके भविष्य की मजबूत इमारत खड़ी कर सके क्योंकि देखने में ये भी आ रहा हैं कि महानगरों में तो ‘यूथ’ खुद की जिंदगी जीने में इस तरह व्यस्त हैं कि वो तो बच्चे को जन्म देने के बारे में ही सोचना नहीं चाहता फिर पालने की बात तो बहुत दूर हैं अब तो ‘लिव-इन’ फैशन में ये और भी जरूरी हैं कि लोगों में इस बात की जागरूकता आये कि वो इन कलियों को न सिर्फ खिलने का अवसर दे बल्कि इनके पालन-पोषण के जिम्मेदारी भी स्वयं ले न कि इसे दूसरों के ऊपर छोड़कर अपने में ही मशरूफ रहें

हर बच्चा ईश्वर का वरदान और राष्ट्र का निर्माणकर्ता हैं जिसके भीतर अनंत खूबियों के साथ-साथ बहुत कुछ कर गुजरने का माद्दा भी होता हैं जिसका जाया हो जाना सभी के लिये अपुरणीय क्षति हैं तो फिर ये नन्हे-मुन्ने जो दुनिया बदलने की ताकत रखते हैं उनको अपनी तकदीर ख़ुद लिखने दे बस, उस कलम में स्याही आपके संस्कारों की और उसके जेहन में शब्द आपकी प्रदत्त शिक्षा के ही हो फिर देखें किस तरह वो नई दुनिया की नई इबारत लिखता हैं... :) :) :) !!!
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२० जनवरी  २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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