मंगलवार, 10 नवंबर 2015

सुर-३१४ : "तन-मन उज्जवल बनाओ... आत्म दीपक जलाओ...!!!"

हर त्यौहार
देता कोई उपहार
जिसमें छिपा
पीढियों का संस्कार
जिनसे होता
समाज का परिष्कार  
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मित्रों...,

‘फेस्टिवल पैकेज’ में आज एक नया पर्व आ गया जो कि इस पंच दिवसीय महापर्व का द्वितीय उत्सव हैं जो खुद अपने आप में कई पर्वों का महासम्मेलन हैं इसलिये इसे अलग-अलग जगह अलग-अलग नामों से पुकारा जाता और अलग-अलग तरह से मनाया जाता लेकिन फिर भी इसका एक नाम तो संपूर्ण भारतवर्ष में सर्वमान्य हैं ‘रूप चौदस’ क्योंकि ऐसा माना जाता कि हम दीपावली के कई दिनों पूर्व से इसकी भीषण तैयारी में जुट जाते जिसमें घर के कोने-कोने की साफ़-सफ़ाई से लेकर हर एक सामान और हर एक चीज़ की स्वच्छता का ध्यान रखा जाता तो ज़ाहिर हैं कि इस स्वच्छता अभियान में शामिल व्यक्ति कहीं न कहीं शारीरिक रूप से थकने के अलावा कुछ मलिन भी हो जाता तो ऐसे में उसे भी अपने आपको विशेष रूप चमकाने की आवश्यकता होती जिसे यूँ तो वो हर दिन करता ही लेकिन जब बात सलाना महोत्सव की हो वो भी ‘लक्ष्मी पूजन’ की तो फिर साधारण स्नान से कुछ होने का नहीं इसलिये एक दिन पहले ‘रूप चौदस’ मनाई जाती जिसमें कि प्रातः काल उठकर खास तरह से बनाये गये उबटन से देह को पूर्ण रूप से साफ़ किया जाता जिससे कि तन-मन दोनों उज्जवल हो और आने वाली वार्षिक पूजन हेतु उत्साह-उमंग में बढ़ोतरी भी हो जाये और हमारी काय ऋतू परिवर्तन के प्रहार को झेलने भी अपने आपको तैयार कर सके फिर यदि इसमें अंतर की भी सफाई जोड़ ली जाये तो निसंदेह आने वाले दिन भी खुशियों से भर उठेंगे हमारे पूर्वजों ने जो भी रीति-रिवाज़ बनाये वो कोई दिन में तैयार नियमावली नहीं बल्कि वर्षों की साधना व अनुभवों का सुंदर परिणाम हैं जो हमें उनकी तरफ से दी गई अनमोल भेंट हैं

हमारे हर त्यौहार का एक आध्यात्मिक पक्ष भी होता जो इसे धार्मिक आस्था से जोड़ता तो इस दिन से भी एक नहीं अनेक मान्यतायें प्रचलित हैं जिसके अनुसार ये माना जाता कि इस दिन ‘भगवान श्रीकृष्ण’ ने ‘नरकासुर’ नामक दुष्ट राक्षस का वध किया था और ‘राक्षस बारासुर’ ने अलग-अलग प्रांतों से लायी गई जो सोलह हजार एक सौ कुआँरी कन्याओं को अपनी कैद में रखा था उनको मुक्ति दिला अपने संरक्षण में लिया जिससे कि समाज में उनको मान-सम्मान मिल सके परंतु अल्प बुद्धि मानव ने इसके मर्म को न समझ उनको सोलह हजार स्त्रियों का पति बना प्रचारित कर दिया जबकि यदि ‘श्रीकृष्ण’ ने उनको अपने नाम के साये तले शरण न दी होती तो समाज से तिरस्कृत हो शायद, आत्मदाह का निर्णय लेती अतः नरकासुर के वध के कारण तो उस वजह से इसका नाम ‘नरक चतुर्दशी’ पड़ गया अतः आज उस कथा का भी स्मरण किया जाता हैं एक अन्य मान्यता यह भी हैं कि इसी दिन याने कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस को भगवान् ‘हनुमान जी’ ने ‘माता अंजना’ के गर्भ से जन्म लिया था तो आज के दिन दुखों एवम कष्टों से मुक्ति पाने के लिए ‘हनुमान जी’ की भक्ति की जाती हैं जिसमे कई लोग हनुमान चालीसा, हनुमानअष्टक, सुंदर कांड  आदि का पाठ करते इसे ‘हनुमान जयंती’ के रूप में मनाते जिसका उल्लेख वाल्मीकि कृत ‘रामायण’ में मिलता हैं इस तरह इस देश में दो बार ‘हनुमान जयंती’ मनाई जाती एक बार चैत्र की पूर्णिमा और दूसरी बार कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस के दिन ।

बंगाली लोग आज ‘काली पूजा’ के रूप में मनाते और चूँकि यह दिन दिवाली महोत्सव के एक दिन पूर्व आता जिसमें दीप दान कर द्वार पर दीपक जला  इसे भी उतने ही हर्षोल्लास के साथ धूमधाम से घर के सभी सदस्यों के साथ त्यौहार मनाया जाता हैं तो इसका एक नाम ‘छोटी दिवाली’ भी पड़ गया तो सबके लिये ये दिवस मंगलकारी हो यही शुभकामना हैं... :) :) :) !!! 
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१० नवंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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