मंगलवार, 14 जुलाई 2015

सुर-१९५ : "अब न रहो बैठो चुप... करो अन्याय का विरोध...!!!"

‘योग्यता’
बैठी कोने में
और ‘अयोग्यता’
कर रही उस पे शासन

कैसा हैं ये... ???

जनता का
जनता द्वारा
जनता के लिये
बनाया गया प्रशासन

क्यों हैं खामोश... ???

प्रमुख पद आसीन
ये सत्ताधारी ‘शासन’
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मित्रों...,

हम मानते हैं कि हर ‘धर्मग्रंथ’ और उसमें वर्णित सभी गाथायें न सिर्फ़ अमर हैं बल्कि वो तो साक्षात् ‘पारसमणि’ के समान हैं अतः वे उसका पाठ, मनन और वाचन करने वालों को अपने स्पर्श मात्र से ही कुंदन बनाने की क्षमता रखती हैं और जो लोग उसमें रचे गये आध्यात्मिक चरित्रों का अनुशरण करते हैं वे तो स्वयं उसकी ही तरह बन जाते हैं लेकिन इसके अलावा जो भले ही इन चरित्रों से प्रभावित न हो या उनसे इत्तफ़ाक न रखते हो लेकिन फिर भी कभी इस तरह की भूमिका अदा करें तो उनके अंदर भी उसकी विशेषतायें आना स्वाभाविक हैं लेकिन अब तो अभिनेता या अभिनेत्रियाँ इतने व्यवसायिक हो चुके हैं कि वो किसी भी तरह के पात्र को अभिनीत करें और साथ ही साथ भले ही उस काल्पनिक किरदार की त्वचा में घुसकर उसे हुबहू अदा करने का दावा करें लेकिन खुद को उसके असर से अप्रभावित रखते लेकिन ये तो उन कलाकारों की बात हैं जो एक साथ कई तरह के रोल का अभिनय करते हैं और चंद पलों में अपने मुखौटे बदलते हैं तो किसी से उतनी शिद्दत से जुड़ नहीं पाते पर, कोई यदि लंबे समय तक किसी आध्यात्मिक महानायक के पुराण में लिखित चरित्र को निभाये तो ये कैसे मुमकिन हैं कि वो उसकी किसी भी चारित्रिक विशेषता से अपने आपको अलहदा रख पाये और फिर जब बात हो ‘महाभारत’ जैसे महाग्रंथ की जिसके बारे में कहा जाता हैं कि जो कुछ भी उसमें नहीं वो दुनिया में कहीं भी नहीं और उसमें लिखा एक-एक पात्र अपने आप में मुकम्मल होने के साथ-साथ अपनी ही तरह का एक अनूठा व्यक्तित्व और जीवन दर्शन रखता हैं

पांचों पांडवों में सबसे बड़े ‘युधिष्ठिर’ जो धर्म-मर्यादा का शिद्दत से पालन करने के कारण ‘धर्मराज’ कहलाये और कहते हैं कि अपनी सत्यता की वजह से उनमें इतना तेज आ गया था कि उसके कारण वो जमीन से एक अंगुल उपर चलते थे कि कहीं उस अपार तेज की आंच से धरती न सुलग जाये और उसी तेजस्वी पौराणिक चरित्र को निभाने का अवसर मिला एक नवोदित अभिनेता ‘गजेंद्र चौहान’ को जिन्होंने ९० के दशक में  दूरदर्शन में प्रसारित होने वाले इसी नाम के धारावाहिक में इस भूमिका को साकार किया और इसकी वजह से उन्हें घर-घर जाना जाने लगा लेकिन वो पारस सदृश सत्य चरित्र भी उन्हें ‘सी’ केटेगरी के अभिनेताओं की श्रेणी से उपर न उठा सका क्योंकि इस विराट नायक को छोटे पर्दे पर जीवंत करने के बाद उनको किसी भी बड़ी फिल्म में कोई भी बेहतरीन भूमिका न मिल सकी और इसके बाद जो कुछ भी उनकी झोली में आया वो उनको कोई विशेष दर्जा न दिला सका और यही उनको नकारने की प्रमुख वजह बन गया हैं क्यूंकि हर कोई ये चाहता हैं कि उसे शिक्षा देने वाला उससे उच्च शिक्षित ही नहीं अनुभवी और उत्कृष्ट श्रेणी का कलाकार होने के अलावा प्रभावी शख्सियत का मालिक भी हो इन मापदंडों पर वो खरे न उतर सके इसलिये तो आज चारों तरफ से उनके विरोध के स्वर मुखर हो रहे हैं जिसने इस मुद्दे को सबके सामने लाकर चर्चा का विषय बना दिया हैं

