गुरुवार, 30 जुलाई 2015

सुर-२११ : "लघुकथा - बयाँ-ए-गुल...!!!"

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मित्रों...,



नन्हा ‘शौर्य’ हाथों में फूल लिये दूर खड़ा था तो उसे देखकर उसकी माँ आश्चर्य से बोली, अरे तुम स्कूल नहीं गये और ये फूल भी वापस ले आये... ये तो तुम अपनी दोस्त ‘शिविका’ के लिये ले गये थे फिर क्या हुआ बोलो... उसने वो फूल माँ के हाथों में थमाकर कहा, ‘मम्मा, ‘शिविका’ ने मेरा दिल तोड़ दिया पता उसने मुझे छोड़कर ‘राज’ से दोस्ती कर ली... और आज वो स्कूल बस में भी उसके पास ही बैठी थी तो मुझे गुस्सा आ गया और मैं लौट आया... अब मैं न तो उस बस, से जाऊंगा न ही उस स्कूल में पढूंगा... अचानक जैसे बिजली कौंधी और ‘अवंतिका’ दस साल पीछे पहुँच गयी जब ऐसे ही अचानक ‘गौरव’ ने कॉलेज आना बंद कर दिया था तब वो लाख जतन करने पर भी उसकी वजह न जान पाई थी... आज लगा जैसे जवाब मिल गया... जिस दिन से उसने ‘नमन’ से दोस्ती की थी उसके बाद से ही ‘गौरव’ ने उससे नाता तोड़ लिया था यहाँ तक कि शहर से ही दूर चला गया था फिर बड़े दिनों बाद किसी फ्रेंड से पता चला कि वो किसी के इकतरफ़ा प्यार में ख़ुद को गंवा बैठा... उस वक़्त अपनी नादान उमर में वो इसे समझ न पाई थी लेकिन आज उसके बेटे ने जैसे वो वाकया याद दिला दिया क्योंकि उसने भी तो आखिरी बार ऐसे ही फूल पकड़े थे... और... इतना ‘जनरेशन गेप’ कि जो हम किशोरावस्था में महसूस करते थे ये बच्चे अभी से करने लगे... उफ्फ... भले ही अभी ये मासूम हैं और उसे इतनी शिद्दत से नहीं महसूसते पर, अब यदि उसे ‘शौर्य’ का नादान बचपना बचाना हैं तो उसे इन बातों से दूर रखना होगा... मतलब टी.वी. / इंटरनेट / मोबाइल सब पर बैन लगाना होगा... सच, आज इन फूलों ने एक साथ कई राज बयाँ कर दिये... और वो मुस्कुराने लगी
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३० जुलाई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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