शुक्रवार, 13 नवंबर 2015

सुर-३१७ : "एक दिल की दो धड़कन... एक भाई तो दूजी बहन...!!!"

सबसे प्यारा
सबसे न्यारा
भाई-बहन का नाता
सबको नहीं
ये सौभाग्य मिल पाता
जब हो तकदीर
तब परिवार पूरा होता
होकर भी जुदा 
ये रिश्ता कभी न टूटता 
एक डोर बंधे वो  
याद संग दूजा खिंचा आता
मना दिन ख़ास साथ 
रिश्तों का रंग ओर गहरा जाता
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मित्रों...,

आज ‘दीपावली फेस्टिवल पैकेज’ का अंतिम दिन आया और साथ अपने ‘भाई दूज’ का त्यौहार लाया जिसने हर भाई-बहिन को मिलाया क्योंकि हर दूरियों को नाप ‘भाई’ अपनी प्यारी ‘बहन’ से मिलने चला आया तो बहन ने भाई के माथे पर तिलक लगा इसे हिल-मिल मनाया इस तरह पीढ़ियों की परंपरा को श्रद्धा विश्वास से निभाया दोनों ने हंसी-ख़ुशी से घर अपना सजाया अगले बरस फिर मिलने का वादा कर भाई वापस चला आया संग अपने खुबसूरत यादें लाया जिसने जुदाई के दिनों में उदास दिलों को लुभाया और इंतज़ार के कड़वे पलों को इन मधुर बातों ने मीठा बनाया इसी तरह आते रहे ये उमंग भरे त्यौहार मिटाते रहे विषाद सबने हाथ दुआ में उठाया

सच... इस पुण्य भारत भूमि पर हर रिश्ते की गिरह को साल दर साल मजबूत बनाने जो तरह-तरह के पर्व आते वो अनेकता में एकता को ही नहीं विविधता में समानता को भी दर्शाते कि जहाँ इस धरा पर अलग-अलग मज़हब को मानने वाले एक साथ अपने मतभेद भूला संग मिलकर रहते और सबके धर्म ग्रंथ के पन्ने एक ही बात कहते इंसानियत से बढ़कर नहीं कोई धर्म दूजा जिसने जीवात्मा को पूजा उसने रब को खुश किया तभी तो यहाँ सात दिन नौ त्यौहार मनाये जाते कभी-कभी तो एक ही दिन में दो-तीन भी एक साथ आ जाते जो सबको एक सूत्र में बाँध जाते

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को ‘यम’ का अपनी प्रिय बहन ‘यमी’ के घर अचानक चले आना जो ख़ुशी दे गया वो आज हर बहन महसूस कर सके इसलिये तो इसे ‘भाई दूज’ के रूप में एक परंपरा बना दिया गया कि चाहे कोई बहन अपने भाई से कितनी भी दूर चली जाये या फिर भाई ही क्यों न किसी भी जगह रहे जब ये दिवस आये तो वो सब काम छोड़कर दौड़कर अपनी बहिना से मिलने चले आये और इस तरह ये रीति-रिवाज़ सदियों तक चलते जाये तो आज वही दिन आया सबने जिसे टीका कर ख़ुशी-ख़ुशी मनाया तो आज के दिन की सबको बहुत-बहुत बधाई... यूँ ही खुश रहे हर बहन-भाई... :) :) :) !!!        
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१३ नवंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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