गुरुवार, 19 नवंबर 2015

सुर-३२३ : "युवाओं का आज़ादी राग... सावधान हो जाये जनाब...!!!"


'आज़ादी' अच्छी
जब मिले शासक के
बिछाये जाल से
जो बचा सके हमको
ज़ालिम के बेहिसाब जुल्मों से
पर,
घर, रिश्तों
समाज, परिवार
नैतिकता, मर्यादा
संस्कृति, सभ्यता, परंपरा
जिम्मेदारी, जवाबदारी के
मोहपाश से खुद को
छुड़ा स्वछंद विहार करना
कोई 'आज़ादी' नहीं
बल्कि...
जीवन मूल्यों की 'बर्बादी' हैं ।। 
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मित्रों...,

आज के युवा वर्ग का एक चिर-परिचित चेहरा जहाँ लगभग 10 में से 8 'बॉयफ्रेंड' को आप अपनी 'गर्लफ्रेंड' जी हाँ आजकल प्रेमिका के लिये यही संबोधन इस्तेमाल किया जाता हैं से ये कहते सुनेंगे कि वे अपनी हर तरह की जरूरतों सही पढ़ा आपने हर तरह की जरूरतों जिसमें तन-मन भी शामिल हैं के लिये अपनी प्रियतमा का साथ चाहते हैं पर किसी भी तरह के वादे या करार से बचना चाहते हैं क्योंकि वो खुद को स्वतंत्र रख जब जी चाहे तब अलग हो अपनी नई दुनिया बसाने का अधिकार अपनी ही जेब में रखना चाहते हैं जिसके लिये उन्होंने 'लिव इन' जैसे आधुनिक और सुविधाजनक  संबंध भी गढ़ लिये हैं जिसमें दोनों एक पति-पत्नी की तरह ही एक साथ एक घर में रहते हैं पर, उसमें शादी जैसी जिम्मेदारियां एवं सामाजिकता का अभाव होता हैं केवल स्वछँदता से अपनी मर्जी पूरी करने को इस तरह की रिलेशनशिप को जन्म दिया गया हैं जिसमें अब भले ही कानूनी हक भी शामिल कर दिये गये हैं फिर भी इसमें वो शालीनता या सामाजिक मान्यता की कमी हैं जो वैवाहिक रिश्तों में होती केवल अपनी शारीरिक मांग की पूर्ति करने इसे इज़ाद किया गया वरना मिलना-जुलना, हास-परिहास एवं सभी तरह की बातें तो प्रेम सम्बंधों में भी होती लेकिन एक मर्यादा के साथ जो कि 'लिव इन' में गुम हो जाती कि वहां तो लड़का-लड़की 24×7 एक-दूसरे के साथ हैं ।

इस तरह के संबंध हो या फिर अलग-अलग रहकर प्रेम निभाना दोनों ही परिस्थितियों में पुरुष अपनी आज़ादी को खोना नहीं चाहते और इस 'आज़ादी' का एकमात्र तात्पर्य कभी भी जब उनका मन भर जाये या कोई ओर पसंद आ जाये वो खुद को अलग कर सके याने कि केवल शादी से पहले वो उसका एक ट्रायल लेकर देखना चाहते कि ये उनके अनुकूल हैं या नहीं इसलिए कुछ लोग बाद में इसे स्वीकार भी कर लेते तो कुछ बड़ी आसानी से दूर हो जाते पर, जो भी इस तरह का खुला व्यवहार हमारी भारतीयता / संस्कृति एवं नैतिकता पर विदेशी सभ्यता का एक सुनियोजित हमला हैं जिसे अभी जोश और अपनी भूख के आगे युवा वर्ग समझ नहीं पा रहा क्योंकि शरीर के हार्मोन एवं दिन-रात मोबाइल / लैपटॉप / टी.वी. पर प्रदर्शित होने वाले अश्लील चित्र तो उसे उकसाते रहते उसकी कामाग्नि को भड़का उसे इस तरफ धकेलते रहते तो ऐसे में अपनी हर भूख को मिटाने का उसे दूसरा कोई बेहतर रास्ता समझ नहीं आता जिससे भले ही कोई इंकार करे लेकिन इसे झुठलाना नामुमकिन क्योंकि साथ रहने का केवल एक ही मकसद होता नहीं तो एक-दूसरे को समझने तो प्रेम ही काफी हैं फिर शादी का विकल्प तो हैं ही जिससे सही तरीके से रिश्ता मज़बूत किया जा सकता हैं ।

गौरतलब ये हैं कि रिश्ते का नाम चाहे जो भी हो प्यार / शादी / लिव इन सब में पुरुष की अपनी आज़ादी की इच्छा रहती वो स्वयं को हर जवाबदारी से मुक्त रखना चाहता जिसके पीछे मंशा सिर्फ़ भरपूर मनमर्जी का बिना किसी रोक-टोक या पाबंदी के जीवन जीना हैं जबकि परिवार नाम की संस्था का गठन इसी स्वतन्त्रता से मुक्ति पाने इंसान ने स्वयं निर्मित किया जब आदिम युग में बगैर नियमों व समाज के अपने भविष्य को असुरक्षित माना लेकिन फिर से वो सिर्फ इस काम के लिए उस युग में जाना चाहता हैं बिना विचारे कि ये किसी भी दृष्टिकोण से हितकर नहीं अतः अब जरूरी हैं कि किसी दिन जब इस तरह के अनैतिक सम्बंधों को पूर्ण मान्यता मिल जाये उससे पहले हम अपनी परंपराओं को बचा पाये ।

इससे पहले कि सभ्यता, संस्कृति, रीति-रिवाज़ एवं परंपरा केवल शब्दकोष में बंद चंद किताबी अल्फाज़ बनकर रह जाये उससे पहले हम उनको हर तरह से बचाने के जो भी संभव प्रयास हैं उनकी शुरुआत अपने परिवार से कर दे ताकि आने वाले कल को हमें उनको अतीत की कहानियां सुनाकर या चित्र दिखलाकर न बहलाना पड़े कि ये केवल बोलने के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले महज़ रिवायती शब्द थे बल्कि हम तो इनको जीते हैं इनसे ही तो हमारी पहचान हैं जो अब गुम होती जा रही क्योंकि हर नस्ल एक ही रंग में रंगी नज़र आ रही जो अपने फ़ायदे के आगे अपनी ही विरासत के लुप्त होने को नहीं देख पा रही बाद में पछताने से बेहतर हैं कि आज ही गलतियों को सुधार लिया जाये... जो मुश्किल नहीं अगर नन्हे-नन्हे हाथों में ‘मोबाइल’ की जगह नैतिक शिक्षा की किताबें थमा दे तो ‘लैपटॉप’ में गौरवशाली इतिहास के सच्चे किस्से डलवा दे और यो-यो हनी सिंह की जगह घर में मंत्र बजवा दे... इनकी सकारात्मक ऊर्जा स्वतः ही अपना काम करेगी आपको तो केवल मार्गदर्शन देना होगा... जो बहुत कठिन न होगा... बेशक आप खुद पर भी इनसे दूर रह सके... :) :) :) !!!   
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१९ नवंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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