सोमवार, 27 जुलाई 2015

सुर-२०८ : "चले गये 'अब्दुल कलाम'... करता देश सलाम...!!!"

‘अग्नि’ की उड़ान
बनी देश की पहचान
‘मिसाइल मेन’ ने किया
ऐसा अद्भुत चमत्कार
जिसने बढ़ाया देश का मान
आज उनके अवसान पर
करता हैं देश नमन
वो रहेंगे सदा-सदा अमर
------------------------------●●●

___//\\___ 

मित्रों...,

'डॉक्टर अवुल पाकिर जैनुल्लाब्दीन अब्दुल कलाम' जिन्हें हम सब ‘ऐ.पी.जे. अब्दुल कलाम’ के नाम से जानते थे बेहद सामान्य परिवार में १५ अक्टूबर १९३१ को ‘तामिलनाडु’ के ‘रामेश्वरम’ कस्बे में हुआ जहाँ उनके पिता ‘जैनुल आब्दीन’ एक नाविक का काम करते और पढ़े-लिखे भी न थे पर, बेहद सादा जीवन जीते हुये उच्च विचारों के धनी होने के साथ-साथ सदैव हर किसी की सहायता के लिये तैयार रहते थे और उनकी इस सादगी भरी नफ़ासत ने ही उनके बचपन को जीवन के निहायत जरूरी पाठ पढाये जिनके लिये किसी पाठशाला में जाने की जरूरत नहीं इसी तरह उनकी माँ ‘आशियम्मा’  भी एक स्नेहिल धर्म-कर्म में विश्वास रखने वाली थीं जिन्होंने अपने पुत्र को भी संवेदनशीलता के अलावा सबसे प्रेम करना सिखाया तभी तो उन्होंने कभी किसी इंसान में मज़हब के नाम पर कोई भेद नहीं किया न ही अपने आपको किसी विशेष आस्था से जुड़ा हुआ दिखाया जिसने पूरी दुनिया के सामने उनको एक नेक इंसान के रूप में दर्शाया । हालाँकि उनका बाल्यकाल बेहद कठिनाई भरा रहा जिसमें उन्होंने स्कूली पढाई के साथ-साथ जिंदगी के सबक भी सीखे पर वे कभी भी न घबराये तभी तो अख़बार बेचने का काम करते हुये अपनी शिक्षा और लक्ष्य के बीच संतुलन बनाये रखा जो उन्होंने बचपन में ही तय कर लिया था कि वे बड़े होकर देश की सेवा करेंगे तो इस निर्णय ने उनके अंदर जोश का ऐसा संचार किया कि अंतिम साँस तक भी उनके भीतर यही लगन दिखाई दी भले ही उनके पास बचपन में हर तरह की सुख-सुविधा के साधन या आर्थिक संपन्नता नहीं थे पर चूँकि उनके अंदर प्रतिभा का भंडार और हर तरह के हालात से लड़ने का अद्भुत हौंसला था तो जिस तरह की भी कठिन परिस्थिति उनके समक्ष आई उन्होंने उतने ही साहस से उसका सामना किया लेकिन अपने आगे बढ़ते हुये कदमों को पीछे न रोका तभी तो वे अपने देश के युवाओं को ये विचार दे सके कि “सपने वो नहीं जो हम सोते हुये देखते हैं बल्कि वे होते हैं जो हमें सोने नहीं देते” इस आदर्श वाक्य को उन्होंने सिर्फ कथनी के तौर पर ही नहीं दोहराया बल्कि इसे जिया और जो भी स्वप्न देखे थे उनको साकार किया और हमसे कहा, “इससे पहले कि सपने सच हों आपको सपने देखने होंगे" वाकई जब तक हम किसी भी मंजिल को टी कर उसके लिये सफर की शुरुआत नहीं करेंगे उस तक किस तरह से पहुचेंगे तो पहला कदम तो हमें रखना ही होता हैं कहीं भी पहुँचने के लिये तो उन्होंने भी न सिर्फ चलने का आगाज़ किया बल्कि आज भी शिलांग में भाषण देते हुये ही उनके हृदय ने उनका साथ छोड़ दिया जिनसे ये स्वतः ही सिद्ध कर दिया कि वे एक निष्काम कर्मयोगी थे जिसने हमेशा ही जो भी ज्ञान उनके पास था उसे बाँटने में कभी कोई संकोच नहीं किया