९ जून २०१५ को ‘सूचना और प्रसारण मंत्रालय’ ने ‘बीजेपी नेता’ और ‘महाभारत’ सीरियल में ‘युधिष्ठिर’ का किरदार निभाने वाले ‘गजेंद्र चौहान’ को पुणे स्थित ‘फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ यानि ‘एफ.टी.आई.आई.’ के गवर्निंग काउंसिल के अध्यक्ष पद पर बैठाने का फैसला क्या किया मानो बर्र के छत्ते को छेड़ दिया जैसे ही ये खबर सार्वजनिक हुई तो पूरा संस्थान ''धर्मराज युधिष्ठिर नहीं चाहिए,  राजनीति ‘एफटीआईआई’ साथ साथ नहीं चलेगी'' जैसे नारों और उनके प्रति संस्था के छात्रों के विरोध दर्ज कराते पोस्टरों से भर गया क्योंकि छात्रों को लगता है कि संस्थान का नेतृत्व करने के लिये जो ‘‘कद एवं दृष्टि’’ चाहिए वह ‘चौहान’ के पास नहीं है और इसकी एकमात्र वजह उनका इस पद के लिये अयोग्य होना ही नहीं हैं बल्कि सूत्रों के अनुसार ‘अमिताभ बच्चन’, ‘रजनीकांत’, ‘गुलजार’, ‘श्याम बेनेगल’, ‘अदूर गोपालकृष्णन’ जैसे दिग्गजों के नाम सूची में होने के बाद भी ‘सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय’ ने केवल उनको भाजपाई होने के कारण इस पद का उपयुक्त दावेदार माना अतः लगभग एक महीने से ज्यादा हो चुका हैं पर, छात्र अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हुये हैं और अब अनेक फ़िल्मी हस्तियाँ भी उनके इस आंदोलन में उनका समर्थन कर रही हैं क्योंकि उन सबका मानना भी हैं कि इस प्रतिष्ठित संस्थान की अध्यक्षता करने की क्षमता उनमे नहीं है इसके अतिरिक्त सिनेटोग्राफर संतोष सीवन, अदाकारा पल्लवी जोशी और असमिया फिल्म निर्माता जाह्नू बरूआ ने इन आंदोलनकारी छात्रों की हिमायत करते हुए ‘एफटीआईआई’ सोसाइटी के सदस्य के पद से इस्तीफा दे दिया हैं जो विरोधियों का पक्ष मजबूत करने पर्याप्त हैं

इस पुरे मसले पर सरकार का जो खामोश रवैया और छात्रों पर जबरन अपनी पसंद लादना हैं ये चिंताजनक हैं क्योंकि रास्ट्रीय स्तर की संस्था जिसकी अध्यक्षता के लिये नामचीन कलाकार की फेहरिश्त तैयार हैं वहां केवल सत्ताधारी दल के किसी ऐसे व्यक्ति को इतना महत्वपूर्ण पद दे देना जिसका उस क्षेत्र में अपना कोई उल्लेखनीय कार्यानुभव न हो सवालिया निशान उठाता हैं उस पर इसे सही ठहराने उनके ये कमजोर तर्क कि जिन मशहूर हस्तियों के नाम उनके पास आये थे उनके पास संस्था को देने भरपूर समय नहीं था इसलिये उनके स्थान पर ‘चौहान’ को ये पद दिया गया किसी के भी गले नहीं उतरा और विरोधी दलों को तो उन पर ऊँगली उठाने का अच्छा मौका मिल गया तभी तो कांग्रेस नेता ‘राज बब्बर’ ने सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा, चपरासी के पास सबसे ज़्यादा समय होता है, तो क्या चपरासी को प्रिंसिपल बना दिया जाना चाहिए” वाकई ये बात किसी भी तरह से हजम नहीं होती कि किसी व्यक्ति के पास काम न होने के कारण फ़ुर्सत हैं तो उसे उस जगह पर बिठा दिया जाये इसी तरह स्वयं चौहान साहब का भी कहना हैं कि “अगर आप बड़े नामों को ही काम देते रहेंगे तो छोटे लोगों की कोई जगह नहीं होगी” जो एकदम बचकनी बात लगती क्योंकि जब आपके सामने अधिक योग्य उम्मीदवार हैं तो फिर किसलिये कमतर व्यक्ति को ये कमान सौंपना यही राजनेता क्या किसी नौसिखिये को अपने किसी कारोबार या व्यवसाय में नौकरी दे देंगे तब तो सर्वोत्तम व्यक्ति की तलाश करेंगे इसलिये प्रश्न बरकरार रहता हैं कि जब इतने सारे नाम थे तो फिर किस लिये उन्होंने सबको नजर अंदाज़ करते हुए इस नाम को तरजीह दी... जिसका जवाब स्वतः स्पष्ट हैं और वही इस सारे मामले की जड़ हैं ।

‘एफटीआईआई’ स्टूडेंट यूनियन के नेता ‘हरिकृष्ण नाचिमुथु का कहना है कि--- “अगर सूचना और प्रसारण मंत्रालय इस नियुक्ति पर रोक नहीं लगाता है तो विरोध और तेज़ किया जाएगा नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी और राजनीतिक दबाव से मुक्त होनी चाहिए” ।

