बुधवार, 1 जुलाई 2015

सुर-१८२ : "डॉक्टर डे... शुक्रिया कहने का डे...!!!"

वो
कोई
अपना नहीं
मगर...
पराया भी तो नहीं हैं
...
उससे
मेरा कोई
गहरा ताल्लुक
कोई रिश्ता या
नाता भी तो नहीं हैं
...
फिर भी
उसने मुझे
मेरे हर दर्द से
निज़ात दिलवाई
मेरे जख्मों पर 
मरहम भी लगाया 
मेरी हर बीमारी का
उपचार किया
मुझे हर तकलीफ़ से
छुटकारा दिलाया
तो फिर आज उसको
मैं क्यों न कहूँ ‘शुक्रिया’
...
वो कोई और नहीं...
मेरा ‘फैमिली डॉक्टर’ हैं जी
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मित्रों...,

एक जुलाई की सुबह आते ही अपने साथ लेकर आती हैं हमारे उन हमदर्दों का ख़ास दिन जिनकी वजह से हम अपने हर छोटे-बड़े दर्द से मुक्ति पाते हैं जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पंचतत्वों से बनी हमारी ये ‘देह’ इन पाँचों तत्वों के असंतुलन की स्थिति में रुग्ण हो जाती हैं और फिर उसकी इस बीमार अवस्था को यदि कोई ढंग से समझ पाता हैं तो वो हैं ‘वैद्य’ जो हाथ पकड़कर सिर्फ़ नाड़ी देखकर ही रोग़ का पता लगा लेते हैं और फिर जरा-से उपचार मात्र से उसे पुनः स्वस्थ कर हमें प्रसन्नचित्त होने का एक और अवसर देते हैं चूँकि जमाने के साथ नीम-हकीम या वैद्यों की संख्या में तो कमी आ गयी हैं और उनका स्थान ले लिया हैं उच्च शिक्षित ‘डॉक्टर्स’ ने जो अब आधुनिक तकनीकों से और भी कारगर तरीके से मरीज को रोगमुक्त कर देते हैं फिर भी बहुत से मर्ज ऐसे हैं जिनका इलाज़ अब भी खोजा जा रहा हैं फिर भी कहते हैं कि यदि आपका ‘डॉक्टर’ आपकी नब्ज को बेहतर तरीके से समझता हैं तो फिर भले ही कितनी भी लाईलाज बीमारी क्यों न हो जाये वो आपको उसका अहसास होने नहीं होने देता और जितना भी उसके द्वारा मुमकिन हो वो आपको भले ही आपकी बीमारी से छुटकारा न दिला पाये लेकिन इस बात का प्रयास करता हैं कि जितना अधिक से अधिक हो सके वो आपकी जिंदगी को उसके अंत तक पहुँचने से रोक पाये अक्सर एक सबसे अच्छा ‘डॉक्टर’ तो केवल अपनी बातों से ही आपकी हर तकलीफ़ को आधा कर देता हैं और आपको भी भले ही कितनी भी असहनीय पीड़ा क्यों न हो रही हो या कोई कैसी भी बीमारी की आशंका क्यों न जता दे पर, जब आप उसके करीब जाते हैं तो अपने उस दुःख को जैसे भूल ही जाते हैं और यही तो एक चिकित्सक का काम हैं कि लोग उसके पास आने से घबराये नहीं बल्कि उसे अपना मित्र समझ अपने हर दुःख, अपनी हर तकलीफ़ को उसके साथ साँझा करें

यूँ तो हम सब चाहते ही नहीं कि हमें कभी भी उसके पास जाना पड़े अमूमन इस देश में एक धारणा बनी हुई हैं जिसके कारण अधिकांश लोग अपने रोग से उतना नहीं डरते जितना कि ‘डॉक्टर’ या ‘अस्पताल’ जाने से उनकी रूह कांपती हैं इसकी वजह शायद ये हैं कि हमें बचपन से ही उसके नाम से डराया जाता हैं और उसकी सुई की बात कह-कह कर हमारे भीतर उसके प्रति एक प्रकार का भय भर दिया जाता हैं जो बाल्यकाल गुजर जाने के बाद भी मन के किसी कोने में उसी तरह बरकरार रहता हैं और जब-जब भी हम अस्वस्थ होते उसी काल्पनिक चित्र से घबरा जाते हैं । ‘तकनीकी युग’ की वजह से जब सब कुछ बेहद आसान हो गया हैं तो फिर किसी भी बीमारी के इलाज़ पर भी इसका असर हुआ हैं और अब तो लोग ‘नेट’ पर सब तरह की जानकारी उपलब्ध होने से अपनी मनोस्थिति को भी अच्छे से समझ पाते हैं लेकिन उसके बावज़ूद भी यही मनाते कि हमें कभी किसी डॉक्टर के पास न जाना पड़े लेकिन फिर भी यदि हम गौर करें तो पाते हिं कि हमारे यहाँ दिन-ब-दिन सर्वसुविधायुक्त अस्पतालों की संख्या में इज़ाफा होता जा रहा हैं । ये और बात हैं कि इन सभी तरह के चिकित्सालयों में सबका जाना संभव नहीं क्योंकि इस जगह के खर्च को वहन कर पाना हर किसी के बस की बात नहीं फिर भी पुरानी और आज की चिकित्सा पद्धति में जो परिवर्तन आया हैं उससे जहाँ उपचार सहज हुआ हैं वहीँ उसका खर्च भी तो बढ़ा हैं पर, खुदा का शुक्र हैं कि हमारे यहाँ ऐसे डॉक्टर्स भी हैं जो केवल नाममात्र की फीस लेकर दर्दमंदों को उनकी तकलीफ़ से छुटकारा दिलवाते हैं जो ये दर्शाता हैं कि उन्होंने अपने पेशे के साथ जो शपथ ली उसके प्रति वो अपनी जिम्मेदारी को न केवल समझते बल्कि अपने फर्ज़ को भी उतनी ही ईमानदारी से निभाते भी हैं ।

आज का ये विशेष दिवस समर्पित हैं ऐसे ही आस्थावान कर्मनिष्ठ चिकित्सकों को जिनकी वजह से बहुत-सी बीमारियों का खात्मा किया जा सका हैं... जिन्होंने लगातार अथक परिश्रम से ऐसी दवाइयाँ बनाई कि किसी भी व्यक्ति को किसी भी रोग की वजह से असमय जीवन से हाथ न धोना पड़े... हम उन सबको <3 से धन्यवाद कहें कि उन्होंने हमारे दर्द को हमसे बेहतर समझ हमें उससे छुट्टी दिलवाई... सबको ‘डॉक्टर्स डे’ की बहुत-बहुत बधाई... :) :) :) !!!
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०१ जुलाई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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