रविवार, 5 जुलाई 2015

सुर-१८६ : "लघुकथा - फ़र्जी डिग्री...!!!"

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मित्रों...,

टी.वी. पर आ रही फर्जी डिग्री वाले नेताओं की न्यूज़ देख रहें रामप्रसाद से उनका पांच साल का पोता ‘राहिल’ पूछने लगा कि, दादाजी ये फर्जी डिग्री क्या होती हैं ???         

उसे समझाने के दृष्टि से दादाजी ने कहा कि, बेटा मान लो कि तुम्हें ‘शतरंज’ खेलना नहीं आता लेकिन फिर भी तुम अपने स्कूल में होने वाली खेल प्रतियोगिता में उसमें भाग लिये बिना ही अपने पापा के पैसों के दम पर उसके विजेता का सम्मान हासिल कर लो तो ये फर्जी पुरस्कार कहलायेगा ऐसे ही कुछ लोग परीक्षा में नहीं बैठते पर, फिर भी वो पैसे देकर रिजल्ट खरीद लेते हैं

‘राहिल’ तुरंत बोला जैसे कि पापा अक्सर दुकान जाते हैं और बिना कोई सामान खरीदे ही उसका बिल ले लेते हैं तो वो भी तो नकली कहलायेगा... हैं न

इससे पहले कि उसके दादाजी उसे कोई जवाब देते वही पीछे टेबल पर बैठकर ऐसे ही नकली बिल्स से अपने ऑफिस की ‘बैलेंस शीट’ बना रहे पापा उठकर आये और उसे गले लगाकर बोले आज से तेरे पापा ऐसा कोई काम नहीं करेंगे... ये वादा हैं तेरे पापा का तुझसे

दादाजी सोच रहे थे काश, इन नेताओं की आँख खोलने वाला भी कोई होता जो सब कुछ सामने होने पर सच्चाई स्वीकार करने से मुकरते हैं   
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०५ जुलाई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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