रविवार, 29 नवंबर 2015

सुर-३३३ : "जुदा होकर रोना... या बेहतर एक बार सोचना...!!!"


उफ़...
ये सोचकर ही
दिल घबरा जाता
कि अब आगे का जीवन
गुज़ारना होगा उसके बिन
तड़फना होगा
‘ज्यूँ जल बिन मीन’
पर, कोई रास्ता भी तो नहीं
कि उसके संग भी तो
कट नहीं रहे अब रात-दिन
तो बेहतर कि
हो जाये अलग-अलग  
बिताये जिंदगी तारे गिन-गिन
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मित्रों...,

‘रेवती’ और ‘साहिल’ की जोड़ी कॉलेज के दिनों से ही बेहद लोकप्रिय थी जो भी उन्हें देखता उसे लगता कि इनसे ज्यादा एक-दूजे को चाहने वाला जोड़ा उन्होंने पहले नहीं देखा क्योंकि लैला-मजनूं, हीर-राँझा, शीरी-फ़रहाद, रोमियो-जूलियट, सोहनी-महिवाल आदि की प्रेम-कहानियां भले ही उन्होंने सुनी या पढ़ी हो मगर इन दोनों को तो रोज ही देखते तो जो सामने हैं उसे हकीकत माने या जिनको देखा ही नहीं उनकी मिसाल दे तो वे उनके ही किस्से सबको सुनाते और बताते कि ऐसा युगल तो शायद ही कोई हो सकता हैं सच... नज़र न लगे उनके प्यार को... दोनों हमेशा साथ रहे... धीरे-धीरे उनकी इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म होने लगी तो उनको एक-दूसरे से बिछड़ने का डर सताने लगा कि अब आगे न जाने क्या होगा, वो किस तरह से मिल सकेंगे वो लोग अभी इतने सक्षम भी तो नहीं कि अपने घर में अपनी शादी की बात रख सके पर, शायद किस्मत उनके साथ थी तो दोनों का कैंपस सिलेक्शन एक साथ ही एक ही कंपनी में हुआ और वे पुणे रहने चले गये जहाँ उनका इश्क और भी अधिक परवान तो चढ़ा ही साथ ही एक साथ रहने पर वे एक-दूजे को अधिक समझ पाये तो उनको ये अहसास हुआ कि अब उन दोनों को अपनी शादी का फैसला अपने घरवालों को बता देना चाहिये तो बस, जैसे ही छुट्टियाँ हुई वे अपने-अपने घर गये तो अपने प्रेम का सबके सामने खुलासा करते हुये ये प्रस्ताव भी रखा कि अब वे विवाह कर अपनी जिंदगी एक साथ बिताना चाहते हैं तो संयोग से दोनों के परिवार को ही कोई आपत्ति न हुई और ख़ुशी-ख़ुशी उनका शादी कर दी गयी

धीरे-धीरे दिन पर दिन गुजरते गये और वे जितने करीब आये उनके बीच उतनी दरारें भी आती गयी कि एक-एक पल साथ रहने पर उनको ये अहसास हुआ कि उनकी कुछ आदतें जिसे वे उस वक़्त अपनी मुहब्बत के जूनून में देख न सके अब उनको ही नागवार गुजरने लगी तो जितना संभव था उन्होंने साथ निभाने का प्रयास किया पर, जब लगा कि इस रिश्ते को इससे अधिक ले जाना संभव नहीं तो दोनों तलाक लेकर अलग हो गये पर, किसी ने भी झुकना या अपने आपको बदलना गंवारा न किया कि उनके अहं ने उनकी आँखों पर खुद के सर्वश्रेष्ठ होने की पट्टी जो बांध दी तो वही दो लोग जो पहले एक-दूजे के बिना जीने की कल्पना से भी घबराते थे अब अलग हो जी रहे थे पर, अंदर से ये भी समझ रहे थे कि उनका निर्णय ठीक नहीं क्योंकि उनकी चाहत भी कम नहीं पर, उनके फैसले के तराजू पर तो उसका पलड़ा हल्का साबित हुआ और जुदाई जीत गयी जबकि उनके पास ये ये विकल्प भी होना था कि वो मध्य का रास्ता निकालते और अलग होने की जगह आजीवन रेल की पटरियों की तरह चलते तो हो सकता था किसी दिन उनकी राहें एक हो जाती आखिर दिल में तो प्यार भरा ही था तो जोर मारता ही भले ही कुछ दिनों के लिये वो जरा कमजोर पड़ गया हो पर, उन्होंने इस पर विचार तक न किया और तुरत-फुरत सदा के लिये अलग होकर पछताते रहे पर, इस सच को स्वीकार न किया कि पृथक होकर रोने से साथ रहकर सोचना बेहतर साबित होता तो वही हुआ... एक दिन उनके बीच किसी तरह का भी रिश्ता बाकी न रहा सिवाय अटूट बंधन की टूटन की किरचों के जो चुभती रही आँखों में अंत समय तक... जब प्यार हद से ज्यादा हो तो उसे थोड़ा-सा समय देना ही चाहिये... भले ही उस समय में मौन ही क्यों न धारण करना पड़े... क्या नहीं :( :( :( ???      
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२९ नवंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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