गुरुवार, 2 जुलाई 2015

सुर-१८३ : "महिला का शरीर मंदिर हैं... उसका अपमान गैर-क़ानूनी हैं...!!!"

देर लगी
थोड़ी-सी जरुर
पर, आख़िरकार
कानून को भी
समझ में आ ही गया
कि औरतमहज़ ज़िस्म नहीं
उसकी देह से खिलवाड़
और फिर समझौता
उसका मजाक न उड़ा पायेगा
उसको अपने दर्द का
सिर्फ़ जरा-सा मुआवज़ा देकर
बहलाया न जा सकेगा ॥
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मित्रों...,

आज अख़बार के मुख्य पृष्ठ पर इन पंक्तियों को पढ़कर मन सुकून के अहसास से भर गया---

महिला का शरीर उसके लिए एक मंदिरकी तरह होता है । इसके खिलाफ हुआ अपराध उसमें जीने की इच्छा को कम कर देता है । उसकी प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाता है। कभी-कभी इस बात का दिलासा दिया जाता है कि आरोपी पीड़िता से शादी के लिए तैयार है। लेकिन ऐसी किसी बात से कोर्ट को प्रभावित नहीं होना चाहिए। इस आधार पर आरोपी के प्रति नरम रवैया नहीं अपनाया जाना चाहिए
                                                                    -----सुप्रीम कोर्ट

यह अहम फैसला सुप्रीम कोर्टने दुष्कर्म के एक मामले में दिया है कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा, ‘ऐसे मामलों में पीड़िता और आरोपी के बीच कोई समझौता नहीं हो सकता । पीड़ित और आरोपी के बीच शादी के लिए समझौता करना बड़ी गलती और पूरी तरह अवैध है यह महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है ।

आख़िरकार अदालत को महिलाओं की गरिमा और उसके ख्यालात का अहसास हो ही गया तभी तो उसने इतना महान निर्णय सुनाया जो निसंदेह उसके हित में काम करेगा क्योंकि जिस तरह से देश में आये दिन दुष्कर्म की घटनायें बढ़ रही हैं और सरकार या कानून की तरफ से अब तक भी इसके प्रति कोई भी सख्त कदम उठाया नहीं गया हैं जिसके कारण अब भी अपराधी उसे करने से कतराता नहीं बल्कि उसे अपना हक समझता हैं तभी तो किसी भी महिला के लिये अकेले निकलना या किसी जरूरी काम से भी बाहर जाना अक्सर किसी न किसी को उसके साथ कुछ भी करने का निमंत्रण देता सा लगता तभी तो गाँव हो या शहर कहीं भी वो सुरक्षित नहीं चाहे फिर वो मज़बूरीवश नित्य क्रिया के लिये खुलेआम जा रही हो या फिर किसी नौकरी या किसी भी वजह से बाहर निकली हो बुरी नियत वालों को तो वो अपनी संपति लगती जिस पर अधिकार जमाने से उन्हें कोई भी रोक नहीं सकता हैं और जिस तरह से होने वाली घटनाओं के प्रति नाइंसाफी ने उन अपराधियों के हौंसले बढाये और जनता को निराश किया हैं उसकी वजह से अब भी इस तरह के मामलों में कोई भी पड़ना नहीं चाहता वैसे भी किसी के अंदर इतना साहस नहीं जो इनका मुकाबला कर सके या आगे बढ़कर किसी अबला की ही मदद करें तभी तो दिन दहाड़े भी इस तरह की घटनायें आम होने लगी हैं । चूँकि इस देश में किसी भी महिला के साथ इस तरह का कोई भी दुष्कर्म करने पर उसको ही दोषी ठहराया जाता हैं तो उसकी वज़ह से भी इस तरह के घृणित कर्म करने वाले को न सिर्फ़ शह मिलती बल्कि लडकियों को भी अनजाने में कमजोर बना दिया जाता और फिर उनके सामने आत्महत्या या चुप रहने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता और कहीं-कहीं तो इस तरह के मामलों में उस पीड़िता को उसी अपराधी के साथ समझौता कर अपने कदम पीछे हटाने पड़ते या कभी-कभी तो उसके साथ ही उसे ब्याह दिया जाता और हर स्थिति में फ़ायदा सिर्फ उस बलात्कारीका ही होता और हर तरह के शोषण के बावजूद भी उस कन्या को ही सर झुकाकर सबका फ़ैसला मानना पड़ता जहाँ कोई भी उसकी मर्जीं न तो पहले ही पूछता था और अब तो उसे इस काबिल भी नहीं समझता और उसका दामन जो तार-तार हो ही चुका हैं अब उसके आंसुओं को भी अपने में समेट नहीं पाता और सबका हासिल जिंदगी भर का अंधकार उसके हिस्से में आता हैं ।

