बुधवार, 22 जुलाई 2015

सुर-२०३ : "राष्ट्रीय ध्वज अंगीकरण दिवस... बना तिरंगे का जन्मदिवस...!!!"

हरा
सफेद
केसरिया
मिले तीन रंग
तो बन जाता ‘तिरंगा’
जो हैं देश का प्रतीक
मनाये हम सब मिलकर
आज उसका ‘जन्मदिवस’
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मित्रों...,


२२ जुलाई १९४७ का दिन हम सबको कभी भूलना नहीं चाहिये क्योंकि इस दिन हमारे देश को उसकी पहचान उसका प्यारा दुलारा ‘तिरंगा’ मिला जो उसकी आन-बान-शान का प्रतीक बना जिसका हर एक रंग किसी न किसी तरह का संदेश देता केवल हमारे देखने का नजरिया ही होता जो हम उसके उस मायने को उतनी शिद्दत से ग्रहण नहीं करते क्योंकि हमने केवल उसे पढ़ा हैं लेकिन कभी उस तरह से जाना या समझा नहीं जैसा कि उसके लिये जान देने वाले एक सच्चे देशभक्त ने उसे इतना अजीज मान लिया कि फिर उसका मान बरकरार रखने के लिये हंसते-हंसते अपनी जान तक न्यौछावर कर दी जबकि हम हर एक राष्ट्रीय पर्व पर उसे फहराता देखते कागज़ पर उसकी छवि देखकर उसे खरीद भी लेते पर, उसे धरती पर पड़ा देखकर कितने लोग उसे झुककर उठाते या उसका सम्मान करते क्योंकि संविधान के अनुसार तो उसकी छवि जिस किसी चीज़ पर बनी हो फिर वो उतनी ही सम्मानजनक हो जाती जितना कि पूज्यनीय वो असल परचम होता तभी तो जिसके अंतर में वो किसी सजीव काया के समान घर कर गया उसका अपना अंतर्मन ही पवित्र मंदिर बन गया क्योंकि ये तिरंगा सिर्फ़ तीन रंग से रंगा हुआ कोई कपड़ा नहीं बल्कि इसमें तो यदि कहीं शहादत की दुखद कहानियां भरी पड़ी हैं तो कहीं विजय की सुखद गाथायें भी लिखी हुई हैं जब इसकी ख़ातिर देश के वीर जवानों ने अपनी जान पर खेलकर भी इसकी लाज रखी तो उसके लहू का रंग छिटक कर उस झंडे पर गिरते हुये अपनी दास्ताँ लिख गया और जब किसी ने फ़तह हासिल कर उस जगह पर झंडा गाड़ अपनी जीत का जश्न मनाया तो उसकी आँख से गिरे ख़ुशी के आंसुओं ने उसी झंडे पर उसकी विजय कीर्ति का इतिहास लिख दिया याने कि इस तिरंगे के कहने को ही तीन रंग हैं लेकिन इसमें जीवन के हर एक रंग का कोई ख़ास दिलकश अफ़साना लिखा हुआ हैं जिसे पढ़ने के लिये सिर्फ नजरों का होना ही काफ़ी नहीं बल्कि दिल में देशभक्ति का जज्बा होना चाहिये और वो भी किसी विशेष दिवस नहीं बल्कि हर एक पल, हर एक क्षण उसे जीना चाहिये तभी तो फिर बातों में भी वो झलक जाता हैं    

२२ जुलाई १९४७ को भारत के संविधान ने इस ‘तिरंगे’ को ‘राष्ट्रीय ध्वज’ के रूप में स्वीकार किया और तभी से हर साल आज का दिन ‘राष्ट्रीय झण्डा अंगीकरण दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा जिसकी परिकल्पना १९१६ में ‘पिंगली वेंकैया’ ने इस सूत्र के आधार पर कि जिस देश में विविध भाषा, जाति, रंग-रूप वाले लोग रहते हैं वहां सबको एकसूत्र में बांधने वाला कोई प्रतीक होना चाहिए की और बस अपने दो अन्य मित्रों ‘एस.बी. बोमान जी’ और ‘उमर सोमानी जी’ के साथ मिलकर उन्होंने 'नेशनल फ़्लैग मिशन' की शुरुआत की और जब इसके लिये उन्होंने देश के राष्ट्रपिता ‘महात्मा गांधी’ से मशविरा लिया तो उन्होंने उस ध्वज के मध्य में ‘अशोक चक्र’ को रखने की सलाह दी और इस तरह हमारे तिरंगे के रूप में उनकी कल्पना साकार हुई तो आज उसी झंडे के जन्मदिन पर उसे अनंत शुभकामनायें और उसके जनक का भी हृदय से आभार जिनके कारण आज हम बड़े गर्व से उसे लहराते हैं और जोर-शोर से गाते हैं... झंडा ऊंचा रहे हमारा... विजयी विश्व तिरंगा प्यारा... :) :) :) !!!
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२२ जुलाई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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