रविवार, 26 जुलाई 2015

सुर-२०७ : "कारगिल विजय दिवस... शहीदों को करें नमन...!!!"

दुश्मन उपर
चोटी पर था बैठा
सेना नीचे
धरती से रही मार
ऐसा किया
जमकर उस पे वार
गिरा उसे
जमीन पे चटा दी धूल
जता भी दिया 
अब न करना ऐसी भूल
वरना...
हिलाकर रख देंगे तुम्हारी चूल
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मित्रों...,

कभी ये वतन अखंड था जिसमें सब एक साथ एक ही जमीन पर मिलकर प्रेम से रहते थे पर, जब इस ‘सोने की चिड़िया’ कहलाने वाले मुल्क पर विदेशियों की नजर पड़ी तो उन्होंने अधिक से अधिक फायदा उठाने के लिये ‘फूट डालो राज करो’ का अचूक हथियार चलाया और जिसने पूरी दुनिया के सामने ‘अनेकता में एकता’ की अद्भुत अनुकरणीय मिसाल पेश की उसी भारत भूमि के टुकड़े-टुकड़े करवा दिये तो वही जो कभी भाई-भाई थे हंसकर हर ईद-दिवाली मिलाकर मनाते थे किसी तरह का भेदभाव न मानते थे वही उनकी सियासी चाल का ऐसा मोहरा बने कि फिरंगियों के जाने के बाद भी अब तक राजनीतिज्ञों के हाथ में रखे ताश के पत्ते बने हुये हैं जिन्हें वो कभी भी अपनी जरूरतों के हिसाब से इस्तेमाल करता रहता हैं शायद, यही वजह हैं कि जब भी कभी भाइयों के बीच दूरियां मिटाने की बात होती हैं या कोई भी ऐसा प्रयास किया जाता हैं कि वे आपस में मिल अपने गिले-शिकवे दूर कर सके तो यही बंटवारा कराने वाले फिर सक्रिय हो जाते हैं और उन्हें बांटने वाली दीवार में ईट-सीमेंट का गारा और थोड़ा-सा भर देते हैं ताकि वो फिर से कमजोर न होने लगे और किसी के भी तोड़ने से न टूटे तभी तो हर कोशिश नाकाम दिखाई देती हैं और जो जहर दहशतगर्दियों के जेहन में भर दिया गया हैं वो उसे उगलने लगते हैं जिसका खामियाज़ा सबसे ज्यादा बेगुनाहों को भुगतना पड़ता हैं पर, सियासतदारों को क्या फर्क पड़ता वो तो यही चाहते कि जंग यूँ ही होती रहे, दुश्मनी यूँ ही बढ़ती रहे, नफरत की खाई गहरी होती रहे जिसका नतीजा वो ‘कारगिल युद्ध’ भी हैं जो उन कट्टरपंथियों की वजह से हुआ जो ये मानने को तैयार नहीं कि इंसानी जान किसी जमीन के हिस्से से अधिक महत्वपूर्ण हैं और यदि वो जबरन हमारे घर में डाका डालेंगे तो वही होगा जो हर बार होता हैं क्योंकि उनको धोखा देना या पीठ पर वार करना आता हैं तो हमको भी सीने पर वार झेलने और शत्रु को हर हाल में मार गिराने का हूनर आता हैं


भले ही इस ‘अखंड भारत’ के अनेक हिस्से कर दिये गये और उनके बीच ‘लाइन ऑफ़ कंट्रोल’ भी बना दी गयी पर, जिसे किसी संविधान, कानून या न्यायपालिका का भय नहीं और न ही किसी से प्रेम हैं वो भला कब इस तरह की लकीरों की इज्जत करने लगे तो हर मर्यादा की तरह आये दिन  इसे भी तोड़ने में लगे रहते ऐसा ही कुछ हुआ था मई १९९९ में जब कई पाकिस्तानी सैनिक एवं आतंकवादी इस दहलीज को पार कर हमारी भूमि में चोरों की तरह चुपके से घुस आये और हमारी बहुत सी महत्वपूर्ण चोटियों पर अपना कब्जा जमा कर बैठ गये थे साथ-साथ लेह-लद्दाख को भारत से जोड़ने वाली सडक भी अपने नियंत्रण में ले लिये थे जिससे कि सियाचिन ग्लेशियर पर हमारे देश को कमजोर कर अपना अधिकार कर सके ऐसी स्थिति में भी हमारे देश के जवान सैनिक बिलकुल न घबराये बल्कि उनको मुंह तोड़ जवाब देकर इस देश से निकालने के लिये जान की बाजी लगाने तैयार हो गये और इस तरह दुश्मन को भागने के लक्ष्य के साथ ‘ऑपरेशन विजय’ का आगाज़ किया गया और आख़िरकार आज के दिन यानी कि २६ जुलाई १९९९ को उन्होंने इसमें सफ़लता प्राप्त कर ही ली जिसने फिर इतिहास रच दिया कि शत्रु कितना भी ताकतवर हो या कितनी भी चालाकी क्यों न दिखाये लेकिन इस देश के वीर सैनिक जो सेना में भर्ती होते समय ही अपनी मातृभूमि की खातिर अपने प्राणों की भी परवाह न करने की शपथ लेते हैं उसे वो वक्त पड़ने पर शब्दशः निभाते भी हैं जिसे वो अनगिनत अवसरों पर सिद्ध कर चुके हैं और जब भी देश पर मुसीबत आई उन्होंने हंसते-हंसते जान की बाजी लगाई... आज के दिन उन सभी शहीदों को हर हिंदुस्तानी के दिल की गहराइयों से अपने उन हौंसलों के लिये बधाई... जिसकी वजह से हमने आज़ादी न गंवाई... :) :) :) !!!  
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२६ जुलाई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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