सोमवार, 13 जुलाई 2015

सुर-१९४ : "आया कुंभ का महापर्व... सब करो मिलकर धर्म-कर्म...!!!"

कल
सुबह का
सूरज करेगा
उपासकों के लिये
कुंभ मेले का आगाज़
लहरायेगी धर्मध्वजा
करेंगे संत-महात्मा
आस्था का हवन
होंगे पवित्र तन-मन
कि ये तो हैं धर्म-कर्म का
सांस्कृतिक आयोजन
कहलाता ‘कुंभ’ का समागम
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मित्रों...,

सभी धर्म ग्रंथों और पुराणों का अध्ययन करने पर बड़ी आसानी से ये समझ में आ जाता हैं कि ऋषि ‘दुर्वासा’ जो कि महान तपस्वी और तेजस्वी हैं अपने तपोबल के कारण बहुत जल्दी ही आवेश में आ जाते हैं फिर ऐसे में उनका अपने आप पर कोई काबू नहीं रहता और कमंडल से जल अपने आप ही हाथ में और अभिशाप मुंह में आ जाता और सामने वाला उनका शिकार बन जाता हैं... ऐसे ही एक समय उन्होंने गुस्से में आकर देवराज ‘इंद्र’ को शाप दे दिया जिसकी वजह से वे और अन्य सभी देवता कमजोर पड़ गये और जब ‘देवासुर संग्राम’ हुआ तो समस्त देवगण पराजित हो गये जिसने उनको सोचने पर मजबूर कर दिया और जैसा कि हमेशा होता हैं ऐसी परिस्थितियों में सभी देवता मिलकर त्रिदेव के पास जाते हैं तो इस बार भी ये अपनी हार की कहानी सुनाने सृष्टि पालक ‘विष्णु जी’ के पास पहुंचे तो उन्होंने उनको पुनः शक्तिशाली बनने के लिये दैत्यों के साथ संधि कर ‘क्षीरसागर’ का मंथन करने की सलाह दी कि ऐसा करने से उससे जो जीवनदायिनी अमृत निकलेगा उसका सेवन सबको फिर से ऊर्जावान बना देगा तो उनकी सलाह से ऐसा ही किया गया और शेषनाग की रज्जू बनाकर सागर को मथा गया तो अंततः जब उनका अपेक्षित ‘अमृत’ निकला तो उसे पाने के लिये भी दोनों में लड़ाई छिड़ गयी जिसकी वजह से कहते हैं कि वो कलश जिसमें ‘अमृत’ था उसमें से कुछ बूंदें कुछ स्थानों पर गिर गयी और ये स्थान थे... ‘हरिद्वार’, ‘नासिक’, ‘उज्जैन’ और ‘प्रयाग’ जिसकी वजह से इन जगहों पर ही इसका आयोजन किया जाता हैं कहते हैं कि देवता और असुरों में इसे पाने के लिये बारह दिन तक युद्ध होता रहा था और चूँकि देवताओं का एक दिन हमारे एक साल के बराबर होता हैं इसलिये हर बारह साल बाद इसका भव्य स्तर पर महा आयोजन किया जाता हैं जिसे कि ‘महाकुंभ’ कहा जाता हैं जबकि तीन साल पर आने वाले इस पर्व को ‘सिहस्थ’ या ‘अर्ध कुंभ’ का नाम दिया जाता हैं

किस समय, किस स्थान पर इस उत्सव को मनाया जायेगा ये ‘सूर्य’ और ‘बृहस्पति’ की स्थिति के अनुसार निश्चित किया जाता हैं क्योंकि देवता और दानवों में जब अमृत घट के लिये छीना-झपटी हो रही थी तो उस समय कलश में छेद हो गया जिससे वो रिसने लगा और उसी दौरान उसकी बूंदे उन चार जगहों पर छलक गयी थी तो ऐसे में उसको रिसने से रोकने के लिये ‘सूर्य’, ‘चंद्रमा’, ‘शनि’ एवं ‘बृहस्पति’ ने बेहद मशक्कत की अतः जब ‘सूर्य’ मेष राशि और ‘बृहस्पति’ कुंभ राशि में  आता है,  तब यह ‘हरिद्वार’ में मनाया जाता है और जब ‘बृहस्पति’ वृषभ राशि में है और ‘सूर्य’ मकर राशि में आता है, तो कुंभ ‘प्रयाग’ में मनाया जता है और जब ‘बृहस्पति’ और सूर्य वृश्चिक राशि में आते हैं तो मेला ‘उज्जैन’ में मनाया जाता है इसी प्रकार यह कहा जाता है कि जब बृहस्पति और सूर्य राशि चक्र चिन्ह, सिंह राशि तब  कुंभ मेला ‘नासिक’ के ‘त्र्यंबकेश्वर’ में मनाया जाता है अर्थात कुछ भी निष्प्रयोजन या बेवजह नहीं धर्म ग्रन्थों में हर एक बात का गहन विश्लेषण के साथ वर्णन किया गया हैं जो पाठकों की हर जिज्ञासा का शमन करता हैं । यही कारण हैं कि हिंदू धर्म में ‘कुंभ’ मेले का अपना ही महत्व हैं और लोग बरसों-बरस इसका इंतजार करते हैं क्योंकि ये कोई हर साल तो आता नहीं फिर जब-जब भी जहाँ आता हैं लोग वहाँ ही पहुँच जाते तो कल इसकी शुरुआत होगी नासिक के ‘त्र्यम्बकेश्वर’ से जहाँ लाखों श्रद्धालु एकत्रित होकर पवित्र ‘गोदावरी’ में स्नान करे पूजन-हवन कर मानसिक ध्यान के साथ-साथ मन को नियंत्रित कर कठिन साधना करेंगे और इसके साथ ही यहाँ विशेष शुभ मुहुर्तों में तीन तिथियों पर ‘शाही स्नान’ भी होंगे नासिक कुंभ मेले का प्रथम शाही स्नान २९ अगस्त, द्वितीय शाही स्नान १३ सितंबर और तृतीय शाही स्नान १८ सितंबर को होगा और इस तरह भक्ति भाव के साथ धर्म-कर्म का ये महापर्व लगभग ढाई महीने तक मनाया जायेगा और २५ सितंबर २०१५ को समाप्त होगा... तो सभी लोगों को इस महाउत्सव की अनंत शुभ-कामनायें... सब मिलकर अपने तन-मन को पवित्र बनाये... इस तरह इस महापर्व को मनाये...  :) :) :) !!!
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१३ जुलाई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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