रविवार, 1 नवंबर 2015

सुर-३०४ : प्रेम किशोरावस्था का...!!!"

काव्यकथा : “प्रेम... किशोरावस्था का...!!!”
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मित्रों...,

आतिश’ की इस साल बोर्ड एग्जाम हैं लेकिन वो पढ़ता ही नहीं किताब की जगह मोबाइल या कंप्यूटर से ही चिपका रहता कुछ कहो तो चिढ़ जाता पता नहीं इस लड़के को अचानक ये हुआ क्या अब तक तो उसकी पढ़ाई ठीक ही चल रही थी लेकिन इस साल से कुछ चेंज नजर आ रहा वो खाना भी ढंग से नहीं खाता न ही दोस्तों या किसी चीज़ में रूचि लेता... ये कहते हुए जैसे ही धोने के कपड़े छांटते हुये माँ ने उसकी जेब टटोली तो एक पुर्जा मिला जिसमें लाल स्याही से ‘आय लव यू’ लिखा था... और वे सारा माज़रा समझ गयी जिसने उन्हें चिंता में डाल दिया पर, इस सोच में उन्हें ये ख्याल आया---

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बचपन
और यौवन
के मध्य आ जाती
'किशोरावस्था' नादान
.....
अल्हड़ता
के साथ लेकर
विद्रोही तेवर पर
जिस्म में हो रहे
बदलाव से अनजान
.....
जो महज़
किसी से भी
होने वाले आकर्षण को
प्यार समझ लेता हैं
बिना सोचे उसका अंजाम
.....
जबकि
'प्रेम' इस वय में
अहसास तो भरपूर
पर, समझो हकीकत तो
सिर्फ़ हार्मोंस का उतार-चढ़ाव
जिसे देता वो मुहब्बत का नाम ।।
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उन्होंने याद किया कि वो भी तो इस उम्र में इस दौर से गुजर चुकी हैं अब भले ही वो सब नादानी या नासमझी लगती लेकिन उस वक़्त तो उसे अपने सर को पढ़ाते हुये देखना बड़ा अच्छा लगता था और उसे याद कर उनके होंठो पर हंसी आ गयी साथ ही अपने बेटे को किस तरह से इस दिवास्वप्न से बाहर निकालना हैं ये भी उन्हें समझ आ गया और वे उसकी पसंद का खाना बना उसका इंतजार करने लगी जब वो आया तो उसे अपने उसी उम्र के किस्से सुनाते हुये ये वाकया भी बताया और ये भी कि इसकी वजह से जब वे फेल हो गयी तो उन सर के सामने जाते भी उसे लाज आती थी और बस, उसके बाद उन्होंने कभी इस तरह की गलती नहीं की फिर वे बोली, बेटा समझ आया ये कुछ नहीं महज़ एक आकर्षण हैं जो कभी किसी को कुछ नहीं देता बल्कि कुछ छीनता ही हैं तो यदि तुम अपना कीमती समय खोना नहीं चाहते तो आज से ही पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर केंद्रित करो और उसे पाने के बाद फिर चाहे जो करो... उसे लगा कि ‘आतिश’ ने उसकी बात समझी भी हैं  
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३१ अक्टूबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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