प्रसिद्ध निर्देशक ‘सुधीर मिश्रा’ ने भी नियुक्ति पर सवाल उठाए उन्होंने कहा---“ क्या अध्यक्ष को पता है कि नाइजीरिया में किस प्रकार के सिनेमा का अस्तित्व है, बुर्किना फासो में कैसी फिल्में बनती हैं या ‘फ्रांस’ की सिनेमा जगत में क्या हो रहा है, सिनेमा कहां जा रहा है जबकि उन्हें तेजी से बदलती मौजूदा तकनीकी समय में फैकल्टी और छात्रों को एक नई दिशा में मार्गदर्शन देना होगा” । मिश्रा ने ये भी कहा, ‘‘वह कैंटीन के प्रभारी नहीं हैं. उन्हें नई दिशा की तरफ संकाय और छात्रों का मार्गनिर्देश करना है जिधर सिनेमा जा सकता है. इस काम के लिए कोई बुनियादी योग्यता होनी चाहिए. मैं समझता हूं कि यह एक महान संस्थान है, एक शानदार जगह है जिसने फिल्म उद्योग को बहुत कुछ दिया’’

बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता ‘ऋषि कपूर’ और ‘अनुपम खेर’ भी छात्रों के समर्थन में आगे आए हैं उनका आरोप है कि ‘गजेंद्र चौहान’ में एफटीआईआई अध्यक्ष बनने लायक क्षमता और दूरदृष्टि नहीं है।

चौहान के काम पर सवालिया निशान लगाते हुए अभिनेता-निदेशक ‘अमोल पालेकर’ ने कहा कि—“उन्हें स्वेच्छा से अध्यक्ष पद से हट जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने अब तक जो काम किया है वह ‘‘छात्रों के लिए प्रेरणादायक’’ नहीं है यह ऐसा विषय है जिसपर हमें चर्चा करना चाहिए और हम स्पष्ट रूप से जानेंगे कि उनके पास कोई योग्यता नहीं है... अगर मैं चौहान की जगह होता और मैं देखता कि मेरी बिरादरी मुझे नहीं चाहती तो मैं हट जाता’’

राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित अभिनेता राजकुमार राव ने एफटीआईआई के अध्यक्ष पद पर गजेंद्र चौहान की नियुक्ति की आलोचना करते हुए कहा कि--- “प्रतिष्ठित संस्थान को सुरक्षित हाथोंमें होना चाहिए छात्रों को एक ऐसे अध्यक्ष की जरूरत है जिनसे वह प्रेरणा पा सकें”

अभिनेता ‘रणबीर कपूर’ भी अब सबके साथ आ खड़े हुए हैं उन्होंने ‘यूट्यूब’ पर कहा--- मुझे नहीं लगता कि छात्र बेतुकी मांग कर रहे हैं । वो चांद नहीं मांग रहे, वो सिर्फ़ एक निष्पक्ष अवसर चाहते हैं, साथ ही योग्य शिक्षक और सही पाठ्यक्रम” ।

उनके इतने सारे आलोचकों में फिल्म 'स्लमडॉग मिलियनेयर' के लिए सर्वश्रेष्ठ साउंड मिक्सिंग का ‘ऑस्कर पुरस्कार’ जीतने वाले तथा एफटीआईआई के पूर्व छात्र ‘रेसुल पुक्कुटी’ भी शामिल हो गए हैं उन्होंने कहा-- "मेरे खयाल से यह धोखा है... एक सरकार अपने लोगों को धोखा नहीं दे सकती... मेरे हिसाब से यह एक राजनैतिक नियुक्ति है, और इसमें किसी शैक्षिक योग्यता का भी ध्यान नहीं रखा गया..."

इन दिग्गजों के ये कथन अपने ही आप इस मसले की गंभीरता के साथ-साथ इसके राजनैतिक रंग को भी सबके सामने उजागर कर रहे हैं ऐसे में अब तो सरकार को चुप्पी तोड़कर सही फ़ैसला लेना चाहिये जिससे कि इतने दिनों से आंदोलन कर रहे विद्यार्थियों को उनका हक प्राप्त हो सके और उन्हें सही मार्गदर्शन एवं प्रशिक्षण प्राप्त हो सके... आख़िर कब तक जनता जबरदस्ती के लादे गये अयोग्य पदधारियों को झेले... जबकि उनके पास विकल्प मौजूद हैं... वाकई वक्त आ गया हैं कि जागे हम सब जागे और देखे कि किस तरह बड़े-बड़े पदों पर छोटे-छोटे लोगों सुशोभित हो योग्यता का माखौल उड़ा रहे हैं... अब तो इसे बंद करने सबको ही एक दूसरे का साथ देना होगा... अभी बात भले ही किसी संस्थान की हो पर देश में ही कौन से ऐसे मामले कम हैं... आखिर कब तक योग्यता कोने में बैठकर तमाशा देखती रहेगी... कब तक मुंह छुपायेगी... कब तक न सामने आयेगी... :( ??? 
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१४ जुलाई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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