रविवार, 22 नवंबर 2015

सुर-३२६ : "देव उठनी ग्यारस आई... मंगल काज करने की घड़ी लाई...!!!"

जागे देव
योग निंद्रा से
जो सोये तो नहीं थे
पर,
लिया था अल्प अवकाश
कि अंतर्दृष्टि से देखें
भक्त किस तरह
हर तरह के शुभ कर्मों में
उनकी कमी महसूसते
उनके बिना कोई भी
मांगलिक कार्य न करते
और जब ‘देवउठनी ग्यारस’ को
वे समझते कि वही उनको जगा रहे
तो देख उनका ये भोलापन वे हंसते
और खोल ऑंखें नई ऊर्जा संचरित करते  
संसार की गतिविधियों में
फिर से शामिल हो कर्मचक्र को
अपनी उपस्थिति से गतिमान बनाते
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मित्रों...,

यूँ तो पूरे ‘कार्तिक’ महीने की महिमा ही हर भक्त जानते हैं कि इसका हर एक दिन ही कितना पुण्य देने वाला होता तभी तो लोग पूरे महीने का ही कोई न कोई पावन संकल्प लेते कि वो अपने मन-कर्म-वचन से उसका पालन करेंगे और वायुमंडल में व्यापत प्रभावी सूक्ष्म तरंगों को अपनी प्राणवायु में समाकर अपने अंदरूनी शक्ति का वर्धन करेंगे जिससे कि आने वाले परिवर्तनों हेतु खुद को तैयार कर सके वाकई जिस तरह किसी ‘मोबाइल’ की ‘बेट्री’ दिन भर में ‘डिस्चार्ज’ होकर उसे बंद कर देती उसी तरह आस-पास के अशांत वातावरण की नकारात्मक तरंगे हमारी आत्मशक्ति को कमजोर बना हमारी देह को निर्बल कर देती लेकिन यदि हम आध्यात्मिकता का सहारा लेकर अपने अंतर्मन को ‘चार्ज’ करें तो फिर हर तरह की बुराइयों से लड़ने की ताकत पा सकते हैं जिसके लिये कुछ ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं केवल अपने भारतीय पंचांग के प्रत्येक दिन के अनुसार दिनचर्या का पालन करें और बदलते मौसम के साथ अपने आपको ढाल ले तो फिर कोई भी मुश्किल हो या जीवन में कोई बाधा आये वो हमें कठिन न प्रतीत होगी इसलिये तो हमारे बुजुर्गों ने हर तरह के ज्ञान को पुस्तकों में संचित कर वो अनमोल धरोहर हमारे हाथों में सौंप दी कि उसके अनुरूप चलकर हम अपनी और अपनी आने वाली पीढ़ी की जड़ें मजबूत कर सके इसलिये तो यदि बड़ी बारीकी से देखा जाये तो हमारे यहाँ हर दिन ही कोई न कोई पर्व या विशेष दिवस होता जिससे जुडी कुछ मान्यतायें एवं उसे मनाने की निश्चित परिपाटी भी होती जिसको अनदेखा कर हम अपनी ही तरह से अपना जीवन यापन करते क्योंकि हमें लगता कि आधुनिक वातावरण में उनका कोई औचित्य नहीं रह गया या जिन्होंने इन नियमों को बनाया वो हमसे कम पढ़े-लिखे या सुविधा संपन्न नहीं थे तो फिर उनका लिखा किस तरह से आज के समय के अनुरूप हो सकता जबकि अनेकों धारणाओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी तार्किक माना गया हैं फिर चाहे वो हर दिन स्नान करना हो या प्रातःकाल उठ सायंकाल सोना हो या जमीन पर बैठकर खाना या शाम के समय फूल-पत्ती न तोड़ना या सुबह करदर्शन कर धरती को प्रणाम कर जागना, सूर्य नमस्कार, प्राणायाम-योग और भ्रमण करना या रात को दूध पीकर सोना या किसी विशेष दिन या समय पर किसी खाद्य वस्तु को न इस्तेमाल करना या किसी चीज़ की कितनी मात्रा लेना लेकिन जब हमें यही बातें विदेशी सूत्रों के हवाले से पता चलती तो मान्य लगती और गौर से देखा जाये तो सचमुच वही हो रहा हमारी भारतीय खोजें, जड़ी-बूटियां, प्राकृतिक ज्ञान, ध्यान-योग, कपड़े सब कुछ पर विदेशी ‘ठप्पा’ जिसे कि आजकल ‘ब्रांड’  कहा जाता लगाकर हमें ही बेचा जा रहा और हम उन बेमोल सहज ही हमें उपलब्ध सामग्री को जेब से दाम देकर खुशी-खुशी खरीद रहे

आज ऐसा ही एक शुभ दिन जिसे कि ‘देव प्रबोधिनी एकादशी’ कहते हैं आया तो सभी भक्त उनको जगाने की सांकेतिक क्रिया करते क्योंकि सभी अच्छे से जानते कि वे कभी सोते नहीं यदि वे सचमुच सो जाए तो जगत का चक्र ही चलना बंद हो जाये लेकिन चूँकि बरसात के चार महीने हर दृष्टि से मांगलिक कार्यों के लिये सुविधाजनक नहीं होते अतः चातुर्मास की मान्यता बना ये धारणा प्रचलित कर दी गयी कि इन दिनों सृष्टि पालक क्षीरसागर में शयन करते अतः कोई भी शुभ कार्य करना अनुचित हैं तो हम वैस ही मानते और आज उनके जागरण के बेला में उनको जगा ‘तुलसी-विवाह’ के साथ ही हर तरह के मंगल कार्यों की शुरुआत करते तो सभी को ‘देवउठनी एकादशी’ और ‘तुलसी विवाह’ की अनेकानेक शुभकामनायें... :) :) :) !!!               
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२२ नवंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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