सब कुछ
ठीक-ठाक था
कहीं कोई कमी न थी
न ही प्रयासों में
न ही मेहनत में
फिर भी...
कभी शुरुआत तो
कभी अंतिम चरण में
‘असफलता’ टकरा ही गयी
बड़ी वफा से निभा रही
ताल्लुक अपना एकतरफ़ा ही
साथ हम जैसे मेहनतकशों के
और करती बड़ी नफ़रत
अपनी जुड़वाँ बहन ‘सफ़लता’ से ॥
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मित्रों...,
आज अचानक ही एक लंबे अरसे
बाद इत्तफ़ाक से एक शोपिंग मॉल में ‘आकाश’ की मुलाकात अपने बचपन के सहपाठी और दोस्त ‘नरेन’ से हो गयी तो वो उसे देख
खुद को रोक न सका और उसके करीब जाकर पीछे से उसके कंधे पर हाथ रख उसे चौंका दिया ‘नरेन’ चमचमाते सूट-बूट में किसी
आकर्षक एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व के शख्स को देख एकदम सकपका गया और इससे पहले कि
उसे पहचान पाता तब तक वो उसे अपनी आग़ोश में ले चुका था और बड़ी बेतकल्लुफ़ी से उन
मासूम नादानियों के किस्से बयाँ कर रहा था जो उन दोनों ने बचपन में साथ मिलकर की
थी उसकी बातों से वो धीरे-धीरे उसे पहचानता गया कि ये तो उसका बेहद करीबी मित्र था
मगर, पढ़ाई में उसकी तरह न ही अव्वल आता था और न ही उसकी तरह उसके
भीतर चित्रकला, गीत-संगीत या अन्य कोई भी हूनर था पर, इन सबके बावज़ूद भी वो किस्मत का बड़ा धनी था जिसकी वजह से
कोई भी काबिलियत न होने पर भी उसे हर काम में सफ़लता मिलती थी जबकि ‘नरेन’ कठोर परिश्रम करने के
बावजूद भी कहीं न कहीं चूक जाता था तभी तो स्कूली शिक्षा में सारे जिले में प्रथम
आने के बाद भी वो वही रह गया जबकि औसत अंक लाने के बाद भी ‘आकाश’ अपने पिता की धन-दौलत के
दम पर उस छोटी जगह से बड़े शहर के बड़े कॉलेज में उच्च शिक्षा हासिल करने चला गया और
फिर वहां से पंख लगाकर विदेश की उड़ान भर ली जिससे उनके बीच ताल्लुकात की कड़ी कमजोर
होते-होते टूट गयी जो अब जाकर जुडी हैं जबकि वो उसी जगह रहकर छोटे बच्चों की
ट्यूशन पढ़ाते हुये अपनी आगे की पढाई करने लगा और इस तरह अपने आर्थिक रूप से कमजोर
माता-पिता का सहयोगी बन घर की जिम्मेदारियों में हाथ बंटाने लगा पर, उसकी सारी कोशिशें, सारी
मेहनत, सारी दौड़-भाग हर बार की तरह उसे उस ऊंचाइयों तक न ले जा सके
जहाँ तक उसके साथ के उससे कमतर साथी पहुंच चुके थे ।
सबसे बड़ी बात तो ये थी कि
उसके शिक्षक बन जाने पर उसके पढाये बच्चे तक किसी न किसी पद पर पहुंच गये थे लेकिन
न जाने क्यों हर तरह के प्रयत्न करने पर भी उसकी तकदीर ने हमेशा उसे ठेंगा दिखाया
जबकि वो तो किसी तरह की लकीरों या ज्योतिष या किस्मत या ग्रह-नक्षत्रों को भी नहीं
मानता था पर, उसके हर तरह के प्रयासों के बाद मिली विफलता ने उसे ये
मानने पर मजबूर कर दिया कि इस तरह की कोई चीज़ होती हैं और जिसके साथ ये बेरुखी
दिखाती हैं फिर वो चाहे कुछ भी जतन कर ले ये किसी तरह भी नहीं मानती तभी तो ‘नरेन’ की हर सकारात्मक सोच, सही तरीके से बनाई योजनाओं को भी इस कमबख्त ने ऐसा चूर-चूर
किया कि भले ही वो उसके हौंसलों को या उसके बार-बार नाकाम होने पर भी फिर कोशिश
करने के उसके जज्बे को न तोड़ सकी जिसके कारण वो हर हालात में खुश रहता बस, जब कभी ऐसे किसी सफ़ल इंसान को देखता तो कुछ पल को मायूस
जरुर हो जाता पर, फिर उसे झाड़कर आगे बढ़ जाता क्योंकि अब वो ये जान गया था कि
ये नाकामयाबी और ये निगोड़ी बद-किस्मत उसके सदा के हमसफर हैं जो हमेशा उसके वजूद से
यूँ ही चिपके रहेंगे यदि ऐसा न होता तो उसे काम्याबी जरुर मिल गयी होती क्योंकि
उसकी कोशिशों में कोई कमी न थी और उसकी यही ‘संतुष्टि’ उसे विपन्न जीवन में भी सहारा देती और वो तन्हाई में अक्सर
सोचता कि जो भी हुआ उसकी वजह क्या हैं कहीं उसमें ही तो कोई कमी नहीं लेकिन जब उसे
अंदर से जवाब मिलता कि उसने कहीं कोई कसर न छोड़ी थी बल्कि ‘अर्जुन’ की तरह केवल लक्ष्य पर ही
अपनी नज़र गड़ाई थी और जूनून की हद तक उसके पीछे पड़ा था फिर भी हमेशा कोई न कोई उसके
हिस्से की नौकरी ले गया वो करता भी क्या जहाँ तक लिखित परीक्षा की बात होती वो उस दरिया
को पार कर लेता लेकिन जब बात साक्षात्कार की आती और उसके साथ ही टेबल के नीचे से
दिखाने वाली प्रतिभा की तो वो हमेशा हार जाता ।
फिर भी उसे ख़ुशी होती कि
उसने जो कुछ भी उसके हाथ में था उसमें पूरा दम-ख़म दिखाया किसी भी बात से डरा नहीं
पर, जो उसके वश में नहीं वो उसे किस तरह पा सकता हैं और अब तो
उसकी उम्र हर तरह की नौकरी की तयशुदा सीमा पार कर चुकी हैं तो ऐसे में उसने मान
लिया कि उसके भाग्य के ताले की चाबी किसी अँधेरी खाई में जाकर गिरी जो मिलती ही
नहीं और वो मुआ ताला उसकी लगाई किसी भी कुंजी से खुलता नहीं ऐसे में यही मुमकिन
हैं कि जो कुछ हैं उसी में खुश रहा जाये आख़िर कब तक कोई अपने अनदेखे अदृश्य दुश्मन
से लड़ सकता हैं... तो फिर वो जो कुछ क्षण फलर तक ‘आकाश’ को अजनबी समझा रहा था बड़ी सरलता से उसके साथ घुल-मिल कर
बातों में मगन हो गया... सही हैं न... जब आपके प्रयास ईमानदार हो तो फिर बेईमानों
की तरह किसलिये जीना... :) :) :) !!!
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२९ जुलाई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह “इन्दुश्री’
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