मंगलवार, 17 नवंबर 2015

सुर-३२१ : "लाला लाजपत राय का बलिदान... न भूलेगा हिंदुस्तान...!!!"

दिल में
देश के प्रति
देशभक्ति की भावना
होना ही काफी हैं
बाकी तो सब
अपने आप ही हो जाता हैं ।।
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मित्रों...,

न जाने कहाँ गये वो लोग जिनको अपनी मातृभूमि से अपनी जान से बढ़कर न सिर्फ़ प्यार था बल्कि जब प्राण देने का वक़्त आया तो उन्होंने बिना एक क्षण गंवाये भारत माता के चरणों में हंसते-हंसते अपनी क़ुर्बानी दे दी पर, अपने देशवासियों के दिल में बसकर सदा के लिये अमर हो गये तो ऐसे में जब भी उन शहीदों की शहादत का दिवस आता तो मस्तक स्वतः ही उनके प्रति श्रद्धा से नत हो जाता कि हम लोग तो आज़ादी पाकर अपने स्वार्थ में गुम हो गये कभी ये भी नहीं सोचा कि केवल स्वतंत्र होने मात्र से ही हमारा अपने वतन के प्रति दायित्व समाप्त नहीं हो जाता बल्कि अब तो और भी ज्यादा बढ़ जाता कि जो भी इन गुलामी के दिनों में हमने खोया उसकी भारपाई कर विश्व के मानचित्र पर अपनी धरा को प्रगतिशील बनाने के महान काज में अपना जितना भी हो सके योगदान देने का प्रयास करें चाहे फिर वो चुटकी भर का ही क्यों न हो लेकिन चीटीकी तरह अनवरत आगे बढ़ने, विकास की दीवार पर चढ़ने की बार-बार गिरकर भी कोशिशें करते रहना चाहिये जो कभी भी नाकामयाब नहीं होती पर, ये क्या हम तो अपने आप में ही इस कदर खोये हैं कि हमें दूसरों की क्या अपने अगल-बगल तक की खबर नहीं ऐसे में इतने बड़े देश को याद करने की फ़िक्र भी भला किस तरह से किसी के जेहन में आ सकती तभी तो जिन्होंने भी इस भारतभूमि की ख़ातिर अपना सर्वस्व लुटा दिया उनकी गाथा दोहराने का मंतव्य इतना ही हैं कि हम ये न सोचे कि इस देश की जिम्मेदारी केवल सरकार की हैं और अपने वोट के साथ सारे दायित्व भी चंद नेताओं को  सौंपकर हमने अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर ली तभी तो स्वंत्रता के इतने बरसों के बाद भी ज्यादा कुछ नहीं बदला बस, देश की बागडोर पराये हाथों से अपने हाथों में आ गयी और सबने चादर तान सोने की तैयारी कर की साँस ली पर, ऐसे वातावरण में भी जिनके अंतर्मन में देशप्रेम की लौ जलती वे चुपचाप ही अपना धर्म-कर्म निभाते ताकि सोने वाले इसी तरह गाफ़िल होकर सोते रहे तो ये तय करने का अधिकार भी हमारा ही हैं कि हमें किस तरह से अपने देश को पुनः विश्वगुरुबनाने की मुहिम में भागीदारी करनी चाहिये क्योंकि अब तो वो समय भी नहीं जबकि हमें अपनी जान देकर या किसी शत्रु से लड़कर अपनी जान गंवानी पड़े अब तो अपनी धरती पर अपनों के बीच रहकर अपनों के साथ मिलकर अपनों के लिये कुछ करने का सुनहरा अवसर हैं ।

हम वतन के लिये कुछ करने की प्रेरणा पाने के लिये उन क्रांतिवीरों की कहानियां पढ़ सकते हैं और यदि ये भी मुमकिन नहीं तो जब भी किसी ऐसे वीरपुत्र या वीरांगना की जयंती या पुण्यतिथि आये तो जरुर उसका स्मरण करें ताकि उसकी सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर प्रेरक कथा पढ़कर उसका कुछ अंश हमारे भीतर भी समा जाये जो हमारी मनोवृति को थोड़ा ही सही बदलने में मददगार साबित हो सकता हैं तो आज भी एक ऐसे ही सपूत का बलिदान दिवस हैं जिनका नाम लाला लाजपत रायहैं जिन्होंने पूर्ण मनोयोग से पंजाबका प्रतिनिधित्व कर शेर-ए-पंजाबका सम्मान हासिल किया और देश की जनता ने प्यार से उन्हें लालाजीकहकर पुकारा इसके अतिरिक्त वे लाल-बाल-पालकी तिकड़ी के एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के प्रमुख नेता और पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव लाने वाले प्रथम भारतीय भी बने जिन्होंने १७ नवंबर १८६५ को पंजाब में बसे फरीदकोटकी पावन भूमि पर एक वैश्य परिवार में जनम लिया और बालपन से ही उनके मन में राष्ट्रप्रेम की ज्योति सुलग उठी थी तो समाज-सेवा करते हुये उन्होंने अपनी जीवन यात्रा शुरू की जिसमें अनेक पड़ाव आये वकालत की पढ़ाई कर उन्होंने वक़ालत शुरू कर एक सफल वकील बने उसके बाद वे स्वामी दयानंद सरस्वतीके संपर्क में आकर आर्य समाजीबने जिन्होंने उनके आगे के पथ को स्पष्ट किया और पंजाब में दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज’ (डी.ए.वी. कॉलेज) की स्थापना में महती भूमिका अदा की जिसके माध्यम से उन्होंने समाज में फैली कुरीतियों के विरुद्ध काज किया तो साथ ही वे पूरे तन-मन से ब्रिटिश शासकों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल बजाते रहे और जब साइमन कमीशनभारत पहुंचा जिसके कारण चारों तरफ़ लोगों में गुस्से की चिंगारी भड़की हुई थी तो ऐसे में ३० अक्टूबर १९२८ को वे भी अपने देश बंधुओ के साथ मिलकर फिरंगी सरकार के खिलाफ़ अपना विरोध प्रकट करने लगे जिसके कारण होने वाले लाठी चार्ज ने असमय ही उनकी जान ली लेकिन उनके अंतिम शब्द मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के कफ़न की कील बनेगीने क्रांतिकारियों को लड़ने का हौंसला दिया जिसकी वजह से देश आज़ाद हुआ तो आज उनकी पुण्यतिथि पर ये शब्दांजली अर्पित कर अपने श्रद्धा सुमन उनके चरणों में भेंट करती हूँ... जय हिंद... जय भारत... वंदे मातरम... :) :) :) !!!                    
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१७ नवंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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