सोमवार, 26 जनवरी 2015

सुर-२६ : "ये कैसा गणतंत्र... हम अब भी हैं परतंत्र" !!!



___//\\___ 

मित्रों...,

●------------------------
जन गण मन
सब एक स्वर में गाते
बड़े जोश से गणतंत्र दिवसमनाते । 
.....
लेकिन अधिकारही नहीं
कर्तव्यभी हैं कुछ यही भूल जाते
फिर वापस अपनी दुनिया में खो जाते ।।
-----------------------------------------------● 

देश को एक लंबे संघर्ष और अनगिनत शहादतों के बाद आज़ादीकी सुबह देखने को मिली और उसके बाद ही इस देशवासियों को संविधानकी अद्भुत सौगात हासिल हुई जिसे बड़ी ही मशक्कत और अध्ययन के बाद बनाया गया और जिसने अपने राष्ट्र की जनता को जनतंत्रकी एक बेमिसाल भेंट दी और जिसके लागू होते ही इसे गणतंत्रका ख़िताब हासिल हुआ जो कहता हैं कि स्वदेशमें प्रजा को अपनी मर्जी से अपना राजा चुनने का अधिकार होगा । ये और बात हैं कि विशेष राजाको जनमानस के दिलो-दिमाग में भरने के लिये हर तरह के हथकंडे अपनाने की छूट होगी और वो साम-दाम-भेदजैसे सभी हाथियारों का खुलकर प्रयोग करेगा मगर, जनता इस मुगालते में रहेगी कि उसकी मर्जी के बिना कोई भी उन पर राज नहीं कर सकता इसलिये जनता को खुश रहने को ये लालीपॉपथमा दिया गया । ये तो लिखने वाला और इसे लागू करने वाला भी जानता था कि यदि सभी लोग आपस में मिलाकर रहें और एकता का पाठ पढ़ते रहे तो उनका काम नहीं बनने वाला इसलिये उन्होंने भले ही उस किताब में धर्म-निरपेक्षता, संप्रभुता  जैसे शब्द लिख दिये लेकिन उसी के आधार पर लोगों को अनेक जाति, भाषा, धर्म और स्थान के आधार पर बाँट दिया जिससे कि हम सब एक-दूसरे को उसी के आधार पर पहचान आपस में लड़ते-झगड़ते रहे और वो शांति से हम पर राज करते रहे जिससे एक साथ राजा व प्रजादोनों एक साथ खुश ।

स्वतंत्रताके नाम पर एक बार जो उस वक़्त इस अखंड भूमिके टुकड़े हुये तो आज तलक भारतमाताउस दर्द से मुक्त न हो सकी हैं क्योंकि एक बार जो टूटने का सिलसिला शुरू हुआ तो लगातार उनके अंग-भंग होने से उनकी आँख के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं । इस दर्द को केवल वही महसूस कर सकता हैं जिसने कभी भारतके नक्शे के उस अखंडस्वरूप को देखा हैं और आज उसी में खिंची अलग-अलग लकीरें और रंग से एक विशाल भूभाग को अनेक खंडों में बंटा देख उसे अपने ही हृदय के कई भागों में विभक्त होने का अहसास होता हैं । लेकिन जिसे वास्तव में इसे सोचना समझना चाहिये वो अपने फ़ायदे के लिये उस तरफ़ से आँखें मूंद केवल अपने स्वार्थ के लिये नये-नये प्रदेशों के नाम पर इसे तोड़ता ही जा रहा हैं जिससे कि यहाँ रहने वाले लोगों के बीच न सिर्फ़ दीवारें बन रही हैं बल्कि भाषाई-जातीय भिन्नता भी उभरकर आ रही हैं ।  सिर्फ कहने के लिये हम सब एक हैं हमारे बीच कोई अंतर नहीं लेकिन जब भी जात-धर्म की बात हो तो लोग इस तरह एक-दुसरे को मारने दौड़ पड़ते कि आश्चर्य होता कि ये संविधानमें लिखे शब्दों का ये कैसा व्यावहारिक रूप हैं । गलती तो हमारी भी हैं कि हम भी तो उन तथाकथित राष्ट्र के कर्णधारों की बातों में आकर अपना कहने वाले पड़ौसी को ही अपना शत्रु समझने लगते और जिसे मित्र कहते उसे ही शक की निगाहों से भी देखने लगते हैं ।

ये देश जहाँ कभी व्यक्ति को सिर्फ़ एक 'इंसान' समझा जाता था लोग इस तरह मिलकर रहते कि उनमें अंतर करना मुश्किल हो जाता और साँझा चूल्हागंगा जमनीसंस्कृति से इसे जाना जाता जो हमारे लिये गर्व का विषय होता पर यदि ये सब कुछ ऐसा ही होता तो फिर तो न ही इतने सारे नेता या दल होते न ही राजनीति का ये कूटनीतिज्ञ चेहरा जो येन केन प्रकरेण सिर्फ़ राजकरना जानता हैं । इसलिये उसने धीरे-धीरे बड़ी ही चालाकी से लोगों के बीच ये खाई बनाना शुरू किया जो दिनों दिन गहरी और गहरी होती जा रही हैं क्योंकि अब तो एक छोटा-सा बच्चा भी जानता हैं कि उसकी केटेगरी’ / ‘श्रेणीक्या हैं और बस, यही से शुरू होती हैं एक गलाकाट प्रतिस्पर्धा जिसमें अधिकतम अंक लाने पर भी एक विद्यार्थी पीछे रह जाता हैं जबकि दूसरा कम अंक लाकर भी नौकरी पा जाता जिसकी वजह से असफल होने वाला निराशा के गहरे गर्त में गिरकर कभी खुद को तो कभी अगले को मार भी डालता हैं । ये तो सिर्फ प्रतिभा की नज़रअंदाजी से उपजे क्रोध का एक छोटा-सा उदाहरण हैं लेकिन जब बात धर्म या जाति या भाषा की होती तो इस संख्या में इज़ाफा भी बहुत हो जाता । ऐसे में अब हमें अपने इन राजनीतिज्ञों की मानसिकता को समझने की जरूरत हैं और ये भी देखना हैं कि हम आपस में एक-दूसरे के बीच कोई भेदभाव न करें और न ही किसी के भड़काने पर दंगा-फ़साद करने लगे... हमें स्वदेशकहना नहीं बल्कि मानना होगा... प्रेमकी भाषा बोलनी होगी... इंसानियतका धर्म अपनाना होगा... तभी अखंड भारतके उस खोये हुये स्वरूप को पुनः प्राप्त कर पायेंगे... जय हिंद... वंदे मातरम... :) :) :) !!!            
____________________________________________________
२६ जनवरी  २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
●--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: