सोमवार, 23 नवंबर 2015

सुर-३२७ : "जिंदादिल गायिका गीता दत्त...!!!"


हर गीत
हो उठा जीवंत
उस जिंदादिल गायिकी के
झनझनाते अंदाज़ से
शब्द-शब्द की रगों में उसने
अपने खुशनुमा रंगीले  
अहसास का जादू भर दिया
तो कभी उनमें
अपना रूहानी रंग घोल दिया
वो जो गाती कंठ से नहीं
बल्कि स्वर निकलते थे उसके
अंतर्मन की गहराईयों से
तभी तो ‘गीतादत्त’ के तरानों ने
हर एक दिल को छू लिया
           
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मित्रों...,
 
‘गीता दत्त’ किसी परिचय की मोहताज़ नहीं क्योंकि आज उनके जाने के चार दशक बाद भी उनके गाये गीत फिजाओं में गूंज उनके होने का अहसास कराते हैं यहाँ तक कि सर्वाधिक रीमिक्स भी किये जाते हैं कि वो आवाज़ ही इतनी दिलनशीं और रूह तक उतर जाने वाली थी कि जो भी उसे एक बार सुन लेता उसके लिये उसे भूला पाना नामुमकिन हैं हर तरह के गानों के लिये मुफीद थी उनकी खनकदार आवाज़ जिसमें झरने सी कल-कल थी तो चिड़ियों की चहचहाहट भी तो मंदिर में बजती घंटी की पाकीज़गी भी थी तभी तो उनके गले से निकला हर एक नगमा चाहे वो गीत हो या गज़ल या केबरे या फिर भजन सबको उनकी गायिकी का खुशनुमा अंदाज़ जीवंत बना देता क्योंकि गाने वाली उस गीत के हर्फ-हर्फ को सिर्फ गाती नहीं थी बल्कि महसूस करती उनमें उतर जाती थी इसलिये जब वो हमारे कानों में आते तो उनके साथ वो फ़नकार भी हमारे अंतर में उतर जाती फिर हम सिर्फ उसके गीत के बोल ही नहीं उसे गुनगुनाने वाली को भी भूल नहीं पाते इसलिये इसमें कोई शक नहीं कि उनका गाया हर एक नगमा सदाबहार और कालजयी बन गया चाहे फिर वो उनका गाया पहला गीत हो जो कि १९४७ M3 प्रदर्शित फिल्म ‘दो भाई’ का हैं जिसने उन्हें फिल्म जगत में स्थापित कर दिया---

मेरा सुंदर सपना बीत गया
मैं प्रेम में सबकुछ हार गयी
बेदर्द जमाना जीत गया...

इस गाने के शब्दों में ही वो पीड़ा हैं कि कोई भी जो इस तरह के हालातों से गुज़रा हो उसे सुन लगता जैसे उसके दर्द को ही सामने वाले ने गाया हो कि हर किसी के जीवन में ये पल तो आते जब उसे कुछ ऐसा ही महसूस होता इस तरह उन्होंने अपनी गायिकी के एक अनंत सफर का आगाज़ किया जिसमें उनके चाहनेवालों का काफिला अपने आप ही पीछे जुड़ता गया तो फिर उसके बाद उनकी मुलाकात अपनी ही तरह के एकदम जुदा अपने काम के प्रति समर्पित महान शख्सियत ‘गुरुदत्त’ से हुई जिन्होंने उनको १९५१ में अपने निर्देशन की फिल्म ‘बाज़ी’ के साथ ही अपनी जिंदगी में आने का भी अवसर दिया और इस तरह ‘गीता घोष राय चौधरी’ बन गई ‘गीता दत्त’ और फिल्म ‘बाज़ी’ ने सचमुच ही कई कलाकारों की तकदीर की बाज़ी पलट दी और उनके गाये गाने---

‘तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले
अपने पे भरोसा हो तो एक दांव लगा ले..

ने न जाने कितने किस्मत के मारों को अपने आप पर भरोसा करने का हौंसला दिया कि ये महज़ कोई फ़िल्मी गीत नहीं बल्कि एक अचूक मंत्र भी हैं जिसको यदि अपने जीवन में अपना ले तो वाकई बिगड़ी तकदीर बन सकती हैं उसके बाद तो जब ‘गीता’ और ‘गुरु’ के अद्भुत मिलन ने एक के बाद एक लाजवाब सृजन की झड़ी लगा दी

हम आपकी आँखों में इस दिल को बसा दे तो
हम मूंद के पलकों को इस दिल को सज़ा दे तो...
एक ऐसा स्वपन गीत कि उसे देखते-देखते या सुनते-सुनते हम अपने आपको भूल उस जगह पहुँच जाते उसके फिल्मांकन के साथ-साथ सुरों में खो जाते फिर जब कुछ इतराकर या कुछ इठलाकर ये गाती---

भंवरा बड़ा नादान हैं बगियन का मेहमान हैं
फिर भी माने न माने न कलियन की मुस्कान हैं...

तो हमारे होंठो पर भी शरारत आ जाती याने कि बिना अभिनय के भी वो अपनी आवाज़ से उसके हर अलफ़ाज़ को अभिनीत भी कर देती जिसके उतार-चढ़ाव में वो अंदाज़ भी झलकता और फिर जब कानों में ये गीत बजता---

आँखों ही आँखों में ईशारा हो गया
बैठे बैठे जीने का सहारा हो गया...