प्रथम मामला : मध्यप्रदेश के गुना जिले का है जहाँ पर मदनलालनाम के व्यक्ति के खिलाफ सात साल की बच्ची से दुष्कर्म का मामला दर्ज किया गया था और निचली कोर्ट ने उसे दोषी मानते हुए सात साल की सजा दी लेकिन हाईकोर्टने पेश सबूतों को खारिज करते हुए कहा कि मामला दुष्कर्म का नहीं लगता । कोर्ट ने इसे महिला की गरिमा को चोट पहुंचाने के लिए बल प्रयोग का मामला माना और 'मदनलाल' को सिर्फ एक साल की सजा सुनाई चूँकि ' मदनलाल' इतनी सजा पहले ही काट चुका था लिहाजा उसे रिहा कर दिया फिर इस फैसले को मध्यप्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी । जिसके फ़ैसले में जस्टिस दीपक मिश्रकी अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, ‘हाईकोर्ट ने मामले में हल्की धारा लगाकर गलत किया इसे कानूनन सही नहीं माना जा सकता इसलिए हाईकोर्ट दोबारा सुनवाई करे' । कोर्ट ने दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते की दलील को भी खारिज कर दिया जिसके लिये उसने दो साल पुराने अपने ही एक फैसले का हवाला देते हुए कहा, ‘दुष्कर्म के मामलों में दोनों पक्षों के बीच कोई भी समझौता आरोपी की सजा कम करने का आधार नहीं हो सकता।

द्वितीय मामला : जिसका हवाला दिया गया उसमें मद्रास हाईकोर्टने नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में अनूठा फैसला सुनाया था जस्टिस डी. देवदासने आरोपी को इसलिए जमानत दे दी थी कि वह पीड़िता के साथ समझौते की प्रक्रिया में शामिल हो सके । आरोपी से पीड़िता के नाम पर एक लाख रुपए की एफ.डी.भी करवाने को कहा था क्योंकि पीड़िता के माता-पिता का निधन हो चुका है और वह दुष्कर्म के बाद जन्मे बच्चे की मां बन चुकी है पर, ये महिला रेप की वजह से एक बच्चे की मां बनकर भी सुलह करने तैयार नहीं है अतः सुप्रीम कोर्टने कड़ा रुख़ अपनाते हुए एक अहम आदेश में कहा है कि दुष्कार्म के मामलों में पीड़िता और आरोपी के बीच कोई समझौता नहीं हो सकता न्यायालय ने साफ कहा है कि पीड़ित-आरोपी के बीच शादी के लिए समझौता करना 'बड़ी गलती' और पूरी तरह से 'अवैध' है।

साथ ही उच्चतम न्यायालय ने दुष्कर्म के मामलों में अदालतों के नरम रुख़ को भी गलत ठहराया और इसे महिलाओं की गरिमा के खिलाफ बताया 'रेप' और रेप की कोशिश के मामलों में शादी के नाम पर पीड़ि‍ता और अपराधी के बीच सुलह पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़े फैसले में कहा है कि जिस तरह अदालतें ऐसी सुलह के आदेश देती हैं वो ना सिर्फ गैरकानूनी हैं बल्कि उनसे महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं। अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बलात्कार समाज के ख़िलाफ़ एक अपराध है, ये दो पक्षों के बीच का मामला नहीं है जो आपस में सुलह कर लें । अदालत ये नहीं जान सकती कि ऐसी सुलह वास्तविक है- क्योंकि पीड़ित दबाव में या जीवन भर के सदमे से बचने की कोशिश में सुलह को मजबूर हो सकती है ।

इस तरह के फ़ैसले एक नारी की अस्मिता और उसके गरिमा को बनाये रखने में सहायक होंगे जहाँ दुष्कर्म के बाद उसे सुलह के नाम पर और अधिक पीड़ित न किया जा सकेगा और उसे अपने इच्छा से जीने का अधिकार मिलेगा अतः कोई भी उसे मजबूर न कर सकेगा कि एक जबरदस्ती के बाद उसे एक खिलौना समझकर उसकी भावनाओं से खेलते रहने का मौका मिल जाये जो हो गया उसे रोकना भले ही नामुमकिन था लेकिन उसके बाद भी उसे होते रहने देना या उस वहशी को अपना पति बनाकर उसके जुल्मों तले घुट-घुट के जीना उसकी मजबूरी नहीं हो सकती उसे अधिकार हैं कि वो इसके लिये कानूनन इंकार कर सके अपनी गरिमा को बरक़रार रख सके अब कानून उसके साथ हैं... उसे भी अपनी तरह से जीने का अधिकार हैं... :) :) :) !!!
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०२ जुलाई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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