वे मानते थे कि "अपने मिशन में कामयाब होने के लिए, आपको अपने लक्ष्य के प्रति एकचित्त निष्ठावान होना पड़ेगा" जिसके कारण उन्होंने अपना सफर शुरू तो किया ‘रामेश्वरम’ से लेकिन अपने छोटे-छोटे कदमों से उन्होंने पूरी दुनिया को ही नाप लिया और अपने देश का नाम ऐसा रोशन किया कि पहले वैज्ञानिक बनकर अपने हुनर से देश को बेमिसाल अविष्कारों का तोहफ़ा दिया और फिर अपनी चमत्कारिक प्रतिभा, अथक कार्यक्षमता एवं अद्भुत कौशल से राष्ट्रपति पद तक उड़ान भरी और एक ऐसे राष्ट्रपति बने जिन्होंने जन-जन के दिल में अपनी जगह बनाई और देश के बच्चे-बच्चे ने उन्हें प्यार से गले लगाया जो बताता हैं कि उनका मन कितना स्वच्छ निर्मल एवं मासूम था जिसने कभी न तो रंग-रूप और न ही पद के आधार पर आदमी का विश्लेष्ण किया बल्कि ये माना कि “भले ही हमारी शक्लों सूरत साधारण हो लेकिन हमारे कर्म असाधारण होना चाहिये” और उनके कामों का यदि यहाँ जिक्र करना शुरू किया तो एक किताब ही भर जायेगी क्योंकि इन्होने तो केवल पद पर रहते हुये या सेवा में होने पर ही नहीं बल्कि हर एक पल कुछ न कुछ सार्थक किया और देश की युवा शक्ति को जागरूक करने के प्रयास करते रहे उनका कहना था कि युवा ही देश की शक्ति हैं अतः उनका सक्रिय रूप से हर काम में भाग लेना जरूरी हैं क्योंकि "शिखर तक पहुँचने के लिए ताकत चाहिए होती है, चाहे वो माउन्ट एवरेस्ट का शिखर हो या आपका पेशा”। उनका तो हर एक वाक्य ही प्रेरणा का मंत्र होता था जिससे कोई भी अपना जीवन सफल बना सकता हैं और उनके अंदर ये विश्वास, ये ऊर्जा का स्त्रोत आया था उनके ईश्वर पर असीम विश्वास से इसलिये उनका ये भी कहना था कि, "भगवान ने हमारे मष्तिष्क और व्यक्तित्व में  असीमित शक्तियां और क्षमताएं दी हैं, इश्वर की प्रार्थना हमें इन शक्तियों को विकसित करने में मदद करती है" अतः हमें प्रभु का ध्यान एवं धन्यवाद करना चाहिये जिससे कि हमारे अंदर कृतज्ञता का भाव आये और हमारा आत्मसम्मान हमें आत्मनिर्भर बनाये जिससे कि हमें किसी से मदद न लेना पड़े बल्कि हम दूसरों की सहायता करने के काबिल बन सके और ये सब केवल उन्होंने कहा नहीं बल्कि अपने जीवन काल में हर एक उक्ति को साकार कर दिखाया कि किस तरह एक मध्यमवर्गीय बालक केवल अपने आत्मविश्वास एवं प्रतिभा से आकाश की ऊँचाई छू सकता हैं जबकि सब कुछ उसके प्रतिकूल हो तब भी बस, उसे ये विश्वास होना चाहिये कि उसके जीवन एवं मंजिल के मार्ग में यदि मुश्किल आती तो उसकी वजह से अपना रास्ता या लक्ष्य नहीं बदले बल्कि उस नकारात्मकता को सकारात्मकता से परिवर्तित करें जो हमें डराती हैं इसके लिये ये जानना जरूरी हैं कि "इंसान को कठिनाइयों की आवश्यकता होती है, क्योंकि सफलता का आनंद उठाने कि लिए ये ज़रूरी हैं" याने कि सहज-सरल पथ पर चलकर तो कोई भी कहीं भी पहुंच सकता हैं लेकिन कंटक भरे मार्ग से जाने का आनंद केवल एक जीवट व्यक्ति ही समझ सकता हैं जो दुखों से नहीं डरता बल्कि उस पर विजय प्राप्त करता हैं अतः "कृत्रिम सुख की बजाये ठोस उपलब्धियों के पीछे समर्पित रहिये"... ये कथन आज उनके अंतिम क्षणों में भी उनकी उपलब्धि का बखान करता हैं... उनका ये असामयिक निधन देश की अपूरणीय क्षति हैं जिसे सुनकर हर देशवासी दुखी हैं... उनके यूँ चले जाने पर सबकी आँखें नम हैं... उनको हम सबका शत-शत नमन हैं... और... भावों से भरी श्रद्धांजलि... :( :( :’( !!!       
______________________________________________________
२७ जुलाई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: