शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

सुर-२०५ : "जीने को एक ख्याल ही काफी हैं...!!!"

एकाकीपन
अक्सर डराता बहुत
जब होता नहीं
कुछ करने के लिये भी 
तो न भाता फिर
वही सब जो शौक था
ऊब जाता जी उससे 
बस, वो तो चाहता वही
जिसकी ख्वाहिश हैं
या फिर जो उस तन्हाई को
महफ़िल के अहसास से भर दे
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मित्रों...,

दुनिया में अकेला केवल वही जी सकता जिसका मन या तो ईश्वर की भक्ति में लीन हो गया हो या फिर रब के बनाये किसी बंदे में या फिर ख़ुदा की इबादत में या फिर उसके उस स्वपन में जिसे वो हर हाल में साकार करना चाहता हैं या फिर वो जो इस तरह जीने को मजबूर हो वरना, तन्हाई में तो सबका ही जी घबराता और वो उससे दूर जाना चाहता क्योंकि इंसानी फ़ितरत हैं कि वो जो नौ महीने निपट अँधेरे में गुज़ार लेता हैं तो वो आँख खुलते ही रौशनी और आदम जात के वजूद से वाकिफ़ होने के बाद से ही फिर कभी उस अंधकार में लौटना नहीं चाहता सही हैं जब तलक सूरज से न मुलाकात हुई हो उसका उजाला ही न देखा हो तो रात का अँधेरा ही भला लगता लेकिन जिस पल ये नजरें देख लेती चमचमाता रोशन नज़ारा फिर वो नहीं चाहती देखना अँधेरा और अकेलापन दुबारा कि उसमें तो जी सकता केवल वही जिसकी तकदीर को लिखा गया हो स्याह रातों की कालिमा से या जिसे करनी हो तपस्या पर, आदम जात की संतान से भरी इस दुनिया में कुदरत के कितने भी हसीन नज़ारे हो देर तक रोक नहीं सकते यूँ भी कहते हैं कि ये पर्वत, नदी, झरने, पेड़, पोधे, पक्षी, तितलियाँ भी सिर्फ एक हद तक ही मन की लुभाती पर, संगत तो हमजात की ही सुकून देती हाँ ये और बात हैं कि जिसे मिले हो सिर्फ धोखे ही धोखे इस संसार में तो फिर उसे होती वहशत अपनों से भी पर, ऐसे में भी वो अकेला नहीं रहना चाहता तभी तो या तो वो मूक पशुओं से प्यार जताता या निर्जीव वस्तुओं में सुख तलाशता और किसी न किसी तरह अपनी तन्हाई को बिताने का सामां ढूंढ ही लेता याने कि चाहे जीती जागती हो या फिर बेजान उसके अकेलेपन को दूर करने में जो भी सहायक हो वो उसे अपना लेता जो उसके जीने का भी सहारा बनता क्योंकि इस जगत में वही फिज़ूल अपना जीवन बिता सकता हैं जिसे कि इसकी सार्थकता का इल्म न हो लेकिन जिसने इसके मायने पा लिये तो फिर वो उसे किसी भी तरह गंवाना नहीं चाहता जो भी इसे अर्थ दे सके ऐसा कुछ करना चाहता       

कभी-कभी देखा हैं कि पास कुछ भी नहीं न तो कोई सामान न ही कोई इंसान फिर भी अकेला बैठा हुआ बंदा मुस्कुराता हैं वो अपनी संगत में ही बड़ा खुश दिखाई देता हैं और जब उसकी अंदरूनी तबियत कुछ ज्यादा ही प्रसन्न होती तो फिर वो गुनगुनाने भी लगता जिसकी वजह यदि पूछे तो जवाब कुछ भी नहीं या यूँ कहे कि उसे बयाँ कर सके वो अल्फाज़ मिलते नहीं क्योंकि ये तो उसके अंतर्मन की गहराइयों से उपजी उस ख़ुशी की एक हल्की सी झलक मात्र हैं जो उसे अपने किसी ख्याल से मिली हैं और उसे किसी को बता पाना मुमकिन नहीं कि ये वो राज हैं जो बोल देने पर उसके चेहरे की हंसी छीन लेगा जी हाँ... ये सच हैं कुछ बातें होती हैं ऐसी बिल्कुल गूंगे के गुड जैसी जिन्हें महसूस तो किया जा सकता है पर उसे बयाँ कर पाना संभव नहीं होता ये तो बस आपके हाव-भाव से अभिव्यक्त होती हैं तभी तो उस अदृश्य शक्ति की प्रार्थना में एकदम अकेला बैठा हुआ व्यक्ति कितना शांत कितना आनंदित नजर आता जबकि वो तो न तो उसे देख सकता न ही उससे बात कर पाता या उसके संग ही रह पाता क्योंकि उसने अपने तप से जो पाया वही उसका संबल बन उसे जीने का ही नहीं हर हालात से लड़ने का भी हौंसला देता हैं... और जिसने रूहानी प्रेम को पा लिया वो भी उसी के समकक्ष पहुँच जाता और उसे फिर सिवा उसके कुछ न भाता.. तभी शायद शायर ने लिखा कुछ नहीं हैं भाता जब रोग ये लग जाता... तो प्रेम का हर रूप हमें अकेलेपन में  जीने की ताकत देता हैं... :) :) :) !!!   
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२४ जुलाई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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