रविवार, 12 जुलाई 2015

सुर-१९३ : "ख़ुद से ही करें प्यार... न ढूंढें कोई तलबगार...!!!"

काश,
कोई होता
जो हमको हमसे
बेहतर समझ लेता
चाहता हर कोई
लेकिन...
सोच ले इक बार
कहीं ऐसा न हो कि
उसकी थोड़ी-सी बेवफ़ाई
जान की दुश्मन ही बन जाये
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मित्रों...,

‘सौम्या’ बेहद खुश थी कि उसे ‘आरव’ जैसा चाहने वाला मिला था जो न सिर्फ़ उसकी हर छोटी-छोटी ख्वाहिश को पूरा करता बल्कि उसके बिना कहे, बिना कुछ मांगे ही उसके मन की  हर एक बात, उसके दिल की चाहत को समझ जाता और फिर वैसा ही करता जैसा वो सोच रही होती तो धीरे-धीरे बीतते समय के साथ इस बात ने उसे एकदम पुरसुकून बना दिया था क्योंकि एक लड़की जिसकी आँखों में पैदाइश के साथ ही सफ़ेद घोड़े पर सवार होकर आने वाले सपनों के राजकुमार और उसके भावी घर का ऐसा ताना-बाना बुन दिया जाता कि उसे हमेशा उसका ही इंतजार होता ऐसे में जब उम्र के उस पड़ाव पर पहुंचकर ‘सौम्या’ को भी अपने उस ‘प्रिंस चार्मिंग’ की तलाश थी तो उसकी जिंदगी में ‘आरव’ आया जो उसके बनाये उस काल्पनिक सांचे पर पूरी तरह फिट बैठता था और इस तरह उन दोनों की प्रेम कहानी का आगाज़ हुआ जिस पर उनके परिवार वालों को भी ऐतराज़ नहीं था

जब उसकी पढाई खत्म होकर नौकरी लग गयी तो सभी घर के लोगों का सोचना था कि उन दोनों की शादी कर दी जाये क्योंकि अपने जॉब के सिलसिले में उसे शहर से बाहर जाना ही था तो अच्छा हो कि वो ब्याह कर अपनी पत्नि को साथ लेकर जाये पर, ‘आरव’ का सोचना था कि उसे कुछ समय मिले ताकि वो अच्छी तरह से स्थापित हो जाये तो सबकी सहमति से वो दो साल का समय लेकर अपने काम पर चला गया जहाँ उसकी मुलाकात ‘पूजा’ से हुई जिसने उसे इस तरह मोहित किया कि उसे ख़ुद को ही पता नहीं चला वो कब उसकी मुहब्बत में गिरफ्तार होकर ‘सौम्या’ को भूलने लगा और उसकी वही बातें जो पहले अच्छी लगती थी अब उसे बोरिंग लगने लगी थी और वो उससे पीछा छुड़ाने का मौक़ा ढूंढने लगा चूँकि वो ‘सौम्या’ को बहुत अच्छे से समझता था तो उसे जहाँ उसकी पसंद-नापसंद की जानकारी थी वहीँ इस बात का भी इल्म था कि उसकी कमज़ोर नस कौन-सी हैं तो उसने उसे ही दबाना शुरू कर दिया पहले तो उसने अपनी व्यस्तता और नई जगह जमने का बहाना कर उससे बात करना कम किया जिसके बिना वो परेशां हो जाती और फिर जिन बातों से वो चिढ़ती या नाराज़ होती उससे वही करने लगा ताकि वो कह सके वो जब अभी ही एडजस्ट नहीं कर पा रही तो फिर शादी के बाद क्या करेगी

उधर ‘सौम्या’ जो कभी इस बात पर इतराती थी कि ‘आरव’ तो उसकी नस-नस पहचानता हैं अब वही नसें उसका दम घोंटने लगी थी उसका ये बदला मिज़ाज और ये दूरी उससे सहन नहीं हो रही थी और जिस दिन उसने उसकी तुनकमिजाजी, बेसब्री, जल्दबाजी, भावुकता  और नासमझी को हथियार बना उससे रिश्ता तोड़ लिया उस दिन वो पूरी तरह टूट गयी और ख़ुद को इन सबकी ज़िम्मेदार मान रोती रहती पर, बहुत दिनों बाद जब उसकी किसी और से शादी की खबर मिली तो उसे ये अहसास हुआ कि जिस पर उसे नाज़ था और उसे लगता था कि वो न तो उसे कभी छोड़ सकता हैं, न उसका दिल तोड़ सकता हैं और न ही उसकी किसी भी ख्वाहिश का गला घोंट सकता हैं आख़िर वही उसकी जिंदगी नाश करने की वज़ह बना तो वो सहन न कर पायी और अपनी ‘आत्मघाती प्रवृति’ जिसका जिक्र वो अक्सर करता था और कहता था... ‘सौमि’ तुम य़ार एकदम झल्ली और भावुक हो और जिस कारण मुझे सबसे अधिक प्रिय हो पर, तुम्हारी एक आदत से मुझे डर लगता हैं कि तुम बहुत जल्दी घबरा जाती हो और एकदम से दुख भरी एवं नकारात्मकता पूर्ण मरने की बातें करने लगती हो इसे बदल दो नहीं तो किसी दिन ये तुम्हारे साथ-साथ मुझे भी न ले डूबे क्योंकि तुम्हें कुछ हुआ तो फिर मैं भी न जी पाउँगा... उसे याद कर वो नींद की गोलियां खाकर सो गयी  

‘सौम्या’ जैसी अनगिनत लडकियाँ ऐसे ही किसी ‘ड्रीम बॉय’ का सपना अपनी आँखों में सजाये बैठे रहती जो उनकी रग-रग से वाकिफ़ हो और चंद खुशनसीबों को वो मिल भी जाता लेकिन किसी-किसी के साथ ऐसा धोखा भी हो जाता जैसा कि ‘सोमी’ के साथ हुआ... इसलिये किसी के सामने अपने आपको पूरी तरह खोल देना भी कभी-कभी घातक बन जाता अतः किसी को इतना न चाहो कि उसके बिन जीना ही दूभर हो जाये क्योंकि जहाँ जिंदगी का ही कोई भरोसा नहीं उसे ही ‘बेवफ़ा’ का टाइटल मिला हुआ हैं वहां किसी इंसान से ये उम्मीद करना कि वो सदा साथ रहेगा एक दांव ही तो हैं जो किसी का लग जाता और किसी का नहीं लगता तो अपने जीवन को खेल नहीं बनाये... न ही इतना पारदर्शी कि आर-पार नज़र आये... कुछ तो हो पर्देदारी... कुछ तो राज़दारी... कुछ ऐसा जो आपको हर हाल में जिंदा रखे जिसे कोई चुरा न पाये... न चाहना किसी को इतना कि बिना उसके सांस लेना मुश्किल हो जाये... ‘प्यार’ तो सकता हैं बार-बार... लेकिन जीवन तो एक बार ही मिलता... खोना नहीं बेकार... कुछ समझे दिलदार... <3 :) :) :) !!!         
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१२ जुलाई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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