तो अकेलेपन में भी तन्हाई का अहसास न होता और लगता जैसे सचमुच ही जीने का सहारा मिल गया हो और फिर जब वे कहती---

जाने क्या तूने कही
जाने क्या मैंने सुनी
बात कुछ बन ही गयी...

तो सच कहे आपको यूँ न महसूस होता कि बिन कहे भी सब कुछ बोल दिया हो और बिन सुने भी सब सुन लिया गया हो और अपने आप ही बात संवर गयी हो... उनके तो हर एक तराने से सुनने वाला अपने आपको जोड़ सकता हैं, हर किसी की जिंदगी में कोई उसका सबसे करीबी होता और जब वो जुदा होकर एक अरसे बाद मिलता तो फिल ये ही पूछना चाहता न---

वक्त ने किया क्या हंसी सितम
तुम रहे न तुम हम रहे न हम...


सिर्फ रूमानी गाने ही नहीं भजन भी उनकी आवाज़ में ढलकर उसकी पाकीज़गी से अंतर्मन को पवित्र कर देते यकीन न हो तो इसे सुन देखिये---

घुंघट के पट खोल रे तोहे पिया मिलेंगे....

आन मिलो आन मिलो
श्याम सांवरे आन मिलो...

जय जगदीश हरे...


आज सजन मोहे अंग लगा लो
जनम सफल हो जाये
हृदय के पीड़ा देह की अग्नि
सब शीतल हो जाये...

ढलती उम्र के अहसास को नकारती ये गायिकी अपने ही आप में बेहद दिलकश और नशीली हैं जिसे सुन बहकने का डर लगता---

हूँ अभी मैं जवां ऐ दिल
हूँ अभी मैं जवां...

मेरी जां मुझे जां न कहो मेरी जां...

कभी अकेले में बैठो हो और ये गीत सुनने मिल जाये तो क्या बात हो---

ख्यालों में किसी के इस तरह आया नहीं करते
किसी को बेवजह आ-आ के तडफाया नहीं करते...

ना ये चाँद होगा न तारे रहेंगे
मगर, हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे...

कोई चुपके से आके दिल में समा के
बोले कि मैं गया हूँ कौन आये ये मैं कैसे जानूं ???

मुहब्बत कर लो जी भर लो अजी किसने रोका हैं...

आज की रात पिया दिल न तोड़ो देखो बात मेरी मानो...

ना जाओ सैयां छुड़ा के बैयाँ
कसम तुम्हारी मैं रो पडूँगी...

रिमझिम के तराने ले के आई बरसात
याद आई किसी से वो पहली मुलाकात...

पिया ऐसो जिया में समाये गयो रे
के मैं तन-मन की सुध-बुध गंवा बैठी...

उन्होंने सिर्फ वेदना को ही स्वर नहीं दिये बल्कि खुशमिजाजी को भी उतनी ही जिंदादिली से गाया कितन-मन दोनों थिरक उठते पूरा वजूद ही झुमने लगता---
सुनो गज़र क्या गाये
समय गुजरता जाए...

ऐ दिल मुझे बता दे
तू किस पे आ गया हैं
वो कौन हैं जो आकर
ख्वाबों पे छा गया हैं...

सुन.. सुन... सुन... बालमा...
प्यार हमको तुमसे हो गया...

जाने कहाँ मेरा जिगर गया जी
अभी-अभी यहीं था किधर गया जी...

मेरा नाम चिन-चिन चू चिन-चिन चू बाबा...

ऐ दिल हैं मुश्किल जीना यहाँ
जरा हट के जरा बच के
ये हैं बाम्बे मेरी जान....

ठंडी हवा काली घटा आ ही गयी झूम के
प्यार लिये डोले हंसी नाचे जिया झूम के...

बाबूजी धीरे चलना
प्यार में जरा संभलना
हाँ बड़े धोखे हैं
बड़े धोखे हैं इस राह में...

जाता कहाँ हैं दिवाने
सब कुछ यहाँ हैं सनम
बाकी के सारे फसाने
झूठे हैं तेरी कसम...

ये लो मैं हारी पिया
हुई तेरी जीत रे
काहे का झगड़ा बालम
नई-नई प्रीत रे...

अरमान भरे दिल की लगन तेरे लिए हैं
ओ पिया तेरे लिए हैं...

इन सबमे मेरा सबसे ज्यादा प्रिय गीत ‘चले आओ... चले आओ... कोई दूर से आवाज़ दे... चले आओ...’ यदि रात की ख़ामोशी में सुन लिया जाये तो यूँ लगता कि जैसे कोई अपना ही कहीं दूर से हमको बुला रहा हैं फिर रुकना मुमकिन न लगता... ये उनकी मन की ही आवाज़ तो हैं जो कभी हमको अपने अंदर छूपी हुई अपनी पीड़ा से मिलाती तो कभी एकदम से लबों पर मुस्कान ला देती और कभी नाचने पर भी मजबूर कर देती... इतनी विविधता भरी थी उनके अंदर तभी तो हर कोई उनका प्रशसंक हैं चाहे वो किशोर हो या युवा या फिर वृद्ध सबके अलग-अलग मूड को उन्होंने अपनी गायिकी से अभिव्यक्त किया तो आज उनके जन्मदिवस पर उनको याद न करना तो बेईमानी होगी न कि जिसके गानों से हम अपने हर पल को महकाते उनको ही ख़ास दिनों में भूलाते... :) :) :) !!!
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२३ नवंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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