गुरुवार, 12 नवंबर 2015

सुर-३१६ : "करो प्रकृति का पूजन... देता संदेश गोवर्धन...!!!"

खजाने
बिखरे पड़े
चहुंओर बेहिसाब
कुदरती सौगातों के
जिनसे मिलते
ह्मको सामां जीने के
फिर भी करते
स्वार्थवश इनका दोहन
भूल कि इनके बिन
असंभव जीवन  
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मित्रों...,

एक दिन ‘श्रीकृष्ण’ ने देखा कि सभी ‘ब्रजवासी’ तरह-तरह के पकवान बना रहे हैं और चारों तरफ़ ख़ुशी का माहौल हैं तो उत्सुकतावश उन्होंने इसकी वजह पूछी तो पता चला कि सभी लोग ‘इंद्र देवता’ को प्रसन्न करने के लिये ही उनकी पूजा के निमित्त ये सब तैयारी कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि --- ‘हमारा ‘गोवर्धन पर्वत’ हमें सभी तरह की वनस्पति और खाद्य सामग्री देता हैं अतः हमें उसकी पूजन कर उसके प्रति कृतज्ञता प्रदर्शित करना चाहिये’

इस तरह उन्होंने सभी ब्रज निवासियों को गोवर्धन की पूजा के लिये मनाया और उस दिन सबने पर्वत पर जाकर उन्हें सभी पकवान समर्पित करें, जिससे ‘इंद्रदेव’ नाराज़ हो गये और उन्होंने मुसलाधार बारिश कर सभी के प्रति अपना रोष प्रकट किया... उनका ये रोद्र रूप और सभी लोगों को परेशान देख ‘श्रीकृष्ण’ ने अपनी ऊँगली पर पर्वत को इस तरह उठाया कि सब उसके नीचे आकर अपनी जान की रक्षा कर सके और इस तरह ‘इंद्रदेव’ को भी अपनी गलती का आभास हुआ... इतने दिनों सभी लोगों ने उस पर्वत पर उगी वनस्पति से जीवन निर्वाह किया अतः आज के दिन गोबर का पर्वत और ५६ अलग-अलग भोग का ‘अन्नकूट’ बनाकर समस्त देवताओं का आहवान कर उनको चढ़ाने से वो खुश होते हैं     

आप सभी को आज ‘गोवर्धन’ पूजा और ‘अन्नकूट’ की स्नेहिल बधाइयाँ... :) :) :) !!!! 
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१२ नवंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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