मज़हब
नहीं कोई भी
‘चाँद’ का
वो तो साथी हैं
हर किसी का ।
.....
बांटता
बेसबब खुशियाँ
देता शीतल छाँव
भरे दामन चुपचाप
हर किसी का ।
.....
कभी ‘ईद’ तो
कभी ‘दूज’ या
कभी ‘चौथ’ और
कभी ‘पूनम’ में निकल
खिला देता चाँद-सा चेहरा
हर किसी का ॥
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मित्रों...,
कुदरत ने फिर एक बार
अद्भुत संयोग बना दिया जब आषाढ़ द्वितीया का सूरज पूरी दुनिया के लिये एक साथ
खुशियों की सुबह लेकर आया तो हर मज़हब के लोगों ने मिलकर उसका इस्तकबाल किया कि
सबकी दुआ कुबूल हो गई और इस तरह सबको त्यौहारों की कड़ियों ने एक सूत्र में बाँध
दिया क्योंकि जहाँ कोई किसी को सुबह की नमाज़ के बाद 'ईद मुबारक' कह रहा था तो दूजा उसे ‘जगन्नाथ पुरी’ की ‘रथयात्रा’ एवं ‘नवकलेवर’ की बधाइयाँ दे रहा था इसके
अलावा माँ जगतजननी के ‘नवरात्र’ पर्व ने भी प्रकृति को
सुखद अहसास से भर दिया हैं वैसे भी इस बार ‘पुरुषोत्तम
मास’ और ‘रमज़ान’ का साथ-साथ शुरू होकर खत्म
होना फिर उसके बाद एक साथ पर्वों का आना सबको बचपन में पढ़े एकता के पाठ और उस
पुरातन गंगा-जमनी तहज़ीब का सबक याद दिला गया जब इसी तरह सभी धर्मों के लोग एक साथ
मिलकर हर एक त्यौहार मनाते थे ।
समय के साथ दुनिया के
रंग-ढंग देखकर सबने इस बड़ी कायनात में अपने अलग-अलग जहान बसा लिये और उसमें इस कदर
गुम हुये कि अपनों को ही पहचान नहीं पाते फिर दूसरों की तो बात ही क्या लेकिन हर
पर्व, हर एक त्यौहार का मूल उद्देश्य यही होता कि वो उदासीनता के
वातावरण में हर्ष की लहर छोड़कर सबके लबों पर मुस्कान की छटा बिखेर दे जिससे कि सब
उसमें इस तरह हिल-मिल जाये कि कोई भेदभाव न बाकी रह जाये चूँकि इंसान का अभी तक
प्रकृति पर जोर नहीं चला हैं तो वो अपने स्वार्थ हित के लिये एक इंसान को दूसरे से
जुदा करने की कितनी भी साज़िश कर ले लेकिन जब उपरवाला अपना चक्कर चलाता हैं तो फिर
वो सबको एक साथ ले आता हैं आज भी ऐसा ही विलक्षण योग बना हैं तो फिर हमने भी हर
मिल जुलकर उसका आनंद उठाया सिवई भी खाई तो भोग भी लगाया... इस तरह हमने ‘ईद’ और ‘नवकलेवर’ साथ-साथ मनाया... :) :) :)
!!!
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१८ जुलाई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह “इन्दुश्री’
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