शुक्रवार, 17 जुलाई 2015

सुर-१९८ : "गुप्त नवरात्री आई... संयम-साधना की घड़ी लाई...!!!"

माँ तारा
माँ काली
माँ भैरवी
माँ षोडशी
माँ कमला
माँ मातंगी
माँ धूमावती
माँ भुवनेश्वरी
माँ बगलामुखी
माँ छिन्नमस्ता
दस महाविद्या
करे मन से नमन
आई उनकी पूजन की
‘गुप्त नवरात्रि’
उतारे भक्त आरती
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मित्रों...,

हर ऋतू परिवर्तन के साथ ही माँ आदिशक्ति के पावन पर्व ‘नवरात्र’ भी हमारी रक्षा करने चले आते हैं जिससे कि हम पूरी तरह संयम एवं नियम का पालन करते हुये अपने आपको उसके अनुकूल बनाकर बदलते हुये मौसम के साथ तालमेल बिठा सके क्योंकि हर ऋतू का अपना ही एक अलग मिजाज़ और वातावरण होता हैं जो सबको एकदम से माफ़िक नहीं आता लेकिन यदि हम अपने पूर्वजों के बड़ी ही खोजबीन के बाद बताये गये रास्तों पर चले तो बिना किसी परेशानी के इस तरह से उसके रंग-ढंग में ढल जाते हैं कि फिर उसके बदलाव का पता ही नहीं चलता अब तो इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता हैं क्योंकि इस युग में जिस तरह की जीवन शैली हम सबने अपना रखी हैं उससे सभी के देह सारे तंत्र हमारी ज्यादतियों की वजह से इस तरह की राहत की अपेक्षा रखते हैं ताकि उन्हें कुछ आराम मिले और उनकी कार्यक्षमता बढ़े क्योंकि ये दिन तन-मन को साधने के होते हैं जिसके लिये बड़े आसान से उपाय हमारे धर्मग्रंथों में दिये गये हैं पर, दुनिया की चकाचौंध और गलत तरीके की दिनचर्या ने हमें उनसे दूर कर दिया हैं अतः इनका आगमन हमें वापस अपनी जड़ो की और ले जाता हैं

हम सब ‘चैत्र’ या ‘वासंतिक’ और ‘आश्विन’ या ‘शारदीय’ नवरात्र को तो पूरे जोश-खरोश से मनाते हैं लेकिन इसके अलावा ‘माघ’ एवं ‘आषाढ़’ महीने में आने वाली इन दोनों ‘नवरात्री के ’गुप्त’ होने की वजह से या हमें इनकी पूरी जानकारी न होने से हम इनके प्रति गाफ़िल रहते हैं पर, आती-जाती ऋतुयें तो चुपचाप अपना काम करती हैं तो क्यों न हम भी इसके संकेतों को पहचाने और प्रकृति की तरह मौन रहकर अपनी साधना कर जगत के चैन-अमन की जगतमाता से प्रार्थना करे जिससे कि अंतर में भी भावनाओं का निर्मल झरना बहने लगे जो हमारे अंदर-बाहर को पूरी तरह से पवित्र कर दे और हम भी इस कुदरत की तरह विकार रहित बन अपने साथ-साथ अपने आस-पास रहने वाले लोगों के जीवन में बदलाव ला सके वाकई ये जो भी बदलता हैं सिर्फ़ बाहर ही नहीं अंदर भी बहुत कुछ बदलने की कूवत रखता हैं ये और बात हैं कि हम ही सबको नजर अंदाज़ कर अपने ही तरीके से जीते रहे तो फिर कोई भी ऋतू हो या मौसम कोई फ़र्क नहीं पड़ता ‘चैत्र’ और ‘आश्विन’ में मनाई जाने वाली नौरात्र में तो माँ दुर्गा के नव स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती हैं लेकिन कहते हैं इन गुप्त नौरात्र में दस महाविद्याओं की विशेष आराधना की जाती हैं जो अपने भक्तों को विद्या का वरदान देने के साथ-साथ उनके मन की हर एक इच्छा पूर्ण करती हैं तो आज से शुरू हो रहे इस संयम-साधना के अलौकिक पर्व की सभी को अनंत शुभकामनायें... ये आपके जीवन में अपार खुशियाँ लेकर आये... जिससे आपकी समस्त बाधा-विध्न दूर हो जाये... :) :) :) !!!        
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१७ जुलाई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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