मंगलवार, 28 जुलाई 2015

सुर-२०९ : "करो प्रकृति बचाने का संकल्प... आया 'विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस'...!!!"

गुम हो गये
नदी पर्वत झरने
नहीं दिखते
पशु पक्षी परवाने
नहीं गूंजते
कल-कल के तराने
हम सभी ने
खाली कर दिये खज़ाने
जिसके बिना
जी न पायेंगी कल संताने
इसकी रक्षा करें
चलो मिलकर इसी बहाने
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मित्रों...,

बात आज की नहीं बल्कि आने वाले समय की हैं... जो वैसे तो अभी काल के गर्भ में हैं लेकिन उसकी कल्पना करना तो हमारे वश में हैं तो उसी भविष्य की एक झलक...

‘शेफाली’ अपनी पांच साल के बेटे ‘अर्नव’ को ‘पंचतंत्र’ की कहानियाँ सुना रही थी और हर कहानी के साथ नन्हे-मुन्ने दिमाग में उठते सवालों के जवाब भी देती जा रही थी कभी वो तरह-तरह के जानवरों और पक्षियों के बारे में पूछता जैसे कि शेर, चीता, बंदर, जिराफ़, खरगोश, हिरण, गिलहरी, मेढ़क, झींगुर, मगरमच्छ, मछली, चूहे, कबूतर, कोयल, गोरैया, बुलबुल, मोर, कठफोड़वा, पपीहा, तोता, गीदड़, लोमड़ी, सियार तो कभी पेड़ों या फलों के बारे में जानना चाहता कि कदंब, मौलीश्री, चंदन, आम, चंदन, नीम, अशोक, पीपल, बरगद, सेमल, गुलमोहर, कनेर, अमरुद, जामुन, केला ये सब किस तरह के दिखाई देते हैं... माँ के पास कोई जवाब नहीं सिवाय तस्वीरें दिखाने के तो वो हर शय का चित्र दिखा उसके बारे में बता देती तब वो बोलता कि क्या आपने इन सबको देखा हैं तो उसका जवाब हाँ में सुनकर झुंझला जाता कि फिर वो सब अब क्यों नहीं हैं ? कहाँ चले गये ?? किसने उन्हें चुरा लिया ???     

‘शेफाली’ के पास उसके किसी भी सवाल का उत्तर नहीं था या फिर हैं भी तो वो उसे देने में हिचक रही हैं क्योंकि उसे लगता हैं कि कहीं न कहीं वो भी इन सबके लिये दोषी हैं क्योंकि भले ही उसने प्रकृति की हर अनमोल सौगात को नहीं देखा लेकिन उसके समय तक भी बहुत सी चीजें बची हुई थी जिनके बारे में वो भी इसी तरह जानने के उत्सुक रहती थी तब उसकी माँ उसे बताती थी कि अब भले ही ये सब नजर नहीं आते लेकिन कभी इसी पृथ्वी का हिस्सा थे और हम सब मिलकर सहजीवन बिताते थे पर, धीरे-धीरे अनगिनत प्रजातियाँ हम इंसानों की स्वार्थ की भेंट चढ़ गयी जिनकी संख्या दिन-ब-दिन कम ही होती जा रही हैं माना कि इस समय तक तो पशु-पक्षियों की ज्यादातर नस्लें लुप्त हो चुकी हैं और केवल छवियों में ही कैद हैं लेकिन हम ये भी तो कह नहीं सकते कि जो शेष हैं वो भी कितने समय तक बची रहेगी क्योंकि सब ये सोचते कि ये तो प्रकृति प्रेमियों या पर्यावरण के प्रति जागरूक समाज सेवकों का काम हैं तो वो ही कर लेंगे पर, कोई खुद ही आगे बढ़कर उसे सुरक्षित करने का प्रयास नहीं करता और यही सब सोचते-सोचते उसके जेहन में कोई विचार आया और वो ख़ुशी से चहक कर बोली, चलो हम दोनों मिलकर आज से ही जो बचे हैं उनको ही बचाने की मुहीम शुरू करें वरना, जब तुम्हारे बच्चे तुमसे यही प्रश्न पूछेंगे तो तुम मुझसे भी ज्यादा शर्मिंदा होगे क्योंकि जरा-सा ही ही सही लेकिन यदि क़ुदरत का अंश बाकी हैं तो उससे फिर से कायनात का निर्माण किया जा सकता हैं  

फिर इस तरह ‘शेफाली’ ने उसी दिन से अपने निर्णय को अमली जामा पहनाने हेतु तैयारी शुरू कर दी सबसे पहले उसने अपने बेटे के हाथों से कुछ पौधे लगवाये फिर अगले दिन उसे लेकर अपने गाँव गयी जहाँ अनेकों किसान भुखमरी एवं बदहाली की वजह से अपनी जमीन बेचने को मजबूर हो चुके थे उन सबको उसने आने वाले समय की भयावह काल्पनिक छवि बताई और किस तरह वे सब वर्तमान परिस्थिति से निपटने एकजुट होकर एक-दूसरे की मदद कर साँझा चूल्हा, साँझा जीवन अपनाकर अपने आपको बचा सकते हैं उसका तरीका बताया जिससे कि उनकी जरूरतें पूरी हो सके और वे खेतीबाड़ी / बागवानी / पशुपालन / हस्तशिल्प / मत्स्यपालन और दूसरे कामों के प्रति जो उदासीन हो चुके हैं फिर से उत्साहित होकर उन्हें शुरू कर सके और फिर उसने कुछ लोगों को अपने साथ जोड़कर इस काम को अंजाम दिया जिसमें थोड़ा वक़्त तो लगा पर, गाँव में फिर से खुशहाली आ गयी और अब उसका अगला पड़ाव अपना शहर था जिसे वो छोड़कर आई थी पर, वही तो वो लोग रहते थे जो इसके लिये सर्वाधिक जिम्मेदार थे तो उसने वही जाकर इस अभियान को अंजाम देने का सोचा और चूँकि अब तक उसके पास काम करने वाले स्वयंसेवको का एक जत्था जमा हो गया था और अच्छी-खासी रकम भी तो उसने यहाँ आकर सबके साथ मिलकर अपनी कार्य पद्धति को थोड़ा बदलते हुये प्रकृति सरंक्षण के काज का आगाज़ किया जो उतना आसान नहीं था जितना गाँव में पर, उसके पास उनको समझाने, जगाने की कोरी दलील के अलावा अनुभव का भंडार, अनवरत कार्य करने की ऊर्जाशक्ति थी तो राह में आने वाली मुश्किलों को दूर करने का हुनर भी तो इस तरह उसने अपने आपको ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ी को तो बचाया ही साथ उस आत्मग्लानि से भी मुक्त हुई जो उसे सर उठाने नहीं दे रही थी पर, आज वो अपने बेटे के साथ गर्व से ‘प्रकृति सरंक्षण दिवस’ मना रही थी जिसके उद्देश्य को उसने अपना तन, मन, धन देकर सार्थक किया था... और सबसे यही कहती कि “आज तुम बचाओ प्रकृति... कल वो बचायेगी तुम्हारी संतति...” :) :) :) !!! 
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२८ जुलाई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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