शनिवार, 11 जुलाई 2015

सुर-१९२ : "तोड़े पुरानी रवायत... बदले अपनी आदत...!!!"


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मुमकिन नहीं था
अविवाहित 'कुंती' का
कौतुहलवश 'दुर्वासा' के दिये
वरदान से खेल करने पर...

जन्मे सुर्यपुत्र 'कर्ण' को
रस्में तोड़ कर अपना लेना
तभी तो जीवित उसे बहा दिया
पर, उनका ये कदम
समस्त स्त्री जाति को ही
अभिशापित कर गया

अक्सर, रवायतों से बगावत
अपने ही दामन को
दागदार कर जाती हैं फिर भी
'सभ्यता' और 'इंसानियत' को बचाने
गैर-जरूरी रीति-रिवाजों की
पुरानी जंजीर काटनी ही पड़ती हैं ।।
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मित्रों...,

कभी-कभी रवायतों की उन जंजीरों को तोडना ही पड़ता हैं जो हमें आगे नहीं बढ़ने देती... परंपराओं के इन बंधनों से आज़ादी भी जरूरी हैं... ताकि हम खुलकर उड़ सके नये आयामों को छू सके... वरना, बदलाव कोई घड़ी की चलती सुइयों से नहीं आता उससे से तो केवल समय आगे बढ़ता जाता हैं लेकिन हमें तो अपने कदमों से ही मंजिल तक पहुंचना पड़ता हैं... जरूरी नहीं कि हर चीज़ पुरानी होने से अच्छी और नई होने से बुरी हो... वो तो विवेक के साथ सोच-समझकर उसे अपनाने से ही पता चलेगा... हम आज भी ‘कुंती’ की तरह जिज्ञासा में वही गलती दोहरा रहे हैं और किसी ‘कर्ण’ को अभिशापित जीवन जीने मजबूर कर रहे हैं... ‘महाभारत’ हो या कोई भी ‘धर्मग्रंथ’ उनमें वर्णित कथ्य बेहद गहराई वाले होते जिन्हें समझते-समझते युग गुज़र जाते और हर सदी के साथ उसके नये मायने सामने आते जो हमें कुछ नया सबक सीखा जाते हैं... केवल उनको समझने की जरूरत हैं... तो अपनी आँख और जेहन के दरवाजे सदा खुले रखिये और केवल वही नहीं सुनिये जो सदियों से दोहराया जा रहा हैं बल्कि उसे नूतन संदर्भों में भी ग्रहण करने की अपनी काबिलियत को बढाइये क्योंकि ये तो वो संजीवनी बूटी हैं जिनके लिये किसी पर्वत पर जाने की जरूरत नहीं बल्कि हमारे घर में ही उपलब्ध हैं... तो जरा पन्ने पलटकर देखें हो सकता हैं कुछ नवीनता मिल जाये... चलो इस तरह अपनी जड़ों में लौट जाये... पर, ये नहीं कि पीछे ही रह जाये बल्कि उनसे नये रास्ते बनाये... जिन पर चलकर हमारी नई पीढ़ी अपने नये मुकाम हासिल कर पाये... ये तो वो खज़ाने हैं जो जितना भी लुटाये उतना ही बढ़ते जाये... आओ वेदों से जीवन के सूत्र चुराये... :) :) :) !!!
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११ जुलाई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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